Category Archives: General
जीवन का उल्लास…
Peak after Peak and on the Top White Darkness “Hold on! Darkness is Black. Pitch Black is Better … White Darkness is Meaningless Call it Pitch-Black… That Would be Better” “No. White Darkness. Clear-Vivid Right Ahead … and Invisible! That … Continue reading
उपचार और बाजार
यहाँ बीमारियों की बात नहीं करेंगे। बीमारियों के कारणों की चर्चा भी नहीं करेंगे। निगाह अँग्रेजी, यानी ऐलोपैथिक उपचार पर रखेंगे। बात 1984-85 की है। तब मैं मेडिकल कॉलेज का छात्र था। मेरी इच्छा एक अच्छा चिकित्सक बनने की थी। … Continue reading
युवा मजदूर
एक्शन कन्स्ट्रक्शन इक्विपमेन्ट (ए सी ई) श्रमिक : “दुधौला गाँव में कम्पनी की नई फैक्ट्री से 150 ट्रैक्टर मण्डी में भेजे जा चुके हैं। रोज साढे बारह घण्टे की शिफ्ट में हम 70 मजदूर 5-6 ट्रैक्टर बनाते हैं। एक ने … Continue reading
कुछ बातें जातियों की
गण-कबीला-ट्राइब-क्लैन को सामाजिक संगठन का एक स्वरूप कहा जाता है। मिलते-जुलते रूप में यह मनुष्यों के बीच विश्व-भर में रहे हैं। काफी क्षेत्रों में, बड़ी आबादियों में इनका उल्लेखनीय प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। गण को रक्त-सम्बन्ध से … Continue reading
मन करता है आतंकवादी बन जाऊँ
युवा मजदूर : छह महीने में तो ब्रेक कर ही देते हैं। नई जगह लगने में कई बार महीना बीत जाता है। खाली बैठे दस दिन हो जाते हैं तो निराशा बढ़ने लगती है। मरने को मन करता है … … Continue reading
आईये अपने आप से कुछ बातें करें
अपने आप से बात करने के लिये समय चाहिये। और यहाँ मरने की फुर्सत नहीं है। पर बात इतनी ही नहीं लगती। वास्तव में खुद से बात करने में डर लगता है। स्वयं से बात करने से बचने के लिये … Continue reading
यह बातें भी पढिये
फरीदाबाद में मार्च 1982 में मजदूर समाचार का प्रकाशन आरम्भ होते ही धमकाने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। उस समय महीने में एक हजार प्रतियाँ छपती थी। 1993 से मजदूर समाचार की हर महीने पाँच हजार प्रतियाँ छपने लगी। … Continue reading
शिशुओं की दुलत्तियाँ
● शिशु के सहज, स्वस्थ पालन-पोषण में साझेदारी वाले अलग-अलग आयु के पचास लोग आवश्यक हैं। अफ्रीका में प्रचलित एक कहावत अच्छे बचपन के लिये और अधिक लोगों के होने को जरूरी बताती है। प्रगति और विकास के संग शिशु … Continue reading
आप-हम क्या-क्या करते हैं … (14)
# अपने स्वयं की चर्चायें कम की जाती हैं। खुद की जो बात की जाती हैं वो भी अक्सर हाँकने-फाँकने वाली होती हैं, स्वयं को इक्कीस और अपने जैसों को उन्नीस दिखाने वाली होती हैं। या फिर, अपने बारे में … Continue reading
निर्भरता-आत्मनिर्भरता-परस्पर निर्भरता बनाम … बनाम क्या?
नये समाज के लिये नई भाषा भी आवश्यक लगती है। सामान्य तौर पर शासक समूह की, विद्यमान सत्ता की धारणायें-विचार-भाषा समाज में हावी होती हैं। ऊँच-नीच वाले सामाजिक गठनों में पीड़ित-शोषित समूहों का विरोध भी आमतौर पर सत्ता की धारणाओं-विचारों-भाषाओं … Continue reading