यह बातें भी पढिये

फरीदाबाद में मार्च 1982 में मजदूर समाचार का प्रकाशन आरम्भ होते ही धमकाने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। उस समय महीने में एक हजार प्रतियाँ छपती थी। 1993 से मजदूर समाचार की हर महीने पाँच हजार प्रतियाँ छपने लगी। जून 2007 से गुड़गाँव में फैक्ट्री मजदूरों के बीच मजदूर समाचार नियमित रूप से उपलब्ध। अक्टूबर 2007 से गुड़गाँव क्षेत्र के लिये दो हजार प्रतियाँ अतिरिक्त, प्रतिमाह सात हजार छापना आरम्भ किया। गुड़गाँव में मुख्यतः उद्योग विहार में महीने में एक दिन सुबह की शिफ्टों में मजदूर समाचार उपलब्ध। और, मार्च 2008 में गुड़गाँव से दो साहब धमकाने फरीदाबाद में मजदूर लाइब्रेरी पहुँचे थे। उस समय साथी भूपेन्द्र ही वहाँ बैठे थे। साहबों की साथी से हुई बातें मजदूर समाचार के अप्रैल 2008 अंक में दी।

यहाँ प्रस्तुत हैं।

7 मार्च को दो सज्जन मजदूर लाइब्रेरी पहुँचे। खड़े-खड़े ही गुस्से में बोलने लगे : आप ही मजदूर समाचार निकालते हैं?! आपने हमारी कम्पनी के बारे में झूठी खबर छापी है। हम आपके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखवायेंगे। अदालत में मामला दायर करेंगे। आपने हमारी कम्पनी को बदनाम किया है। सबूत दीजिये। जिस मजदूर ने आपको बताया उसका नाम बताइये। उस मजदूर की फोटो क्यों नहीं छापी …

# बैठिये। पानी लेंगे? कहाँ से आये हैं?

गुड़गाँव से आये थे। बैठने पर भी गुस्सा कम नहीं हुआ : मजदूर जो कुछ भी कहेंगे वही आप छाप देंगे क्या? मजदूर तो झूठ बोलते हैं। हो सकता है कि जिसने लिखवाया है वह अब हमारे यहाँ हो ही नहीं और कम्पनी की बदनामी करना चाहता हो। एक-दो बार अखबार में और छप जायेगा तो हमें कम्पनी बन्द करनी पड़ेगी। तब मजदूरों को रोटी आप खिलायेंगे? नौकरी आप देंगे? गुड़गाँव में इस समय एक्सपोर्ट कम्पनियों के हजारों मजदूर सड़क पर हैं। आप उन्हें रोटी खिलाइये। उनकी नौकरी लगवाइये। उन फैक्ट्रियों को खुलवाइये …

# किस फैक्ट्री की खबर है? क्या लिखा है उस में? मजदूर समाचार के जनवरी व फरवरी अंकों में लिखा था : “… सुबह 9 से रात 9 ड्युटी … हैल्परों की तनखा 2350 और कारीगरों की 3000-3500 रुपये। सौ से ज्यादा मजदूर हैं पर ई.एस.आई. व पी.एफ. 30 के ही हैं।” इसमें क्या-क्या गलत है …

आप मजदूरों की ही बातें क्यों छापते हैं? हमारी बातें भी छापिये। मजदूर कामचोरी करते हैं। मशीनें खराब करते हैं। तोड़फोड़ कर नुकसान पहुँचाते हैं। अर्जेन्ट माल को लटका देते हैं। ऐन मौके पर ओवर टाइम पर रुकते नहीं और बहाने बना कर छुट्टी कर लेते हैं। सरल काम को ठीक से करना सिखाने में भी 2-4-10 दिन लग जाते हैं और तभी छोड़ कर दूसरी जगह चले जाते हैं …

हम छोटी फैक्ट्री वालों की परेशानियाँ बहुत हैं। मण्डी में होड़ बहुत ज्यादा है। चीन का माल बहुत सस्ता है। बड़ी कम्पनियों से यहाँ हम प्रतियोगिता नहीं कर सकते। क्वालिटी में उनका मुकाबला करना भारी पड़ता है। बैंकों से कर्ज लिया है। तैयार माल लेने वाली पुरानी पार्टियों को बनाये रखना है और नई पार्टियाँ बनानी हैं। कभी अर्जेन्ट माल के लिये मारामारी तो कभी काम कम होने का रोनाधोना। न किसी को रखना आसान है और न किसी को निकालना आसान। किसी से भी काम करवाना तो बहुत-ही मुश्किल है। पार्टियों को समय पर माल देने के लिये जनरेटरों का इस्तेमाल करना बहुत महँगा पड़ता है। पार्टियों से पेमेन्ट वसूलना …

हर समय सौ झंझट रहते हैं। आपने हमारी कम्पनी के बारे में छाप कर परेशानियाँ बढा दी हैं। श्रम विभाग ने छापा मारा। उप श्रमायुक्त सख्ती से पेश आई और बोली कि मजदूरों को कम से कम 3510 रुपये वेतन तो दो ही। जिन्हें हम माल देते हैं वे कहने लगे हैं कि अखबारों में आने लगा है कि तुम मजदूरों को तनखा कम देते हो, हम तुम्हारा माल नहीं लेंगे। सरकारी अधिकारी-कर्मचारी तो हर समय लेने के फेर में रहते हैं। हम किस-किस को दें? आपने हमें ई.एस.आई., पी. एफ., एक्साइज वालों की नजरों में ला दिया है। कितना टैक्स दें! अखबार में अपनी बातें देख कर मजदूर भी भड़कते हैं। सोच-सोच कर रात को नींद नहीं आती …

फैक्ट्री लगाने में बहुत फायदा है सोच कर मैंने नौकरी छोड़ी … और मैंने वकालत छोड़ी …

# क्या-क्या गलत है? ड्युटी 12 घण्टे …

4 घण्टे का ओवर टाइम देते हैं!

# तीन महीने में 50 घण्टे से ज्यादा ओवर टाइम नहीं का कानून है। आप तो एक महीने में ही 100 घण्टे से ज्यादा … ओवर टाइम का भुगतान दुगुनी दर से करने का कानून है। करते हैं क्या?

सब कम्पनियाँ सिंगल रेट से ओवर टाइम की पेमेन्ट करती हैं। हम भी सिंगल रेट से देते हैं। दुगुनी दर से भुगतान करने पर कम्पनी चल ही नहीं सकती। डबल रेट से देने पर हमें बचेगा क्या?

# ई.एस.आई. 100 में 30 मजदूरों की ही …

काम ज्यादा होने पर हम मजदूर भर्ती करते हैं और काम कम होने पर निकाल देते हैं। महीना-बीस दिन के लिये किसी की ई.एस.आई. करवाने का क्या फायदा? फिर, मजदूर स्वयं कहते हैं कि ई.एस.आई. में अच्छी दवाइयाँ नहीं मिलती। जगह-जगह लम्बी-लम्बी कतारें लगानी पड़ती हैं। पूरा दिन खराब हो जाता है, दिहाड़ी मारी जाती है। डॉक्टरों के नखरे ऊपर से। ई.एस. आई. होने से तो ना होनी ही भली …

# 100 में 30 मजदूरों की ही पी.एफ …

मजदूर खुद ही कहते हैं कि इतनी कम तनखा में उनका गुजारा मुश्किल से होता है इसलिये तनखा से पी.एफ. मत काटो। फण्ड का फार्म भरने, जमा करने, निकालने के लिये बैंक खाता हो … कई झंझट हैं। इन लफड़ों से तो अच्छा है ई.एस.आई., पी.एफ. नहीं होना ताकि कम से कम तनखा तो पूरी मिले। इसलिये हम …

# लेकिन फैक्ट्री में काम कर रहे किसी मजदूर की ई.एस.आई. व पी.एफ. नहीं होने का मतलब तो यह है कि वह मजदूर फैक्ट्री में होते हुये भी फैक्ट्री में नहीं है।

फैक्ट्री बन्द करने में क्या लगता है। हम एक दिन में कम्पनी बन्द कर दें। लेकिन हम चाहते हैं कि फैक्ट्री चलती रहे। हम मजदूरों को रोटी दे रहे हैं। उनके बच्चे इस कम्पनी के पीछे पल रहे हैं। हमें ऊपरवाला रोटी दे रहा है। हम यह सोच कर जैसे-तैसे फैक्ट्री चला रहे हैं कि हम भी कुछ लोगों को रोटी दे रहे हैं। इससे हमारी आत्मा को तसल्ली होती है।

— (मजदूर समाचार, अप्रैल 2008)

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