मसला यह व्यवस्था है (6)

इस-उस नीति, इस-उस पार्टी, यह अथवा वह लीडर की बातें शब्द-जाल हैं, शब्द-आडम्बर हैं

● राजे-रजवाड़ों के दौर में, बेगार-प्रथा के दौर में मण्डी-मुद्रा का प्रसार कोढ में खाज समान था। छोटे-से ग्रेट ब्रिटेन के इंग्लैण्ड-वेल्स-स्कॉटलैण्ड-आयरलैण्ड में भेड़ों ने, भेड़-पालन ने मनुष्यों को जमीनों से खदेड़ा। कैदखानों में जबरन काम करवाने, दागने, फाँसी देने के संग-संग बेघरबार किये गये लोगों को दोहन-शोषण के लिये दूरदराज अमरीका-आस्ट्रेलिया जैसे स्थानों पर जबरन ले जाया गया। उन स्थानों के निवासियों के लिये तो जैसे शामत ही आ गई हो। गुलामी जिनकी समझ से बाहर की चीज थी उन अमरीकावासियों के कत्लेआम किये गये। अफ्रीका से गुलाम बना कर लोगों को अमरीकी महाद्वीपों में काम में जोता गया।

● फैक्ट्री-पद्धति ने मण्डी-मुद्रा के ताण्डव को सातवें आसमान पर पहुँचा दिया। मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन वाली फैक्ट्री-पद्धति को भाप-कोयले ने, भाप-कोयला आधारित मशीनरी ने स्थापित किया। इसके संग दस्तकारी और किसानी की मौत, दस्तकारी-किसानी की सामाजिक मौत आरम्भ हुई। छोटे-से ग्रेट ब्रिटेन के कारखानों में 6-7 वर्ष के बच्चों, स्त्रियों और पुरुषों को सूर्योदय से सूर्यास्त तक काम में जोता गया और … और बेरोजगार बने-बनते लाखों लोगों के लिये अनजाने, दूरदराज स्थानों को पलायन मजबूरी बने।

●फ्रान्स-जर्मनी-इटली … में फैक्ट्री-पद्धति के प्रसार के संग वहाँ भी आरम्भ हुई दस्तकारी-किसानी की सामाजिक मौत लाखों को मजदूर बनाने के संग-संग यूरोप से बड़े पैमाने पर लोगों को खदेड़ना भी लिये थी। अमरीका … आस्ट्रेलिया … लोगों से “भर गये”।

● बिजली ने रात को भी काम के लिये खोल दिया। फैक्ट्री-पद्धति ने हमारी नींद ही नहीं उड़ाई बल्कि मारामारी का वह अखाड़ा भी रचा कि 1914-19 के दौरान ढाई करोड़ लोग और 1939-45 के दौरान पाँच करोड़ लोग तो युद्धों में ही मारे गये।

● अब फैक्ट्री-पद्धति में यह इलेक्ट्रोनिक्स का दौर है। फैक्ट्री-पद्धति का प्रसार पृथ्वी के कोने-कोने में और सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में हो रहा है। इस दौर में एशिया-अफ्रीका-दक्षिणी अमरीका में दस्तकारी-किसानी की सामाजिक मौत तीव्र गति से हो रही है। भारत के, चीन के करोड़ों तबाह दस्तकार-किसान कहाँ जायें? इलेक्ट्रोनिक्स द्वारा दुनियाँ-भर में बेरोजगार कर दिये गये, बेरोजगार किये जा रहे करोड़ों मजदूर कहाँ जायें?

## विद्यालय-शिक्षा की बुनियादी इकाइयाँ अक्षर व अंक लिखित आदान-प्रदानों के आधार व जरिय ही नहीं है बल्कि एकरूपता-स्टैन्डर्डाइजेशन-मानकीकरण के माध्यम के रूप में यह व्यक्ति को संकीर्ण व्यवहार में धकेलने और व्यवस्था की निरंकुशता के साधन भी हैं। औजार सहायक की बजाय अभिशाप बन गया है। अक्षर-अंक का व्यापक प्रसार, विद्यालयों का पृथ्वी-व्यापी जाल मण्डी के विस्तार के संग-संग चला है। अक्षर-अंक और मण्डी एक-दूसरे के पूरक-से साबित हुये हैं। ऐसे में आइये अक्षर-अंक को कुछ और कुरेद कर देखें।

— अक्षर-अंक के निश्चित रूप। इन रूपों की पहचान और प्रयोग। अक्षर व अंक के नियम-उपनियम। यह स्वयं में अनुशासन लिये हैं। अनुशासन अपने में संकीर्ण व्यवहार लिये है। अनुशासन साहबों का, प्रबन्धकों का प्रिय शब्द है।

— निश्चित रूप, एकरूपता, स्टैन्डर्डाइजेशन अक्षर-अंक की ही तरह प्रोडक्ट और उत्पादन-प्रक्रिया में क्षेत्र व उद्योग विशेष से आरम्भ हो कर सर्वत्र व सार्विक बन, विश्व स्टैन्डर्ड बन कर सम्पूर्ण पृथ्वी पर मजदूरों/मनुष्यों को निश्चित आकार-प्रकार के पुर्जों में बदलने को अग्रसर है। दस्तकार की मनमर्जी पर रोक, कुशल मजदूर की मर्जी पर पाबन्दी वास्तव में व्यक्ति/व्यक्तित्व के लिये स्थान सिकोड़ना है। व्यक्ति/व्यक्तित्व के महत्व का विलोप …

— “निरंकुशता का अन्त” इतिहास के पाठ के तौर पर पढाया जाता है। राजा-बादशाहों की मनमर्जी के किस्से और उन पर लगाम के लिये नियमों-कानूनों के महत्व की बातें की जाती हैं। व्यक्ति की निरंकुशता को नियमों-कानूनों के तानों-बानों में जकड़ कर समाप्त कर दिया गया … विद्यालयों के “सर्व शिक्षा अभियानों” द्वारा अक्षर-अंक की पहचान-प्रयोग में सब को खींच लेना प्रत्येक को क्रेता-विक्रेता में तब्दील करने, हरेक को बेचने-खरीदने वाले में बदल देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। मण्डी के नियम-कानून “व्यक्ति की निरंकुशता का अन्त” और … और समाज व्यवस्था की निरंकुशता लिये हैं। सामाजिक प्रक्रिया की निरंकुशता ने जगन्नाथ के रथ को बहुत बौना बना दिया है।

— अक्षर व अंक की जुगलबन्दी व्यक्ति को समाज की इकाई के तौर पर स्थापित करने में उल्लेखनीय रोल अदा करती है। विद्यालय में रोल नम्बर, उपस्थित/अनुपस्थित की दैनिक क्रिया मण्डी-मुद्रा-फैक्ट्री पद्धति की व्यक्ति
को अपनी आधारभूत इकाई स्थापित करने की प्रक्रिया को पुष्ट करती है। उत्पादन और वितरण में व्यक्ति का इकाई बनना प्रत्येक का अक्षर-अंक से परिचित होना तो अनिवार्य बनाता ही है, यह व्यक्ति को महिमामण्डित भी करता है। पुरुषों के संग महिलाओं को नौकरी-चाकरी में धकेलने के लिये सिद्धान्त की चाशनी भी …

— समुदाय के टूटने पर उभरी ऊँच-नीच वाली समाज व्यवस्थाओं में आमतौर पर पुरुष-केन्द्रित परिवार उनकी इकाई बने। विश्व मण्डी की स्थापना के आरम्भिक दौर में निजी व परिवार के श्रम द्वारा मण्डी के लिये उत्पादन वाले सरल माल उत्पादन में भी परिवार प्राथमिक इकाई बना रहा। फैक्ट्री-पद्धति, मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन वाली वर्तमान समाज व्यवस्था परिवार को छिन्न-भिन्न कर व्यक्ति को ऊँच-नीच का एक स्तम्भ बनाने को अग्रसर है। संयुक्त परिवार का विलोप-सा हो गया है। पति-पत्नी-बच्चे वाले परिवार लड़खड़ा रहे हैं, टूट रहे हैं …

— व्यक्ति/व्यक्तित्व को एक तरफ गौण-दर-गौण बनाती और दूसरी तरफ व्यक्ति का महत्व स्थापित करती वर्तमान समाज व्यवस्था वास्तव में गौण को महत्वपूर्ण बना रही है। छवि की महामारी … नये समुदाय आधारित समाज रचना के प्रयासों के लिये यह एक पुकार भी है।

नीति, पार्टी, नेता बदलने से इस सब में कोई फर्क पड़ेगा क्या?

ऊँच-नीच। आधुनिक ऊँच-नीच। अखाड़ा — मण्डी। विश्व मण्डी। होड़-प्रतियोगिता-कम्पीटीशन का सर्वग्रासी अभियान। स्वयं मनुष्यों का मण्डी में माल बन जाना। यह है वर्तमान समाज व्यवस्था।

—(मजदूर समाचार, जनवरी 2005 अंक)

 

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