निकट भविष्य की कुछ आशंकायें और कुछ आशायें

जनवरी 2010 से फरवरी 2020 अंकों पर आधारित “सतरंगी” छापने के पश्चात अब मजदूर समाचार के जनवरी 2005 से दिसम्बर 2009 अंकों की सामग्री से पुस्तक “सतरंगी-2” तैयार कर रहे हैं। छियालिसवाँ अंश मार्च  2009 अंक से है।

विगत-वर्तमान-भविष्य के जोड़ महत्वपूर्ण हैं। जो बीत गया उसके अनुभवों व विचारों से हम वर्तमान को प्रभावित करने के प्रयास करते हैं। और, आज हम अपने आने वाले कल को बदलने की कोशिशें करते हैं। इस सन्दर्भ में यहाँ हम आने वाले पाँच-दस-पन्द्रह वर्ष को देखने का एक प्रयास कर रहे हैं। विभिन्न कोणों से – दृष्टियों से ऐसे प्रयास करना हमें आज क्या करें और क्या नहीं करें यह तय करने में सहायता करते हैं। लक्ष्य है आशंकाओं की सम्भावनाओं को घटाना। मकसद है आशाओं की सम्भावनाओं को बढ़ाना।

                    आशंकायें

● टेढापन बढेगा। डर है कि चौतरफा बढती परेशानियाँ टेढापन बढायेंगी। बढ़ती झूठ-फरेब, छल-कपट सहज सम्बन्धों को डुबो देंगी। आशंका है कि टेढापन तालमेलों पर घातक चोट मारेगा।

● कुण्ठा बढेगी। डर है कि स्वयं को दोष देने की प्रवृति बढेगी। आशंका है कि अपने आप को काटना बढेगा, स्वयं को पीड़ा पहुँचाना व्यापक बनेगा, आत्महत्यायें बढ़ेंगी।

● घुटन बढेगी। डर है कि अपने जैसों को दोषी ठहराना बढेगा। आशंका है कि “अन्य” को, “दूसरों” को दोषी करार देने की प्रवृति महामारी बनेगी। भय है कि अपने जैसों के बीच, एक जैसों के बीच मार-काट बढ़ेगी।

● हिंसा, संगठित हिंसा बढेगी। डर है कि अत्याधिक हिंसा समस्याओं को ढंँक देगी। आशंका है कि सुरक्षा की मृगमरीचिका हिंसा की दलदल को सर्वत्र फैला देगी। भय है कि भारत सरकार की सेनायें “शान्ति-स्थापना” के लिये पाकिस्तान-अफगानिस्तान-बांग्लादेश-ईरान में होंगी।

● एटम बमों से युद्ध। डर है कि सरकारों के बीच गिरोहबन्दियाँ बढेंगी। आशंका है कि सार्विक बनी हिंसा के उपचार के नाम पर एटम बमों से युद्ध होंगे। भय है कि अमरीका सरकार और भारत सरकार के बीच गिरोहबन्दी विनाश की राह पर रफ्तार बढायेगी।

● प्रदूषित पर्यावरण। डर है कि कोयले-तेल-रसायनों-संकेन्द्रित पदार्थों के प्रदूषण में परमाणु बिजलीघरों और एटम बमों के प्रदूषण का जोड़ पृथ्वी को जीवन के अयोग्य बना देगा। आशंका है कि मनुष्यों का ताण्डव अपने संग अन्य जीवों को भी पृथ्वी से मिटाने की सम्भावना को बढायेगा। भय है कि पर्यावरण की क्षतिपूर्ति की सीमायें पार हो जायेंगी।

                   आशायें

◆ सीधापन बढेगा। आशा है कि झूठ-फरेब-तिकड़मबाजी-कपट से लहुलुहान मन सहज सम्बन्धों के लिये अधिकाधिक तड़पेंगे। उम्मीद है कि यह तड़प सीधे-सच्चे रिश्तों को बढायेगी। आशा है कि भरोसे बढ़ेंगे और अनेकानेक प्रकार के तालमेल बनेंगे।

◆ स्वयं के लिये आदर बढेगा। आशा है कि अपने व्यक्तित्व में एक नहीं बल्कि अनेक विभाजन के वास्तविक कारण : हर समय पड़ते चौतरफा दबावों की पहचान बढेगी। उम्मीद है कि स्वयं के लिये आदर अपने तन-मन पर अत्याचारों को समाप्त करने की राहों पर हमें बढायेगा।

◆ दूसरों के लिये आदर बढेगा। आशा है कि स्वयं के लिये आदर दूसरों के लिये आदर का आधार बनेगा। उम्मीद है कि हर समय प्रत्येक पर चौतरफ दबावों की पहचान बढेगी। आशा है कि अपने और दूसरों के लिये बढता आदर प्रेम में फलीभूत होगा।

◆ सहज आदान-प्रदान बढ़ेंगे। आशा है कि बार-बार का विस्थापन, बढता विस्थापन विभिन्न प्रकार के पूर्वाग्रहों को दफन करेगा। उम्मीद है कि सहज आदान-प्रदान त्रासदी की जड़ों को उजागर करेंगे। आशा है कि इससे प्रत्येक के लिये सम्भव आसान गतिविधियों का महत्व स्थापित होगा।

◆ दिवालिये बढेंगे। आशा है बढती संँख्या में बैंकों का दिवाला निकलना जारी रहेगा। उम्मीद है कि फैक्ट्रियाँ बन्द होने की गति तीव्र होती जायेगी। आशा है कि सरकारों की डगमगाहट बढेगी और भरभरा कर सरकारों का गिरना सामान्य बनेगा। उम्मीद है कि रुपये-पैसे में राहत ढूँढना दम तोड़ेगा। आशा है सरकारों पर भरोसे समाप्त होंगे। उम्मीद है मजदूरी-प्रथा पर सवाल उठाना व्यापक बनेगा।

◆ सामाजिक प्रक्रिया पर ध्यान केन्द्रित होगा। आज 20-22 वर्ष की आयु वाले मजदूरों द्वारा 5-6 कार्यस्थलों का अनुभव प्राप्त करना सामान्य बनता जा रहा है। आशा है कि यह इस-उस व्यक्ति अथवा संस्था-विशेष तक सीमित रहने की प्रवृति को तोड़ेगा। उम्मीद है कि यह सामाजिक प्रक्रिया को अखाड़े में खींच लेगा। आशा है कि समस्याओं का ताना-बाना उजागर होगा और उससे पार पाने के लिये जो आवश्यक हैं उन से परिचय बढेगा।

◆ आवागमन तालमेलों को जोड़ेगा। आशा है कि पृथ्वी पर एक से दूसरे स्थान पर बढता आवागमन स्थानीय तालमेलों को एक-दूसरे से जोड़ेगा। उम्मीद है कि तालमेलों के विश्व व्यापी ताने-बाने की रचना होगी। आशा है कि सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैले और आपस में जुड़े सहज तालमेल नई समाज रचना के लिये संगठित प्रयासों के आधार बनेंगे।

आईये, ऊँच-नीच, मण्डी-मुद्रा, मजदूरी-प्रथा वाली वर्तमान समाज व्यवस्था के स्थान पर गैरबराबरी नहीं, उपहार, समुदाय-प्रथा वाली नई समाज रचना के लिये कर्म व वचन में आदान-प्रदान बढायें।

  (मजदूर समाचार, मार्च 2009)

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