होण्डा से हीरो और फिर हीरो से होण्डा

जुलाई 2005 के बाद से अन्य कुछ धाराओं की तरह मजदूर समाचार का ध्यान भी होण्डा मानेसर फैक्ट्री में मजदूरों की गतिविधियों में बढा। यूनियन बनने को मजदूरों की विजय प्रसारित करने वालों के विपरीत था मजदूर समाचार का आंकलन। होण्डा में यूनियन का पंजीकरण होते ही मैनेजमेन्ट ने यूनियन को मान्यता दी और सरकार की छत्रछाया में मैनेजमेन्ट-यूनियन समझौता हुआ था। उक्त समझौते के होण्डा मजदूरों द्वारा विरोध के कारण मजदूर समाचार के अगस्त 2005 अंक में दिये हैं।

जुलाई 2005 के मैनेजमेन्ट-यूनियन समझौते के साथ होण्डा फैक्ट्री में कार्यरत ठेकेदार कम्पनी के जरिये रखे सब वरकर, 1000 मजदूर निकाल दिये गये थे। नई भर्ती। और, सितम्बर 2006 में नये मैनेजमेन्ट-यूनियन समझौते के विरोध में ठेकेदार कम्पनियों के जरिये रखे नये मजदूर तथा अप्रेंटिस होण्डा फैक्ट्री के अन्दर बैठ गये थे।

टेम्परेरी वरकरों द्वारा काम बन्द करने पर यूनियन समर्थकों का समवेत स्वर : “यह होण्डा मैनेजमेन्ट का यूनियन तोड़ने का षड्यंत्र है!” और, यूनियन बचाने के लिये अति सक्रियों में नई अखिल भारत यूनियन की गुड़गाँव क्षेत्र में एक नेत्री भी थी।

फैक्ट्री के अन्दर बैठे मजदूरों से मिलने तक की हिम्मत होण्डा यूनियन लीडरों में नहीं थी। ऐसे में यूनियन बचाने में लगी युवा नेत्री को होण्डा मैनेजमेन्ट ने फैक्ट्री के अन्दर जा कर अपने “नारी गुणों” का प्रयोग करने दिया था। पता लगाया कि काम बन्द कर बैठे इन मजदूरों में 19 अप्रैल 2006 को हीरो होण्डा गुड़गाँव फैक्ट्री में काम बन्द कर बैठ गये ठेकेदार कम्पनियों के जरिये रखे 5500 वरकरों में से भी लोग थे। हीरो से निकाले जाने के बाद कुछ मजदूर होण्डा में लग गये थे। हीरो फैक्ट्री की 19 अप्रैल की बातें मजदूर समाचार के मई 2006 अंक में हैं।

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प्लॉट 1 सैक्टर-3 मानेसर, गुड़गाँव स्थित होण्डा मोटरसाइकिल एण्ड स्कूटर कम्पनी, यूनियन तथा अतिरिक्त श्रमायुक्त व उपश्रमायुक्त द्वारा हस्ताक्षरित तीन वर्षीय समझौते पर गुड़गाँव के डी.सी. ने बधाई दी। सोमवार, 18 सितम्बर को यूनियन ने सभा कर मजदूरों को समझौते के बारे में बताया। ठेकेदार कम्पनी के जरिये रखे वरकर और अप्रेन्टिस सवाल उठाने लगे तब लीडरों ने यह कह कर सभा समाप्त कर दी कि कम्पनी ने मीटिंग के लिये डेढ़ घण्टा दिया था और दो घण्टे हो गये हैं, बाद में बात कर लें।
मंगलवार, 19 सितम्बर को ए-शिफ्ट में ड्युटी पर पहँचते ही ठेकेदार कम्पनी के जरिये रखे वरकर और अप्रेन्टिस एक कैन्टीन में जा कर बैठ गये। मरने-मारने पर उतारू मजदूरों से बात करने की हिम्मत यूनियन लीडरों की नहीं हुई। कम्पनी ने कैन्टीन के बाहर से ताला लगा दिया, कैन्टीन का पानी काट दिया, बिजली काट दी। कम्पनी के तीसरा नेत्र होता तो वह विद्रोही मजदूरों को भस्म कर देती।
होण्डा कम्पनी ने फैक्ट्री के अन्दर ए-शिफ्ट के उन मजदूरों को तो बन्द कर दिया था पर उनके बी व सी-शिफ्ट के साथी बाहर थे। अखबार-टीवी वालों से सम्पर्क करने पर वे 25 जुलाई 2005 के हँगामे को याद कर खबर के लिये फैक्ट्री पहुँचे। कम्पनी ने अखबार-टीवी वालों को फैक्ट्री के अन्दर नहीं जाने दिया और कहा कि 150 मजदूरों का ही मामला है। मोबाइल फोन पर वरकरों ने अपनी सँख्या 1200-1500 बताई। यूनियन के अनुसार 700 के करीब। झमेला देख कम्पनी ने कैन्टीन के लगाया ताला खोला। मजदूर कैन्टीन में बैठे रहे। ठेकेदार कम्पनी के जरिये रखे बी-शिफ्ट के मजदूरों तथा अप्रेन्टिसों को 19 सितम्बर को कम्पनी ने बी-शिफ्ट में फैक्ट्री के अन्दर नहीं जाने दिया। बी और सी-शिफ्ट के इन वरकरों ने फैक्ट्री गेट पर एकत्र हो कर नारे लगाना शुरू किया।
समझौते पर खुशी जाहिर करने वाले काँइयाँ श्रम अधिकारियों के हाथ-पाँव फूल गये। चण्डीगढ से श्रमायुक्त 20 सितम्बर को होण्डा फैक्ट्री पहुँचा। फैक्ट्री के अन्दर आये साहब से कम्पनी और यूनियन नहीं मिले! काम बन्द कर अन्दर डटे विद्रोही मजदूरों ने श्रमायुक्त से चार घण्टे बात की और निष्कर्ष निकाला कि यह साहब मजदूरों की स्थिति तथा रुख का जायजा लेने आया था ताकि कम्पनी को वस्तुस्थिति से अवगत करा सके।
डी.सी. गुड़गाँव ने स्थिति को सामान्य बताया और होण्डा फैक्ट्री के अन्दर पुलिस बैठा दी। भूख से बेहोश होते मजदूरों को अस्पताल पहुंँचाने के लिये डी. सी. ने होण्डा फैक्ट्री के अन्दर एक सरकारी एम्बुलैन्स भी खड़ी कर दी।
न्यायालय ने 22 सितम्बर को मजदूरों के विद्रोह को अवैध करार दिया और पुलिस व प्रशासन को उन्हें फैक्ट्री से निकालने तथा गेट वालों को 300 मीटर दूर खदेड़ने के आदेश दिये। आदेशों का पालन नहीं होने पर न्यायालय ने 23 सितम्बर को यही आदेश पुनः दिये।
यूनियन के नाकारा साबित होने पर कुछ यूनियन समर्थकों ने विद्रोही मजदूरों को टटोलने, समझाने और इनमें से “भड़काने वालों” को छाँटने व अलग-थलग करने के लिये पापड़ बेले।
     24 सितम्बर को बगावत ठण्डी हुई।
थोड़े ही समय में जगह-जगह के अनुभवों से लैस हो कर होण्डा फैक्ट्री पहुँचे और वहाँ विद्रोह करने वाले इन नौजवान मजदूरों को हम सलाम करते हैं।
पिछले वर्ष होण्डा मोटरसाइकिल एण्ड स्कूटर कम्पनी में 1200 स्थाई, 1600 ट्रेनी, 1000 ठेकेदार के जरिये रखे और 400 अप्रेन्टिस थे। जुलाई 2005 के हँगामे के बाद कम्पनी ने नये ट्रेनी नहीं रखे हैं। अब फैक्ट्री में 1600 स्थाई, 500-600 ट्रेनी और ठेकेदार के जरिये रखे तथा अप्रेन्टिस मिला कर 2000 के करीब लगते हैं। पिछले वर्ष होण्डा फैक्ट्री में मजदूरों के अनुसार सबसे बड़ी समस्या काम-काम-काम और काम थी। इधर कम्पनी-यूनियन तीन वर्षीय समझौते में उत्पादन डेढ-दो गुणा करने के लिये स्थाई मजदूरों की तनखा बढाने के संग इनसेन्टिव के दाने डाले गये हैं। गुडईयर टायर के एक अनुभवी मजदूर के अनुसार इनसेन्टिव के फेर में होश खो कर पहलेपहल मजदूर गुड़ में चिपट जात चींटे की तरह हो जाते हैं।
विद्रोह के दौरान होण्डा फैक्ट्री में स्थाई मजदूर उत्पादन कार्य करते रहे।
(जानकारियाँ छिटपुट में इधर-उधर से ली हैं।)
— मजदूर समाचार, अक्टूबर 2006 अंक

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