किसान आन्दोलन, 8 और 9 जनवरी 2022

● पहली जनवरी को व्हाट्सएप पर श्री सज्जन कुमार, महासचिव, प्रकृति-मानव केन्द्रित जन आन्दोलन से संगठन की पंजाब राज्य समिति द्वारा 8 और 9 जनवरी को पर्यावरण तथा कृषि के पतन के कारण चौतरफा संकट से रूबरू पंजाब के सन्दर्भ में कॉन्फ्रेंस की सूचना मिली।

इस से पहले श्री सज्जन कुमार से 25 दिसम्बर को व्हाट्सएप पर एक ऑडियो-वीडियो मिला था जिस पर 26 दिसम्बर को उन्हें हम ने अपनी रेस्पॉन्स भेजी थी।

8 जनवरी को मेरे संगरूर के पास मस्तुआना साहब जाने और कल रात फरीदाबाद लौटने के सन्दर्भ में यह देखें :

Sajjan Kumar Engg: https://youtu.be/9vdaTI1Jfy8

Sher Singh: सज्जन जी, व्हाट्सएप पर कल, 25 दिसम्बर को प्राप्त आपके 10 दिसम्बर के ऑडियो-वीडियो का एक अंश सुना। जीवन के इस चरण में इस सन्दर्भ में आपसे कुछ बातें कहना आवश्यक लगा है। आशा है कि आप किसी बात को अन्यथा नहीं लेंगे।

# आन्तरिक आपातकाल के समय आप लोगों से मेरे निकट सम्बन्ध बने थे। उस समय आप जोधपुर में इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र थे। आप लोगों ने उस समय के श्री गंगानगर जिले के गाँव-गाँव मेरा जाना सम्भव बनाया था। उसके बाद जालोर जिले के राजस्थान-गुजरात सीमा क्षेत्र के गाँव-गाँव मेरा जाना सम्भव बनाया था। फिर मैं राजस्थान से बाहर चला गया था।

उस समय क्रान्ति के लिये ग्रामीण गरीबों पर केन्द्रित रहने, किसानों और दस्तकारों में गतिविधियाँ वाली बात थी।

1979 में ग्रामीण गरीबों के स्थान पर शहरों में फैक्ट्री मजदूरों पर ध्यान केन्द्रित करने की बात आई तब मैं मध्य प्रदेश में चम्बल-कूनो-कुँवारी नदियों के जँगल-पहाड़ी क्षेत्र में सहरिया समूह के बीच था। फैक्ट्री मजदूरों के बीच रहने के लिये मैं ग्वालियर, फिर इन्दौर होते हुये भोपाल में बी एच ई एल फैक्ट्री पहुँचा था।

इन्दौर था तब राजस्थान में माही बाँध के निर्माण क्षेत्र में कार्यरत इंजीनियर मित्रों से मिलने गया था। मित्रों के नाम याद नहीं हैं। वे ग्रामीण पृष्ठभूमि के थे और किसानों के बारे में कम्युनिस्ट घोषणापत्र की बातों पर उनका अचम्भित करने वाला आश्चर्य मेरी स्मृति में है।

# अलगाव के बाद 1982 से मैं फरीदाबाद में हूँ। मासिक मजदूर समाचार के इर्दगिर्द जीवन रहा है। इन चालीस वर्षों के दौरान फरीदाबाद के संग-संग ओखला औद्योगिक क्षेत्र, उद्योग विहार गुड़गाँव, इन्ड्स्ट्रीयल मॉडल टाउन मानेसर, और नोएडा में फैक्ट्री मजदूरों से नियमित सम्बन्ध रहे हैं।

गिरधारी, आप और अन्य मित्रों का अहमदाबाद में फैक्ट्री मजदूरों के बीच जाना। ग्रामीण क्षेत्रों में लौटना। नीला झण्डा अपनाना। चुनावी राजनीति में भाग लेना आदि के बारे में मुझे कम ही जानकारी रही है।

# तीसेक वर्ष बाद आपके साथ उल्लेखनीय मिलना हुआ। तब आप “प्रकृति-मानव केन्द्रित जन आन्दोलन (Nature-Human Centric People’s Movement” के महासचिव थे।
और खेती-किसानी आपकी गतिविधियों में उल्लेखनीय लगी थी।

मजदूर समाचार के 2010 के मई अंक से “कुछ बातें किसानी-दस्तकारी की” और अगस्त अंक से “ग्रामीण गरीबों के खिलाफ नया युद्ध” को आपके ध्यान में लाने के प्रयास किये थे।

# इधर 2020-21 वाले “किसान आन्दोलन” के सम्बन्ध में आपकी धारणाओं तथा अतिसक्रियता ने 1980 में माही बाँध निर्माण क्षेत्र में इंजीनियर मित्रों की स्मृति को उभारा है। यह सब चालीस वर्ष बाद, जब किसानी खेती यहाँ सामाजिक मँच पर पृष्ठभूमि में चली गई है। और, दस वर्ष पहले माओवादी पार्टी के जेल में बन्द एक सिद्धान्तकार, कोबाड गांधी, सार्वजनिक लेख में विश्व-भर में किसानों को क्रान्ति का आधार मानने वाले संगठनों की स्थिति को अब pathetic (दयनीय) बताते हैं।

सज्जन जी, किसानों और किसानी के बारे में 14 नवम्बर 2020, 24 दिसम्बर 2020, 29 जनवरी 2021, 31 मई 2021को हिन्दी में प्रसारित सामग्री आपको भी भेजते रहे हैं। अँग्रेजी में जनवरी 2021 में “A Note on Peasants in the Indian Subcontinent” भी आपको भेजा था। किसी पर भी आपने रेस्पॉन्स नहीं दी। बस “किसान आन्दोलन” में लगे रहे हैं।

आशा है कि “किसान आन्दोलन” के स्थगित कर दिये जाने के बाद, अब आप लोग मजदूर समाचार की इस सम्बन्ध में बातों पर कुछ रेस्पॉन्स देंगे।

# 9 जनवरी को सुबह श्री सज्जन कुमार ने बताया कि उन्होंने उनके ऑडियो-वीडियो पर हमारी रेस्पॉन्स पढी ही नहीं थी।

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