मजदूर समाचार पुस्तिका एक- एक युवा मजदूर के साथ आदान-प्रदान

एक युवा मजदूर पुस्तिका पढने लगा। कुछ देर बाद अन्दर वाले कमरे में प्रसन्नता से भरा आया। खुशी-खुशी बोला :
# “क्रुर बुद्धि की एक झलक” पढ कर मुझे हमारे सुपरवाइजर का ध्यान आया।
# कोरोना वायरस की चर्चा के बीच मैनेजमेन्ट ने 12 मार्च को फैक्ट्री में मास्क दिये। कान का सपोर्ट लिये , नाक-मुँह ढाँपने के वास्ते यह एक सामान्य-सी काली पट्टी है।
# बड़े विभागों में यह मास्क मजदूरों को 12 मार्च को ही दे दिये गये। हमारा छोटा विभाग है , 23-24 वरकर ही हैं। भट्टी , डामर (बिटुमिन) , थिन्नर के प्रयोग के कारण इस छोटे विभाग में प्रदूषण वैसे भी बहुत है। और , सुपरवाइजर ने वे मास्क हमें देने की बजाय अपने लॉकर में रख दिये।
# हम ने सोचा कि सुपरवाइजर मास्क शुक्रवार को दे देगा। लेकिन 13 मार्च को भी सुबह हमें वे पट्टियाँ नहीं दी।
# हमारे बीच आपस में बातें। सुबह के टी-ब्रेक में सुपरवाइजर को सुनाने के लिये जोर-जोर से बोले। असर नहीं दिखा।
# एक वरकर ने सुपरवाइजर के पास जा कर मास्क माँगा। टाल दिया। फिर जा कर माँगा। सुपरवाइजर ने फिर टाल दिया। फिर उस वरकर ने विभाग में प्रदूषण की बात सुपरवाइजर से जा कर कही तो झल्ला कर उसे मास्क दे दी। सब वरकर टेम्परेरी हैं।
# दूसरे वरकर ने सुपरवाइजर के चक्कर लगाये। तँग हो कर सुपरवाइजर ने उसे भी काली पट्टी नाक-मुँह पर टाँगने के लिये दे दी। फिर ऐसे ही तीसरे को मास्क मिली।
# लेकिन बाकी मजदूरों को सुपरवाइजर ने काली पट्टियाँ नहीं दी। लन्च के समय मास्क के बारे में जोर-जोर से बातें। खूब खरी-खोटी बातें। अपने केबिन में कान लगाये सुपरवाइजर सुनने की कोशिश करता रहा।
# लन्च के बाद वाले टी-ब्रेक में भी मास्क बारे जोर-जोर से बातें। सुपरवाइजर के चेहरे पर परेशानी।
# फैक्ट्री में काम करते दस घण्टे हो रहे थे तब सुपरवाइजर अपने लॉकर से मास्क निकाल कर लाया। झल्लाया सुपरवाइजर काली पट्टियाँ बाँटते हुये : “ले! तू भी लें! तू भी ले…..।”

 

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