जनवरी 2010 से फरवरी 2020 अंकों पर आधारित “सतरंगी” छापने के पश्चात अब मजदूर समाचार के जनवरी 2005 से दिसम्बर 2009 अंकों की सामग्री से पुस्तक “सतरंगी-2” तैयार कर रहे हैं।
इस सन्दर्भ में अंश भेजते रहेंगे। पैंतिसवाँ अंश मार्च 2008 अंक से है।
सूर्योदय से सूर्यास्त वाला प्राकृतिक दिन महत्व खोता जा रहा है। बढती रोशनी रात को रात नहीं रहने दे रही।
रात्रि के अन्धेरे में मानव शरीर सामान्य तौर पर मेलाटोनिन हारमोन का उत्पादन करता है। यह हारमोन शरीर में रसोलियाँ नहीं बनने देने में एक भूमिका अदा करता है। इसलिये शरीर में मेलाटोनिन की कम मात्रा कैन्सर की सम्भावना बढा सकती है।
रात को काम करने वालों, रात को जागने वालों में मेलाटोनिन कम होती है क्योंकि रोशनी शरीर में इसके उत्पादन को रोक देती है। पूर्ति के लिये ऊपर से मेलाटोनिन लेना समाधान नहीं है क्योंकि यह इस हारमोन के प्राकृतिक उत्पादन को बन्द करने की प्रवृति लिये है।
रात की पाली में काम करती महिलाओं में स्तन कैंसर अधिक पाया गया है। रात्रि शिफ्ट में काम करते पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रन्थी का कैन्सर अधिक पाया गया है।
सूर्यास्त के बाद भी फैक्ट्रियों, हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों, मीडिया, होटलों में काम, ड्राइवरों-सेक्युरिटी गार्डो द्वारा काम विश्व-भर में सामान्य बात बन गई है। और ऐसा काम बढता जा रहा है। इधर यूरोप-अमरीका-आस्ट्रेलिया से भारत में स्थानान्तरित कॉल सेन्टरों, बी पी ओ का बढ़ता कार्य रात को ही काम करने को लाखों की नियति बना रहा है। देर रात तक टी.वी. के जरिये प्रायोजित आनन्द – प्रायोजित पीड़ा का उपभोग दुनियाँ में महामारी बन गया है। टशन के तौर पर जागते हुये रात के दो बजाना … खालीपन से भागने के लिये नाइट क्लब-नाइट लाइफ।
लाखों वर्ष के दौरान हमारा शरीर रात को सोने के लिये ढला है। कब सोते हैं यह महत्वपूर्ण है। कब जागते हैं और कब सोते हैं यह हमारे शरीर द्वारा अपनी मरम्मत करने पर प्रभाव डालते हैं। दिन में सोने पर भी रात्रि में जागने वालों की नींद पूरी नहीं होती … नींद की कमी शरीर की प्रतिरोध क्षमता घटा कर कैन्सर के खतरे बढा देती है।
हमारे शरीर की प्रकृति के विरुद्ध रात को जागना, रात्रि को काम करना हृदय रोग की आशंका भी बढाता है। अतिरिक्त थकावट तथा चिड़चिड़ापन रात को जागने से जुड़े हैं और यह स्वयं में सम्बन्धों को बिगाड़ना लिये हैं।
रोशनी हमारे जीवन का विस्तार नहीं कर रही। रात को जागना तन की पीड़ा व रोग और मन के अवसाद लिये है।
(2008 में जानकारी “The People” <www.slp.org> से ली थी)
(मजदूर समाचार, मार्च 2008)