● किसानी जाने को है ●

● किसानी जाने को है ●

## छुट्टे डाँगर-ढोर

24 दिसम्बर 2020 को हाँसी के निकट गढी गाँव में रात 9 बजे खेत की रखवाली से लौट रहे दो युवकों की दिल्ली-हिसार रोड़ पर किसी वाहन से लगी टक्कर में मृत्यु हो गई।

कुछ वर्ष से हरियाणा में खुले घूमते गाय-बछड़े-खागड़ फसलों के लिये बढती समस्या हैं। लोगों को रात को भी खेतों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। और, हिंसक भी हो रहे पशुओं के कारण दो लोगों का तो रखवाली के लिये होना आवश्यक ही हो गया है।

## “बेट्टा, गा गई।” — दस वर्ष पहले गाँव में सिर पुचकारते हुये तीन दादियों की कही बात बहुत-कुछ कहती लगती है।

गाँव-अपने गाँव के काफी कम अनुभव के आधार पर कुछ बातें :

** हाल्ई-पाल्ई

पंजाब के समय और 1966 में हरियाणा बनने के बाद भी गाँव में जीवन की काफी व्याख्या हाल्ई-पाल्ई से हो जाती थी। हल चलाना और डाँगर चराना प्रमुख कार्य थे। सड़क गाँव से आठ कोस दूर।

गाय बहुत। ऊँट हल जोतने, सामान ढोने, यात्रा के वाहन। कुछ भेड़-बकरी। भैंस इक्की-दुक्की। बणी और गाँव के चारों तरफ जोहड़। फसलों के समय भी पशुओं को चरने-चराने के साधन व स्थान।

बणी और जोहड़ सब के थे। शामलात जमीन थी। Commons. सरकार ने “पंचायत” की आमदनी बढाने के नाम पर शामलाल जमीनें हड़प ली। जोहड़ों की जमीनें नीलामी के माध्यम से खेती की जमीन बनाई गई।

— फैक्ट्रियों द्वारा खुड्डेलाइन लगाये जा रहे दस्तकारों के पशु रखने के साधनों पर चोट। अन्य धन्धों में धकेले जाने की गति में वृद्धि। दस्तकारी की सामाजिक मौत की रफ्तार बढी।

— पाल्इयों की सामाजिक मृत्यु।

— जब-तब काफी बढ जाते चारे के भावों ने गाँवों में गायें रखना बहुत कम किया।

** सड़क

सड़क गाँव पहुँची। “दूध बेचा मानी पूत बेचा” की बात गई। भैंसें तेजी से बढी। गायें घटी और “गऊ माता” बातों में।

** ट्रैक्टर

खेत जोतने में ट्रैक्टर। वजन ढोने में ट्रैक्टर। यात्रा में भी ट्रैक्टर। बढते गये ट्रैक्टर।

— ऊँट आउट हुये। बैल गायब।

— गाय के बछड़ा जनने पर होती खुशी भी उड़ गई। और, गाँवों में घरों से स्थानीय गऊओं का विलोप। खागड़-साँड महत्वहीन हो जाने के संग-संग बढते सिरदर्द भी। कुछ शहरों में धकेले गये।

# और, इधर कुछ वर्षों से गाय-बछड़े-बैल लेने-ले जाने में डर।

गऊ परिवार हरियाणा में गाँवों में अन्तिम साँसें ले रहे लगते हैं। और तब तक वे, छुट्टे गाय-बछड़े-खागड़ के रूप में इधर से उधर खदेड़े जाने को अभिशप्त लगते हैं।

## किसानी की विदाई

— अस्सी वर्ष पहले, 1940 में ब्रिटिश इण्डिया आर्मी में सिपाही भर्ती होने पर किसान परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर जाने की बात थी। 1947 के बाद सेना और पुलिस तथा केन्द्र व राज्य सरकार के अन्य विभागों में उल्लेखनीय विस्तार की प्रक्रिया। सरकारी नौकरियों में किसान परिवार के लोगों की सँख्या काफी बढी। लेकिन, यह ऊँट के मुँह में चार दाने जीरा।

— बढती दुर्गत ने 1960 के दशक में किसानों को बदहवासी वाले कदमों की तरफ फिर धकेला। बंगाल हो, पंजाब हो, चाहे आन्ध्र प्रदेश : सरकारों ने युवाओं और वृद्धों को पकड़ कर उनके कत्ल किये।

— स्थिति यह रही थी कि बढती दुरावस्था में भी 1980 तक यहाँ किसानी बड़े पैमाने पर बनी रही। तब तक सरकारी नौकरियों के अलावा नौकरियों से और अन्य धन्धों से किसान परिवारों के युवाओं ने दूरी-सी बनाये रखी थी। जबकि, गाँवों के पूर्व-दस्तकार गाँव के बाहर अथवा गाँव के अन्दर उल्लेखनीय तौर पर अन्य काम करने लगे थे। इससे पूर्व-दस्तकारों की स्थिति किसानों की स्थिति से “अच्छी” दिखने लगी थी। इसने गाँवों में जातियों के आधार पर टकराव बढाने का कार्य भी किया।

— 1990 में बड़े परिवर्तन आरम्भ हुये। सरकारों ने मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन पर लगाई लगामें ढीली करनी शुरू की। और, इन बीस वर्षों में किसान परिवारों के लोगों ने उल्लेखनीय सँख्या में सरकारी नौकरी से बाहर काम ढूँढने आरम्भ किये। इधर के दस वर्ष में तो उत्तरी हरियाणा के सींचित खेती वाले क्षेत्रों के किसान परिवारों के युवा, दक्षिणी हरियाणा के गुड़गाँव स्थिति आई. एम. टी. मानेसर की फैक्ट्रियों में बड़ी सँख्या में ठेकेदार कम्पनियों के जरिये रखे मजदूरों के रूप में भी काम करने लगे हैं।

— इधर गाँव में किसानों की सँख्या बहुत तेजी से घटी है। जमीनें हैं, जमीनों के खाते हैं लेकिन अपने और परिवार के श्रम से खेती करने वाले गिने-चुने ही अब बचे हैं। और,आज गाँव में जो किसान हैं उनमें अधिकतर की स्थिति सबसे दयनीय है। ऐसे में आरक्षण-वारक्षण की बातें।

## मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन वाली सामाजिक प्रक्रिया सवा सौ-डेढ सौ वर्ष से किसानी की बढती दुर्गत लिये है।

— किसानी की, किसानों की विदाई पर विलाप करने के लिये उचित कारण कोई बता सकते हैं क्या ?

## सत्ता की, सरकारों की धुरी : मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन, अधिकाधिक नाकारा हो रही है। विनाश वाली इस धुरी ने इधर पृथ्वी पर जीवन को दाँव पर लगा दिया है।

और, हमारे सम्मुख हैं इस धुरी की अँटशँट के संग-संग दुनिया-भर में सरकारों की तेजी से बढती लड़खड़ाहटें ।

मानव प्रजाति द्वारा नई समाज रचना की बढती सम्भावनाओं वाला समय है यह।

हम जीवन्त समय में हैं।

—— 29 जनवरी 2021

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