यहाँ इस अथवा उस पद्धति की नहीं बल्कि सब चिकित्सा पद्धतियों की बात करेंगे।
# मनुष्य प्रजाति के जीवन काल के इस पाँच प्रतिशत दौर में ही विभाजित समाजों से, ऊँच-नीच के सामाजिक गठनों से हमारे पूर्वजों का तथा हमारा वास्ता पड़ा है।
बँटने के प्रारम्भ में ही “मैं” का उदय हुआ लगता है। बँटे हुये समाज में “मैं” के साथ संग-संग “मन” आया लगता है। मैं और मन सामाजिक गठन लगते हैं और बदलते आये लगते हैं। तन अलग-अलग इकाई हैं हालांकि यह एक-दूसरे से जुड़े तथा परस्पर निर्भर हैं। तन के स्थान पर मन के प्रभुत्वकारी बनने की प्रक्रिया बढती आई लगती है। तन को मन द्वारा हांकने की स्थिति। और, इधर तो एक मैं में कई मैं की स्थिति सामान्य बन गई लगती है। Atomised selfs and multizoid individuals.
तन और मन के इन विकट सम्बन्धों ने समाज के बँटने के आरम्भ में ही इनके योग की आवश्यकता उत्पन्न की। योग का अर्थ जोड़ना। अलग हुओं को जोड़ने की बात उभरी।
# स्वामी और दास को समाज में पहला विभाजन कह सकते हैं।
दासों के तन और मन दोनों पीड़ित। स्वामियों के तन तो कम पीड़ित पर मन अत्यंत पीड़ा में। भारतीय उपमहाद्वीप में रामायण तथा महाभारत ग्रन्थों को स्वामियों के मन की पीड़ा के प्रतिनिधि उदाहरण ले सकते हैं।
दासों के तन-मन की पीड़ा निश्चित मृत्यु के दृष्टिगत भी अकेले दास के जंगल में भाग जाने में भी अभिव्यक्त होती थी। ऐसे भागे दास के पकड़े जाने पर उसे भूखे शेर के सामने छोड़ने की प्रथा यूनान में थी। और, बन्दी बनाये दास को भूखे शेर के सामने छोड़ने का प्रदर्शन दासों में भय बैठाने तथा स्वामियों के मनोरंजन के लिये किया जाता था। युद्ध-रूपी खेलों के ओलम्पिक की जड़ें यह लगती हैं। आधुनिक ओलम्पिक में परिवर्तन यह हुआ लगता है कि परपीड़ा आनन्द व्यापक हो गया है। और, बात बहादुरों द्वारा “अपने-हमारे” को इक्कीस तथा “दूसरों” को उन्नीस दिखाने ने महामारी का रूप ले लिया लगता है।
दासों की सामुहिक गतिविधियों के बढने पर रोम के एक स्वामी सेनापति ने रोम से कापुआ नगर मार्ग पर छह हजार दासों को सूलियों पर टाँग कर मृत्युदण्ड दिया था। क्रूरता दासों को पालतू बनाने में असफल। स्वामी शास्त्रीयों के शान्ति और अहिंसा के उपदेश भी दासों को पालतू बनाने में असफल। स्वामी शास्त्रीयों द्वारा रचे धर्म और नये रचित धर्म भी असफल। यह रोम और भारतीय उपमहाद्वीप में पर्याप्त स्पष्टता लिये लगते हैं। ऐसे में स्वामी समाज व्यवस्था को सामन्ती समाज व्यवस्था ने प्रतिस्थापित किया। दासों के स्थान पर भूदास।
योग की अनेक पद्धतियों का आविष्कार तथा पालन-पोषण भारतीय उपमहाद्वीप में स्वामी शास्त्रियों द्वारा किया गया। और, स्वामियों का एकाधिकार योग पद्धतियों पर भी रहा जिसे उनके पश्चात अनेक सामन्तों ने सहर्ष स्वीकार किया। विज्ञान के रथ पर सवार हो कर आया व्यापार, और विशेषकर मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन, आरम्भ में योग-वोग से बिदका रहा। विज्ञान आधारित चिकित्सा पद्धति नया ईश्वर-अल्लाह-गाॅड। इधर हर क्षेत्र में विज्ञान और विज्ञान-आधारित तकनीकी समाधानों को अधिक से अधिक हानिकारक पाया जाने लगा है। ऐसे में वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति की विश्वव्यापी धन्धे में प्रभुत्वकारी भूमिका के बावजूद, योग आदि फिर उल्लेखनीय बनने की राह पर लगते हैं।
# स्वामी समाज को प्रतिस्थापित कर उभरी ऊँच-नीच वाली सामन्ती समाज व्यवस्था के आरम्भ के सम्राटों में चन्द्रगुप्त को एक प्रतिनिधि उदाहरण के तौर पर ले सकते हैं।
साम-दाम-दण्ड-भेद में निपुण चाणक्य के निर्देशन में चन्द्रगुप्त सम्राट बनने में सफल हुये थे। और फिर, सम्राट बने रहने के लिये कुटिल चाणक्य के निर्देशन में चन्द्रगुप्त को वही सब जारी रखना पड़ा था। नींद में भी चैन नहीं। प्रतिदिन शयनकक्ष बदलना। पुरुषों के स्थान पर स्त्री पहरेदार रखना।
सम्राट चन्द्रगुप्त के मन की पीड़ा असहय हो गई। राजपाट छोड़ कर वे जैन भिक्षु बन गये। बिहार में पाटलिपुत्र से निकल कर चन्द्रगुप्त तेइस सौ वर्ष पहले दो हजार किलोमीटर पैदल चलते-चलते आज के कर्नाटक राज्य के चन्द्रगिरि पर्वत पर पहुँचे थे। तब भी उनके मन की पीड़ा असहनीय बनी रही। ऐसे में अन्न-जल त्याग कर उन्होंने आत्महत्या की। उस समय चन्द्रगुप्त की आयु बयालिस वर्ष थी।
भारतीय उपमहाद्वीप में सामन्तवाद के अन्तिम समय के लिये बादशाह औरंगजेब को प्रतिनिधि उदाहरण के तौर पर ले सकते हैं। अपने पिता को कैद कर और भाइयों की हत्या कर औरंगजेब बादशाह बना था। भूदासों की सामुहिक गतिविधियों के कारण जीवन-भर औरंगजेब को खुली तलवार हाथ में थामे रखनी पड़ी : एक छोर पर मराठा भूदास, आगरा के पास जाट भूदास, पंजाब में खालसा पंथ धारण किये भूदास …। 1757 में प्लासी युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की विजय उपमहाद्वीप में सामन्तवादी समाज व्यवस्था का स्थान मण्डी समाज व्यवस्था द्वारा लेने का आरम्भ थी। बेगार प्रथा के स्थान पर दस्तकारों तथा किसानों द्वारा मण्डी में बेचने के लिये उत्पादन।
# जन्म के पश्चात मृत्यु स्वभाविक। और, ऊँच-नीच वाले समाज में उल्लेखनीय तौर पर मृत्यु ही अस्वीकार्य बनी!
# कुछ अनुमान। गप्पें लग सकती हैं। गप्पें कह सकते हैं। परन्तु यह अनुमान विज्ञान आधारित हैं। आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के यह आंकलन समकालीन वैज्ञानिकों में स्वीकार्यता में प्रथम स्थान रखते हैं।
— पृथ्वी पर जल में जीवन का आरम्भ साढ़े तीन-चार अरब वर्ष पहले हुआ। जीवों में परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया।
— चालीस करोड़ वर्ष पहले ऐसे जीवों की उत्पत्ति हुई जो जल और थल, दोनों पर रहने लगे।
— पृथ्वी पर सात करोड़ वर्ष पहले जमीन पर घास उत्पन्न हुये।
— दो पैरों पर चलने वाले साठ लाख वर्ष पहले अस्तित्व में आये।
— दो-तीन लाख वर्ष पहले अफ्रीका में मानव प्रजाति अस्तित्व में आई। वहाँ से फैलने लगी।
— पचास हजार वर्ष पहले मानव प्रजाति अफ्रीका के संग-संग एशिया और यूरोप में भी।
— बारह हजार वर्ष पहले सब मानव कन्द-मूल बटोरने तथा शिकार पर भोजन के लिये निर्भर रहते थे।
:::: ज्ञानियों तथा विशेषज्ञों के जीवन को निर्देशों और आदेशों के अर्थ क्या हैं?
# दासों के तन-मन की पीड़ा के पहाड़, मिश्र में स्वामियों के कुख्यात प्रतीक, पिरामिड इस ऊँच-नीच वाले सामाजिक गठन में भी सत्ताधारियों ने पर्यटन स्थल बना रखे हैं।
— प्रारम्भ में मृत्यु को अस्वीकार करने वालों के उदाहरण के तौर पर मिश्र के स्वामी उचित लगते हैं।
— पाँच हजार वर्ष पहले मिश्र में हुये इमहोटेप (Imhotep) को विश्व में पहला चिकित्सक कहा गया है। मिश्र के स्वामियों को प्राचीन काल में सबसे स्वस्थ तथा उल्लेखनीय स्वास्थ्य सुविधाओं वाले कहा जाता है।
— प्राचीन चिकित्सा परम्परा के उल्लेखनीय वाहक बेबीलोन, चीन, और भारत के स्वामी भी कहे जाते हैं।
# आज की ऊँच-नीच का वाहक वाहन विज्ञान है। विज्ञान और टेक्नोलॉजी की जुगलबंदी की उपज, मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन ने इस ऊँच-नीच को स्थापित किया।
— कहते हैं कि जर्मनी में वैज्ञानिक फ्रेडरिक सेरटर्नर ने अफीम के सत्व से 1804 में पहली आधुनिक औषधि, मोरफीन विकसित की।
— सौ वर्ष बाद, आसन्न युद्ध के दृष्टिगत बीसवीं सदी के आरम्भ में अनुसन्धान केन्द्रों की स्थापना ने वर्तमान में प्रभुत्वशाली चिकित्सा पद्धति को स्थापित किया।
— 1914-1919 में युद्ध के दौरान सेना के डॉक्टरों ने ट्रॉमा ट्रीटमेंट और सर्जरी की पद्धतियों में उल्लेखनीय विकास किया।
— फिर 1939-1945 वाले युद्ध के समय से विज्ञान आधारित आधुनिक चिकित्सा पद्धति में जीवाणु, सूक्ष्म जीवों, बैक्टीरिया को रोगों के कारक और एंटीबॉयोटिक्स को, जीवाणुओं का-सूक्ष्म जीवों का विनाश करने वाली औषधियों के तौर पर प्रयोग को व्यापक बनाया। वैक्सीन और कीमोथैरेपी इसी कड़ी में।
# विज्ञान के कुछ और समकालीन अनुमान :
— एक युवा मानव तन में 30 ट्रिलियन, 3 नील (30,000,000,000,000) मानव सैल होते हैं।
— और, एक युवा मानव तन में 39 ट्रिलियन, 3 नील 90 खरब जीवाणु होते हैं। मानव सैल से अधिक सूक्ष्म जीव मानव तन में होते हैं।
— मानव मुख में ही 700 प्रकार के सूक्ष्म जीव रहते हैं।
— मनुष्य की चमड़ी पर ही 15 खरब जीवाणु रहते हैं।
:::: ज्ञानियों तथा चिकित्सकों के तन को निर्देशों और आदेशों के अर्थ क्या हैं?
# यह इसी लिये है कि विज्ञान आधारित चिकित्सा पद्धति से इधर एक रोग का उपचार अनेक रोगों का जनक बना है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी द्वारा बनाई जाती औषधियाँ रोग उत्पादन की फैक्ट्रियांँ बन गई हैं।
# कुछ और समकालीन अनुमान :
— दस हजार वर्ष पहले पृथ्वी पर मानव प्रजाति की सँख्या 50 लाख थी।
— पाँच हजार वर्ष पहले मानव जनसंख्या 1 करोड़ 40 लाख।
— दो हजार वर्ष पहले 17 करोड़।
— एक हजार वर्ष पहले 31 करोड़।
— पाँच सौ वर्ष पहले संसार में जनसंख्या 50 करोड़।
— 1800 में विश्व जनसंख्या 98 करोड़।
— 1850 में जनसंख्या एक अरब 26 करोड़।
— 1900 में जनसंख्या एक अरब 65 करोड़।
— 1950 में जनसंख्या दो अरब 52 करोड़।
— 1970 में जनसंख्या तीन अरब 70 करोड़।
— 1990 में जनसंख्या पाँच अरब 32 करोड़।
— 2010 में विश्व की जनसंख्या 6 अरब 95 करोड़।
— 2020 संसार में मानव जनसंख्या 7 अरब 79 करोड़।
:::: मानव प्रजाति की ऐसी मात्रा के पृथ्वी के लिये क्या अर्थ हैं?
# अब के लिये विज्ञान आधारित बस इतने और समकालीन अनुमान :
— विश्व में 1900 में मानव प्रजाति की औसत आयु 32 वर्ष।
— 1950 में मनुष्यों की औसत आयु 48 वर्ष।
— 2020 में संसार में मानव औसत आयु 73 वर्ष से कुछ अधिक।
— भारतीय उपमहाद्वीप में 1800 में मनुष्यों की औसत आयु 25 वर्ष से कुछ अधिक।
— 1900 में यह औसत 22 वर्ष।
— 1945 में 33 वर्ष से कुछ कम।
— 1950 में भारत में मानव औसत आयु 34 वर्ष।
— 1970 में भारत में औसत आयु 46 वर्ष।
— 1990 में यहाँ औसत आयु 56 वर्ष से कुछ अधिक।
— 2010 में भारत सरकार के क्षेत्र में 65 वर्ष से कुछ अधिक औसत आयु।
— 2020 में भारत में औसत मानव आयु 71 वर्ष से कुछ कम।
:::: आयु में वृद्धि की मानव जीवन को अधिक जीवन्त बनाने में भूमिका है क्या?
# मृत्यु की अस्वीकार्यता सामाजिक मनोरोग है। ऊँच-नीच वाले सामाजिक गठनों में सत्ताधारियों में यह दीर्घकाल से है। इधर इसने सम्पूर्ण मानव प्रजाति को अपनी जकड़ में ले लिया लगता है।
## अंश में सम्पूर्ण अभिव्यक्त होता है।
— विज्ञान अंश का अध्ययन करता है। वैसी ही परिस्थितियों में उस अंश के अलग-अलग अध्ययन अगर उस अध्ययन जैसे ही परिणाम देते हैं तो अध्ययन को सही घोषित कर दिया जाता है।
— यह वैज्ञानिक पद्धति कहलाती है।
— विज्ञान को सत्य का वाहक कहा जाता है।
— विज्ञान द्वारा सिद्ध बातों पर प्रौद्योगिकी कार्य करती है।
— साइन्स और टैक्नोलॉजी की जुगलबंदी के प्रोडक्ट्स पर आज प्रश्न उठाना विगत में ईश्वर-अल्लाह-गॉड पर शंका समान चुनौतियांँ लिये है।
# जबकि, अंश में सम्पूर्ण पूरा अभिव्यक्त नहीं होता।
— विज्ञान के अध्ययन पर आधारित टैक्नोलॉजी को इच्छित सफलता प्राप्त करते पाया गया है।
— प्रश्न यह है कि यह इच्छित क्या है?
— विभाजित समाज में ये इच्छित सफलतायें इधर मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन के अनुकूल पाई गई हैं।
— इसलिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी वर्तमान में विश्व-भर में सत्ताधारियों के हितों की पूर्ति करती हैं। सरकारें तथा कम्पनियांँ साइंस और टेक्नोलॉजी का पालन-पोषण करती हैं।
# अंश के अध्ययन के परिणामों को अन्य अंशों तथा सम्पूर्ण पर लागू करने के विनाशकारी परिणाम आ चुके हैं। इसे साइंस और टेक्नोलॉजी की त्रासदी कहा जा सकता है। परन्तु, इसे मानव प्रजाति के संग अन्य जीव प्रजातियों की, सम्पूर्ण पृथ्वी की त्रासदी कहना अधिक उचित रहेगा।
— कीटनाशक दवाओं और बीजों में परिवर्तन द्वारा अनाजों की मात्रा में बहुत भारी वृद्धि की गई है। और, इस प्रकार के उत्पादन से बनता भोजन विष पाया गया है।
— सुरक्षा के क्षेत्र में अस्त्र-शस्त्रों की मारक क्षमता कल्पना से परे कही जा सकती है। और, यह सुरक्षा मानवों के लिये जानलेवा सिद्ध हुई है।
अंश के अध्ययन से अन्य अंशों के संग, सम्पूर्ण के साथ सौहार्द में वृद्धि के लिये ऊँच-नीच वाले सामाजिक गठनों के स्थान पर नई समाज रचना एक अनिवार्य आवश्यकता लगती है।
— 18 जनवरी 2022
मजदूर समाचार-कम्युनिस्ट क्रान्ति द्वारा प्रसारित