Category Archives: In Hindi

चालाकी-समझदारी और सीधापन

# चालाकी यह नहीं देखती कि सम्बन्धों का क्या हो रहा है। # समझदारी सम्बन्धों को टूटने नहीं देती क्योंकि कहीं न कहीं, कभी न कभी काम आ सकते हैंं। काम चलाऊ सम्बन्ध। मधुर सम्बन्ध नहीं। # चालाकी और समझदारी … Continue reading

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ग्रामीण गरीबों के खिलाफ नया युद्ध

## इन तीन सौ वर्षों के दौरान संसार-भर में निवासियों से जमीनें छीनने के अभियान। ## इस उपमहाद्वीप में 1824 में जमीन छीनने के लिये कानून बनाया गया। बदलते हुये यह 1894 का जमीन छीनने का कानून बना। भारत में … Continue reading

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टिप्पणी : “धर्म सामन्ती अवशेष हैं “

श्री गुरमीत ने “तर्कशील” व्हाट्सएप समूह में श्री अशोक कुमार की एक पोस्ट, “धर्म सामन्ती अवशेष हैं।” साँझा की। पोस्ट लम्बी है इसलिये पहले अपनी टिप्पणी और उसके बाद उसे यहाँ दे रहे हैं। ## 500 ईसापूर्व मगध क्षेत्र में … Continue reading

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उल्लास है उपचार

प्रस्तुत है मजदूर समाचार के जनवरी 2012 अंक से “उल्लास है उदासी-अवसाद का उपचार”।

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मजदूर समाचार पुस्तिका दस

“मजदूर समाचार पुस्तिका दस” का आनन्द लें। जनवरी 2011 से दिसम्बर 2011 सम्भव है कुछ प्रस्थान बिन्दु मिलें। # आदान-प्रदान बढाने के लिये अपने ग्रुपों में फॉर्वर्ड करें। # दिल्ली और इर्द-गिर्द के औद्योगिक क्षेत्रों में स्थिति को देखते हुये … Continue reading

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मारुति मानेसर डायरी (6)| Maruti Manesar Diary-6

“जान-पहचान जहाँ झमेले लिये है वहाँ अनजाने भी अपने हैं का विचार-व्यवहार खूब कमाल करेगा।” — मारुति मानेसर डायरी (6)। ## विश्व-भर में अधिक से और अधिक लड़खड़ा रही ऊँच-नीच, रुपये-पैसे, खरीद-बिक्री को बनाये रखने के बदहवास प्रयास दुनिया-भर में … Continue reading

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मजदूर समाचार पुस्तिका नौ

मजदूर समाचार पुस्तिका नौ” का आनन्द लें। जनवरी 2012 से दिसम्बर 2012 सम्भव है कुछ प्रस्थान बिन्दु मिलें। # आदान-प्रदान बढाने के लिये अपने ग्रुपों में फॉर्वर्ड करें। # दिल्ली और इर्द-गिर्द के औद्योगिक क्षेत्रों में स्थिति को देखते हुये … Continue reading

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समझदारी-दुनियादारी-व्यवहारिकता आज

— पक्का मकान; — बिजली; — सड़क। इसका एक अर्थ है शिशु को प्रत्येक कदम पर टोकना। बच्चों को हर समय टोकना। दुनियादारी का मतलब आज प्रत्येक बच्चे को बम बनाना भी है। ## इधर विश्व-भर में लॉकडाउन-पूर्णबन्दी ने ऊँची … Continue reading

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आठ घण्टे का छब्बीस-तीस घण्टे बनना | Working Day-II

— ऊँच-नीच वाले सामाजिक गठनों में सुधार की बातें बहुत होती हैं। टिकाऊ परिवर्तन के लिये सुधार की राहों को कारगर राह प्रस्तुत किया जाता है। — सुधारों को थोथा पाया गया है। शासन के लिये, सत्ता के लिये भिड़ … Continue reading

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फैक्ट्री किसकी ? कम्पनी किसकी? | Working Day-I

मालिक कौन है ? स्वामी कौन है ? धणी कुण सै ? चेहराविहीन पूँजी – बिना शक्ल सरमाया – faceless capital की दस्तक 1860 के आसपास सुनी जाने लगी थी। रेलवे इसके उल्लेखनीय उदाहरण थे। उत्पादन में भी पूँजीपति-कारखानेदार-फैक्ट्री मालिक … Continue reading

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