गोरखपुर और गुड़गाँव : कुछ प्रश्न

जनवरी 2010 से फरवरी 2020 अंकों पर आधारित “सतरंगी” छापने के पश्चात अब मजदूर समाचार के जनवरी 2005 से दिसम्बर 2009 अंकों की सामग्री से पुस्तक “सतरंगी-2” तैयार कर रहे हैं। अड़तिसवाँ अंश नवम्बर 2009 अंक से है।

■ प्रश्नों को स्पष्ट करने के प्रयास में यहाँ कारखानों की, फैक्ट्रियों की ही बात करेंगे।

— फरीदाबाद, ओखला (दिल्ली), गुड़गाँव में फैक्ट्रियों में काम करते 70-75 प्रतिशत मजदूर “अदृश्य” हैं। कारखानों में काम कर रहे तीन चौथाई मजदूर कम्पनियों तथा सरकार के दस्तावेजों के अनुसार फैक्ट्रियों में होते ही नहीं। “ई.एस.आई. नहीं” का अर्थ यह है।

— अस्सी-पिचासी प्रतिशत फैक्ट्री मजदूरों को दिल्ली व हरियाणा सरकारों द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन नहीं दिये जाते। फैक्ट्रियों में मजदूरों द्वारा 12 घण्टे प्रतिदिन कार्य करना सामान्य है। और, 98-99% “अतिरिक्त समय” उर्फ ओवर टाइम दिखाया नहीं जाता तथा भुगतान दुगुनी दर की बजाय सिंगल रेट से किया जाता है।

भारत सरकार के नियन्त्रण वाले अन्य क्षेत्रों में स्थिति उपरोक्त से भिन्न नहीं है।

यहाँ 15 अगस्त 1947 को फैक्ट्री मजदूरों के निवास का प्रबन्ध करने से सरकार स्वतन्त्र हुई।

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रीको ऑटो इन्डस्ट्रीज, 38 किलोमीटर दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग, गुड़गाँव स्थित फैक्ट्री के एक स्थाई मजदूर से बातचीत के आधार पर : बड़ी फैक्ट्री है। लोहे तथा अल्युमिनियम की ढलाई के बाद मशीनिंग द्वारा वाहनों के अनेक पुर्जे बनते हैं। लुधियाना, धारूहेड़ा, मानेसर में भी कम्पनी की फैक्ट्रियाँ हैं। रीको ऑटो, कॉन्टिनेन्टल रीको, मैग्ना रीको, एफ सी सी रीको … में हीरो होण्डा, मारुति सुजुकी, होण्डा, फोर्ड, जनरल मोटर आदि का काम होता है। खड़े-खड़े काम और 8 घण्टे ड्युटी के बाद जबरन रोक लेते हैं। साप्ताहिक छुट्टी के दिन भी ए-शिफ्ट वालों की जबरन ड्युटी। ओवर टाइम का भुगतान सिंगल रेट से। निर्धारित उत्पादन बढाते रहते हैं और पूरा नहीं करने पर रोज चिकचिक से दुखी करते हैं। तनखा 5500 बताते हैं तो देते 4200 हैं। बेसिक बहुत कम और भाँति-भाँति के भत्ते। एल टी ए तथा बोनस के पैसे हर महीने तनखा से काट कर वर्ष में देते हैं। कैन्टीन में अधिक पैसों में घटिया भोजन। यातायात का प्रबन्ध नहीं। चक्कर काट कर थक जाते हैं, स्थाई मजदूरों में भी बहुतों को ई.एस.आई. कार्ड नहीं देते। ऐसे में स्थाई मजदूर नौकरी छोड़ते रहते हैं, नये स्थाई होते रहते हैं — आई टी आई और बी.एस सी./एम.एस सी. को ट्रेनी रखते हैं। स्थाई मजदूर दो-ढाई हजार। तीन ठेकेदारों के जरिये रखे मजदूर भी इतने होंगे, उनके बारे में पता नहीं … परेशानियों से पार पाने के लिये स्थाई मजदूरों ने एक-एक हजार रुपये दिये, बीस लाख रुपये एकत्र किये और एक यूनियन से जुड़े। यूनियन का बड़ा नेता मुख्य मन्त्री-प्रधान मन्त्री से बात करता है। अगस्त से हलचलें बढी। कम्पनी ने 21 सितम्बर को 16 स्थाई मजदूर निलम्बित किये तो कोई स्थाई मजदूर अन्दर नहीं गया … ठेकेदारों के जरिये रखे मजदूर भी बाहर रहे। जोश। भोजन पकाना, फैक्ट्री गेटों पर बैठना, भाषण देने आते नेता। कम्पनी द्वारा नई भर्ती, उत्पादन जारी, माल का आना-जाना जारी। धारा 144, गेटों से 50 मीटर दूर, पुलिस टैन्ट-दरी ले गई। गिरफ्तारी और जमानत। सनबीम और रीको फैक्ट्रियों में यूनियन के समर्थन में कई यूनियनों द्वारा मिल कर 25 सितम्बर को बड़ी सभा। कम्पनी की अन्य फैक्ट्रियों में सामान्य उत्पादन। बीतते समय और दिवाली के कारण फैक्ट्री के बाहर कम मजदूर — 18 अक्टूबर को कम्पनी ने हमला करवाया जिसमें एक मजदूर की मृत्यु हो गई और कई घायल हुये। यूनियनों द्वारा 20 अक्टूबर को 60 फैक्ट्रियों में हड़ताल, 80-90 हजार मजदूरों ने काम नहीं किया। तीन रोज फैक्ट्री में काम बन्द रहा, एक साहब की पिटाई। नेताओं ने राष्ट्रीय राजमार्ग बन्द नहीं करने दिया। कम्पनी ने मृत मजदूर के परिवार को 5-10 लाख रुपये दिये। हत्या के मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं। मुख्य मन्त्री ने श्रम विभाग के जरिये मैनेजमेन्ट और यूनियन के बीच समझौता वार्तायें 22 अक्टूबर से आरम्भ करवाई। कम्पनी द्वारा 23 अक्टूबर से नये लोगों के जरिये फैक्ट्री में पुनः उत्पादन आरम्भ। वार्तायें जारी हैं। नेता सबकुछ अपने तक ही रख रहे हैं, इस बार मजदूरों को कुछ बता नहीं रहे क्योंकि …1998 में यूनियन बनाने की कोशिश हुई थी तब नेता बिक गया था। माँग-पत्र में क्या है, शर्तें क्या हैं हमें पता नहीं … फैक्ट्री में उत्पादन जारी है। कम्पनी पर दबाव कम होता जा रहा है। वार्तायें जारी हैं। ठेकेदारों के जरिये रखे इधर-उधर हो गये, हम स्थाई मजदूर कहाँ जायें? हताशा, भरे बैठे हैं, भड़के हुये हैं, इस हफ्ते कुछ न कुछ … यूनियन 2 नवम्बर से क्रमिक भूख हड़ताल करवा रही है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र में 15 जून को अंकुर उद्योग के 600 मजदूरों ने सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन आदि के लिए काम बन्द किया। इसीलिये एक अन्य फैक्ट्री वी एन डायर्स के 300 मजदूरों ने 23 जून को तथा वी एन कपड़ा मिल के 300 मजदूरों ने 28 जून को काम बन्द किया। समझौते के बाद 13 जुलाई को इन तीन कारखानों में काम आरम्भ हुआ। क्षेत्र में संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा बना। मॉडर्न लेमिनेटर्स और मॉडर्न पैकेजिंग के एक हजार मजदूरों ने 3 अगस्त को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन, ई.एस.आई. आदि की माँग श्रम विभाग में की। दस दौर की वार्तायें — 21अगस्त की वार्ता के बाद रात को कम्पनी ने मजदूरों के लिये गेट बन्द कर दिये। मजदूर गेट पर। रात 10 बजे शिफ्ट छूटने पर अन्य फैक्ट्रियों के मजदूर भी वहाँ एकत्र होते। कचहरी परिसर में 11 सितम्बर को सैंकड़ों मजदूरों ने डेरा डाल कर भोजन बनाना आरम्भ किया। प्रशासन में हलचल। लिखित समझौते का आश्वासन। श्रम उपायुक्त के यहाँ मैनेजमेन्ट द्वारा न्यूनतम वेतन देने से साफ इनकार और “गैरकानूनी हड़ताल” बताती आई कम्पनी ने 13 सितम्बर को तालाबन्दी की सूचना टाँगी। अनेक फैक्ट्रियों के मजदूरों द्वारा 14 सितम्बर को प्रदर्शन कर कानून की किताबें जलाना। दस दिन का आश्वासन। निर्धारित दिन, 23 सितम्बर को वार्ता के लिये प्रशासन तथा कम्पनी उपस्थित नहीं हुये … सैंकड़ों मजदूर पाँच मील पैदल चल कर जिलाधिकारी कार्यालय पर भोजन बनाने की तैयारी करने लगे … 24 सितम्बर को समझौता। लेकिन, 25 सितम्बर को ठेकेदारों के जरिये रखे मजदूरों तथा अन्य 18 अधिक सक्रिय मजदूरों को काम पर लेने से इनकार। सब मजदूर गेट रोक कर बैठ गये। पुलिस, सशस्त्र पुलिस। समझौता। फिर पालन नहीं। जिलाधिकारी कार्यालय पर 14 अक्टूबर को अनशन — जबरन हटाया। बातचीत के लिये बुला कर प्रशासन ने 15 अक्टूबर को आन्दोलन में अत्याधिक सक्रिय चार लोगों की पिटाई कर जेल में डाल दिया। चौतरफा विरोध … 21 अक्टूबर से गोरखपुर में नागरिक सत्याग्रह की घोषणा। पाँच फैक्ट्रियों में मजदूरों द्वारा 20 अक्टूबर को हड़ताल, अगले दिन दो और फैक्ट्रियों के मजदूर हड़ताल में शामिल। प्रशासन ने 4 गिरफ्तार लोगों को 21 अक्टूबर की रात को रिहा कर दिया। अन्य कोई राह न देख कर मॉडर्न लेमिनेटर्स और मॉडर्न पैकेजिंग के मजदूरों ने सामुहिक इस्तीफे दे दिये हैं और यह दोनों कारखाने नवम्बर-आरम्भ तक बन्द पड़े हैं। विकल्पहीनता …

[जानकारियाँ सत्यम, कात्यायनी, तथा ‘बिगुल’ मासिक और सयुंक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा, बरगदवा, गोरखपुर से प्राप्त ।]

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● शिल्प-ट्रेड की, शिल्प संघ-ट्रेड यूनियन की संकीर्णता की जानकारी डेढ सौ वर्ष से है। मजदूरों के लिये शिल्प संघों-ट्रेड यूनियनों का नुकसानदायक-खतरनाक बनना आज से नब्बे वर्ष पूर्व व्यवहार में पता चला। ट्रेड की बजाय फैक्ट्री के आधार पर मजदूरों के संगठित होने को एक कारगर विकल्प समझा गया। इन्डस्ट्रीयल यूनियनें बनाई गई। लाइन सिस्टम के आधार पर उत्पादन में भारी वृद्धि के लिये इन्डस्ट्रीयल यूनियनें शीघ्र ही मजदूरों पर नियन्त्रण रखने का एक औजार बनी। यूनियन वाले और बिना यूनियन वाले मजदूरों के बीच वेतन-भत्तों में भारी भेद उत्पन्न हुये। अति अल्प सँख्या के यूनियन वाले डर और अकड़ के चक्रव्यूह में फंँसे । बहुसंँख्यक मजदूरों की स्थिति के बद से बदतर बनने में तीव्रता आई।

● ऑटोमेशन और विशेषकर इलेक्ट्रोनिक्स के आगमन ने बहुत कम समय में फैक्ट्री में कार्य करना सीखना सम्भव बनाया। उत्पादन कार्य के लिये आवश्यक मजदूरों की संँख्या में बहुत तेजी से कमी संग-संग आई। विश्व-भर में यूनियनवालों की संँख्या काफी ज्यादा सिकुड़ी।

● यहाँ फैक्ट्रियों में आमतौर पर स्थाई मजदूरों को ही यूनियनें सदस्य बनाती हैं। और इन बीस वर्षों में फैक्ट्रियों में स्थाई मजदूरों की संँख्या शून्य से दस-पन्द्रह प्रतिशत के बीच आ गई है। पुरानी फैक्ट्रियाँ जो बन्द नहीं हुई और जहाँ बहुत ज्यादा छंँटनी करने में कम्पनियाँ सफल नहीं हुई वे अपवाद मात्र हैं। आज यहाँ फैक्ट्रियों में अस्सी-नब्बे प्रतिशत मजदूरों का अस्थाई होना — कैजुअल वरकर होना, ठकेदारों के जरिये रखे होना, वास्तविकता का मुखर पहलू है।

●किसानों और दस्तकारों की सामाजिक मौत और सामाजिक हत्या करोड़ों को मजदूरों की पाँतों में अधिकाधिक तेजी से धकेल रही है। एक बड़ी संँख्या पैसों के लिये कुछ भी करने वालों की बनी है।

● गुड़गाँव में इन दस-पन्द्रह वर्षों में तेजी से नई-नई फैक्ट्रियाँ बनी हैं। इन फैक्ट्रियों में युवा मजदूरों की बहुतायत है। कहीं बहुत कम तो कहीं कुछ ज्यादा मजदूर स्थाई हैं। मजदूर होने पर जो पीड़ा होती है वह इन युवा स्थाई मजदूरों में भी उफन रही है। इन उबलते मजदूरों को चोटें मार कर नियन्त्रण में रखने लायक बनाने के लिये स्थापित यनियनें प्रयासरत हैं।

● फैक्ट्रियों में जो अस्सी-नब्बे प्रतिशत मजदूर हैं। जो दो महीने यहाँ तो छह महीने वहाँ काम करते हैं। जिन्हें सरकारों द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन भी नहीं दिये जाते। ऐसे मजदूर इन्डस्ट्रीयल यूनियनों के खाँचों से बाहर हैं … नई समाज रचना के लिये कई प्रकार की बेड़ियों से यह मुक्त हैं।

गोरखपुर में नये संगठन के स्वरूपों, नये संघर्ष के तरीकों के सवाल दस्तक दे रहे हैं।

गुड़गाँव में होण्डा, सनबीम, रीको ऑटो के चर्चित मामलों में नहीं बल्कि डेल्फी में ठेकेदारों के जरिये रखे ढाई हजार मजदूरों द्वारा उठाये कदम;

— हीरो होण्डा की गुड़गाँव स्थित स्पेयर पार्ट्स फैक्ट्री में ठेकेदारों के जरिये रखे 4500 मजदूरों द्वारा चाणचक्क काम बन्द करना;

— होण्डा मोटरसाइकिल एण्ड स्कूटर फैक्ट्री में ठेकेदारों के जरिये रखे तीन हजार मजदूरों द्वारा मैनेजमेन्ट-यूनियन समझौते के खिलाफ काम बन्द करना;

— ईस्टर्न मेडिकिट में कैजुअल वरकरों द्वारा तनखा में देरी पर काम बन्द करना … नई राहें खोजने-बनाने में मजदूर जुटे हैं।

इन हालात में हमारे सामने प्रश्न हैं: क्या-क्या नहीं करें? क्या-क्या करें? कैसे करें?

 (मजदूर समाचार, नवम्बर 2009)

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