एक्शन कन्स्ट्रक्शन इक्विपमेन्ट (ए सी ई) श्रमिक : “दुधौला गाँव में कम्पनी की नई फैक्ट्री से 150 ट्रैक्टर मण्डी में भेजे जा चुके हैं। रोज साढे बारह घण्टे की शिफ्ट में हम 70 मजदूर 5-6 ट्रैक्टर बनाते हैं। एक ने बीमार होने और दो ने शादी में जाने के लिये 28 अप्रैल की छुट्टी ली तो 29 अप्रैल से उन्हें ड्युटी पर नहीं लिया। इस पर 5 मई को हम सब फैक्ट्री के अन्दर नहीं गये। उत्पादन बन्द है और आज 7 मई को भी हम बाहर बैठे।
” ए सी ई कम्पनी ने स्वयं हमें भर्ती किया। एक महीना पूरा होने पर ए सी ई की वर्दी दी। गेट पास भी 25 अप्रैल तक ए सी ई के नाम से दिये। फिर अचानक कम्पनी हमें ठेकेदार के जरिये रखे मजदूर कहने लगी। हमारे द्वारा काम बन्द करने के दूसरे दिन, 6 मई को पैन्थर सेक्युरिटी का एक बन्दा फैक्ट्री आया। बहुत आश्वासन दिये और अन्दर चलने को कहा तो हम ने निकाले हुये 3 को पहले लेने को कहा। अन्दर जा कर वह बाहर आया और बोला कि जो करना है करो, 3 को अन्दर नहीं लेंगे।
“दुधौला में ए सी ई फैक्ट्री में हमारे सम्मुख समस्या पर समस्या हैं। सुबह 9 से रात साढे नौ तक रोज जबरन रोकते हैं, रविवार को 8 घण्टे काम। रोज के ओवर टाइम के मात्र 60 रुपये और रविवार के 120 रुपये। किसी दिन 2-3 घण्टे ही ज्यादा रोका तो उसके कोई पैसे नहीं। फैक्ट्री मथुरा रोड़ से काफी दूर है और वरकर फरीदाबाद व पलवल से हैं। रात साढे नौ छूटने पर सुनसान क्षेत्र से पैदल मथुरा रोड़ पहुँचते हैं। हाथ देने पर जो ट्रक रुक जाते हैं उन से लौटते हैं। रात 1 बजे घर पहुँचते हैं। पुलिस से परेशानी।
“ए सी ई ट्रैक्टर का सब काम फैक्ट्री में ही होता है, बस इन्जन चीन से आते हैं जिन पर नाम मिटा कर कम्पनी अपना छाप देती है। ट्राली पर रख कर सरकाते हुये उस पर काम होता है। सब जगह सब काम हाथों से — मात्र दो प्रेशर गन हैं। तनखा 3510-4000 रुपये। मात्र 3 पँखे हैं और धूप में भी काम करना पड़ता है। पीने का पानी गर्म। चोट लगने पर प्राथमिक उपचार भी गाँव जा कर मजदूर अपने पैसों से करवायें। स्टाफ के 60-70 लोग हर समय हमारे सिर पर खड़े रहते हैं — उनका काम बस गाली देने का है।
“5 मई को हम फैक्ट्री में नहीं गये तो टाइम ऑफिस वाले के बाद सी ई ओ जी. के. अग्रवाल आया और 3 को हफ्ता-दस दिन में लेने की कही। इस पर हमारे अन्दर नहीं जाने पर फिर परसनल हैड धमकाने आया : दारू पी कर ड्युटी करते हो, चोरी करते हो, आज से सब का गेट बन्द, लोकल हो कर दादागिरी करते हो, दो हजार में बाहर के रख लेंगे, पुलिस से मरोड़ निकलवा देंगे।
“हम दुधौला गाँव के लोगों से मिले। ए सी ई के बैक हो, सी एन सी, वैल्डिंग शॉप मजदूरों से मिले। दुधौला में हाई पोलीमर लैब व अन्य फैक्ट्रियों के मजदूरों से बातें की। आज 7 मई को हम फैक्ट्री गये तो वहाँ पुलिस थी। हमें गेट पर नहीं बैठने दिया, फैक्ट्री की तरफ वाली जगह पर भी नहीं बैठने दिया — कम्पनी की बदनामी होती है! हम एक खाली प्लॉट में बैठे तो वहाँ मैनेजमेन्ट के लोग धतीर थाने के एएसआई को ले कर पहुंँचे और बोले : पैसे वालों से नहीं लड़ सकते, समझौता कर लो, पकड़ कर अन्दर कर देंगे, तारीख भुगतते रहोगे … हम में से एक ने तारीख भुगत लेंगे कहा तो एएसआई उसे ले कर चलने लगा। हम सब साथ चले तो उसे छोड़ कर पुलिस वाला यह कह कर चला गया कि झगड़ा मत करना। स्टाफ के लोग आ-आ कर देख जाते हैं। एक अखबार वाला फोटो ले गया है। सी आई डी वाला रिपोर्ट ले गया है।”
इल्पिया पैरामाउन्ट कामगार : “सैक्टर-59 पार्ट-बी झाड़सेंतली-जाजरू रोड़ स्थित फैक्ट्री में बरसों से काम कर रहे 80 कैजुअल वरकरों की तनखा 2500-3000 रुपये और ई.एस.आई. नहीं, पी.एफ. नहीं। फैक्ट्री में 12-12 घण्टे की दो शिफ्ट और एक दिन छोड़ कर 36 घण्टे लगातार ड्युटी … श्रम विभाग, श्रम मन्त्री, मुख्य मन्त्री को शिकायतें की।
“27 फरवरी को सांँय 4 बजे श्रम विभाग की गाड़ी फैक्ट्री में आई। अधिकारी कार्यालय में गये और परसनल विभाग वाले कैजुअलों को बाहर निकालने लगे पर कई ने फैक्ट्री से निकलने से इनकार कर दिया। श्रम अधिकारी ने नाम लिखे, बातें सुनी और तनखा अपने सामने दिलवाने की
कही।
” 7 मार्च को श्रम अधिकारी इल्पिया पैरामाउण्ट फैक्ट्री आया तो कम्पनी ने पैसे की दिक्कत बता कर तनखा अगले दिन देने की कही। मैनेजमेन्ट ने 8 मार्च को 40 स्थाई मजदूरों को दिन की शिफ्ट में बुलाया और 80 कैजुअलों को रात की शिफ्ट में आने को कहा। श्रम अधिकारी ने 8 मार्च को अपने सामने जिन्हें तनखा दिलवाई वे स्थाई मजदूर थे … पर कैजुअल वरकर फैक्ट्री गेट पर एकत्र हो गये थे। यह देख कर परसनल मैनेजर बोला कि कल आना, यह पैसे लो और जाओ चाय पीओ-समोसे खाओ, एक घण्टे बाद आना। मजदूर टले नहीं और श्रम अधिकारी फैक्ट्री से निकला तो घेर लिया। अगले दिन तनखा का आश्वासन। श्रम अधिकारी 9 मार्च को फैक्ट्री पहुंँचा तो कम्पनी ने पैसे की दिक्कत बताई और फिर यही बात 10 मार्च को दोहराई तो श्रम अधिकारी ने धमकी दी। अन्ततः 11 मार्च साँय 5 बजे श्रम अधिकारी के सामने 80 कैजुअलों को 3510 रुपये तनखा दी और पे-स्लिप भी दी पर उसमें ई.एस.आई. व पी.एफ. नम्बर नहीं हैं। फरवरी माह के 200-300 घण्टे ओवर टाइम का भुगतान दुगुनी दर से 25 मार्च को अपने सामने दिलवाने की कह कर श्रम अधिकारी गया पर 25 को फैक्ट्री नहीं आया और 29 मार्च को कम्पनी ने 2500-3000 रुपये तनखा अनुसार ओवर टाइम के पैसे सिंगल रेट से दिये।
“और फिर इल्पिया पैरामाउण्ट मैनेजमेन्ट ने कैजुअल वरकरों से हस्ताक्षर 3540 पर करवाये पर मार्च तथा अप्रैल की तनखायें 2500-3000 रुपये दी। एतराज पर मजदूर निकालने शुरू किये और चुन-चुन कर नई भर्ती आरम्भ की। रात 8 बजे छूटने पर 15 अप्रैल को कुछ नये लोगो से मथुरा रोड़ पर किन्हीं का झगड़ा हुआ तब से कम्पनी ने उन्हें लाने-ले जाने के लिये वाहन का प्रबन्ध किया है। इस मामले में मैनेजमेन्ट ने कुछ स्थाई मजदूरों को पुलिस से गिरफ्तार करवा कर फैक्ट्री से बाहर भी किया हुआ है। इधर 12 मई को दो गाड़ियों में 10-12 लोग फैक्ट्री में आये। मैनेजर के कार्यालय में बैठ कर उन्होंने एक-एक कर कैजुअलों को बुला कर धमकाया — कम्पनी के कहे अनुसार चलो नहीं तो हाथ-पैर तोड़ देंगे।”
(मजदूर समाचार, जून 2008)