कुछ बातें गुड़गाँव से

2000 में एक नारीवादी युवती और एक युवा अन्तर्राष्ट्रीयतावादी मजदूर फरीदाबाद आये थे। जुलाई 2005 में होण्डा मानेसर फैक्ट्री मजदूरों और पुलिस की भिड़ंत अन्तर्राष्ट्रीय समाचार बनी थी। इस पृष्ठभूमि में अन्तर्राष्ट्रीयतावादी मजदूर मित्र 2007 में गुड़गाँव में एक कॉल सेन्टर में जर्मन भाषी के तौर पर वर्क वीजा पर आये थे। उन्होंने चक्रपुर में मजदूरों के एक निवास में कमरा लिया था। मजदूर समाचार को उन्होंने गुड़गाँव खींच लिया।

होण्डा, डेल्फी, मदरसन्स आदि फैक्ट्रियों के यूनियन लीडरों तथा सामान्य मजदूरों से जर्मन भाषी मित्र ने मिलवाया। इस सिलसिले में मारुति गुड़गाँव फैक्ट्री में सन् 2000 की हड़ताल में नेतृत्व में रहे और नौकरी से निकाल दिये गये एक व्यवहारकुशल वरकर से भी उन्होंने मिलवाया था। 1983 में मारुति फैक्ट्री में लगे और 2000 से 2003 की उठापटक में भुक्तभोगी रहे तथा न्यायालयों की तारीखें झेल रहे मजदूर की बातें फैक्ट्रियों में 1983 से 1992 की और फिर 1992 से 2000 के दौर की झलक दिखाती हैं। 1990 के बाद यहाँ इलेक्ट्रॉनिक्स का उत्पादन प्रक्रिया में प्रवेश जो तीव्र और अतुलनीय परिवर्तन लाया है उसका रेखांकन यहाँ दिखता लगता है।

मारुति कार मजदूर : “संजय गाँधी की छोटी कार योजना नहीं चली तो कम्पनी का सरकारीकरण कर सरकार ने सुजुकी कम्पनी को हिस्सेदार बनाया और दिसम्बर 1983 में फैक्ट्री से पहली कार निकली। पाँच किलोमीटर घेरे में फैले क्षेत्र में अब मारुति के तीन प्लान्टों के संग सहायक इकाइयाँ हैं और इधर मानेसर में इससे भी बड़े क्षेत्र में मारुति की नई फैक्ट्री शुरू कर दी गई है। आज प्रतिदिन 2200 मारुति गाड़ियाँ बन रही हैं और इस सँख्या में नई फैक्ट्री भारी इजाफा करेगी।

“मारुति उद्योग में 1983 में भारत सरकार का हिस्सा 76% और सुजुकी कम्पनी का 24% था। कार चल निकली तो 1987 में हिस्सेदारी 60 व 40 की गई और 1992 में आधी-आधी। सुजुकी कम्पनी का हिस्सा 54 प्रतिशत होने के साथ 1998 से उसका मारुति कम्पनी पर पूर्ण-सा नियन्त्रण हो गया।

“संचालन के लिये 1983 में सरकार ने बीएचईएल के एक बड़े साहब को मारुति उद्योग का चेयरमैन-मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया था। यह साहब अपने साथ प्रमुख अधिकारियों के संग इन्टक के एक यूनियन लीडर को भी लाया था। फैक्ट्री हरियाणा में स्थित है पर दिल्ली से 1983 में यूनियन का पंजीकरण करवाया गया और भर्ती-पत्र के साथ कम्पनी यूनियन की सदस्यता भी देती थी। यूनियन लीडर बड़े साहब के साथ अपने सीधे सम्बन्धों के कारण छोटे साहबों को भाव नहीं देता था, हड़का भी देता था। मैनेजरों ने विरोध में गुपचुप कुछ मजदूरों को नेताओं के तौर पर तैयार किया और 1986 में एचएमएस यूनियन के साथ 99 प्रतिशत मजदूर! चेयरमैन-मैनेजिंग डायरेक्टर बदला और नये बड़े साहब के नेतृत्व में मैनेजमेन्ट ने कुछ नये लीडरों को एचएमएस से इन्टक में कर यूनियन चुनाव करवाये। पहले वाले साहब से जुड़े इन्टक लीडर की जगह नये लोग लीडर चुने गये और उन्होंने फिर इन्टक से नाता तोड़ कर हरियाणा सरकार से एक स्वतन्त्र यूनियन का पंजीकरण करवाया। नई हरियाणा सरकार से जुड़ी एलएमएस यूनियन ने 1987 में मारुति कम्पनी में हाथ-पैर मारे पर चली नहीं …

“मारुति कम्पनी ने 1983 में अनुभवी मजदूरों की स्थाई भर्ती आरम्भ की थी। शुरू में सब-कुछ सुजुकी कम्पनी की जापान में फैक्ट्रियों से आता था और गुड़गाँव में उन्हें सिर्फ जोड़ा जाता था। कार के हिस्सों का यहाँ उत्पादन बढा और 1992 में मारुति फैक्ट्री में 4500 स्थाई मजदूर तथा 2000 विभिन्न प्रकार के स्टाफ के लोग हो गये। उत्पादन बढता गया है, कार के अधिकतर हिस्से भारत में ही बनने लगे हैं पर 1992 के बाद मारुति फैक्ट्री में स्थाई मजदूरों की भर्ती बन्द-सी है। बाहर काम करवाना बढा। लेकिन मारुति फैक्ट्री में उत्पादन से सीधे जुड़े काम में 1997 तक स्थाई मजदूर ही थे, ठेकेदारों के जरिये रखे कोई वरकर नहीं थे।

“मारुति फैक्ट्री में मजदूरों और साहबों की एक जैसी वर्दी, एक जैसा भोजन, बसों में साथ-साथ बैठना … सब का 15 मिनट पहले पहुँचना और शिफ्ट शुरू होने से पहले 5 मिनट सब द्वारा व्यायाम … सुजुकी कम्पनी के प्रभाव वाली इस समानता ने आरम्भ में हम मजदूरों को बहुत प्रभावित किया और हम लोगों ने इसे स्वीकार किया। लेकिन शीघ्र ही अनुभवों ने हमें बताया कि यह समानता दिखावे की समानता है। कम्पनी की इस-उस बात का मजदूर विरोध करने लगे। आरम्भ में इन्टक-एचएमएस-स्वतन्त्र यूनियन के मैनेजमेन्ट वाले लीडरों के जरिये हम ने कम्पनी का विरोध किया। फिर 1994 में एक किस्म के मैनेजमेन्ट-विरोधी लोग यूनियन चुनाव जीते और आगे के चुनाव भी जीतते गये। कम्पनी के हित और मजदूरों के हित, दोनों के हित की बात करने वाले इन यूनियन नेताओं से एक कम्पनी चेयरमैन ने समझौता किया तो उसकी जगह चेयरमैन बने दूसरे साहब ने वह रद्द कर दिया। मारुति मैनेजमेन्ट ने 1997 में उत्पादन से सीधे जुड़े कार्यों में भी ठेकेदारों के जरिये वरकर रखना शुरू कर दिया। फिर उकसाने वाली एक के बाद दूसरी हरकत कर कम्पनी ने सन् 2000 में हड़ताल करवाई …

“मारुति फैक्ट्री में हड़ताल। स्थाई मजदूरों की हड़ताल और ठेकेदारों के जरिये रखे वरकरों द्वारा फैक्ट्री में काम। दिल्ली में रात-दिन कई रोज स्थाई मजदूरों का परिवारों समेत जमघट। भाँति-भाँति के संगठनों का समर्थन। बड़ी-बड़ी यूनियनों के बड़े-बड़े लीडरों के भाषण। संसद सदस्यों के भाषण। पूर्व-प्रधान मन्त्री का भाषण। भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप और सरकारी रेडियो-टीवी पर समझौते की घोषणा। मारुति-सुजुकी कम्पनी द्वारा समझौते की बात से इनकार और भारत सरकार द्वारा असमर्थता व्यक्त। कितना कुछ नहीं देखा हम ने उस दौरान।

“अक्टूबर-दिसम्बर 2000 में स्थाई मजदूरों से हड़ताल करवा कर तथा हड़ताल कुचल कर मारुति कम्पनी ने स्थाई मजदूरों को नरम किया और फिर सन् 2001 में पहली वीआरएस लागू कर 1250 स्थाई मजदूरों की छंँटनी की। इस स्वैच्छिक कही जाती योजना को जबरन मजदूरों पर थोपा गया। फैक्ट्री में जबरदस्ती के संग घर-घर जा कर भी इस्तीफे लिखवाये गये। घर में जबरन इस्तीफा लिखवाने की फिल्म तक सबूत के तौर पर मजदूरों ने न्यायालय में पेश की और न्यायालय 6 साल से विचार कर रहा है! सन् 2003 में फिर वीआरएस के जरिये मारुति फैक्ट्री से 1250 स्थाई मजदूरों की छंँटनी की गई। ढाई हजार स्थाई मजदूरों को नौकरी से निकाल कर कम्पनी ने उत्पादन कार्य में ठेकेदारों के जरिये रखे वरकरों की संँख्या में भारी वृद्धि की है। आज मारुति कार की पहली फैक्ट्री में 1800 स्थाई मजदूर और ठेकेदारों के जरिये रखे 4000 वरकर उत्पादन कार्य में हैं। स्थाई मजदूर की तनखा 25 हजार रुपये और वही काम करते ठेकेदारों के जरिये रखे वरकरों को इसका पाँचवाँ-सातवाँ हिस्सा।”

(वैसे, मारुति कार का अधिकतर काम बाहर करवाया जाता है, फरीदाबाद-गुड़गाँव-ओखला-नोएडा में हजारों जगह करवाया जाता है। बहुत जगहों पर वहाँ की सरकारों द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता। ऐसे मजदूरों की संँख्या भी कम नहीं है जिन्हें न्यूनतम वेतन का आधा भी नहीं दिया जाता, 800-1000 रुपये तनखा में मारुति कार का काम करवाया जा रहा है।)

— (मजदूर समाचार, जून 2007 अंक)

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