● यहाँ हम हत्या में प्रयोग होते अस्त्र-शस्त्र के निर्माण में विज्ञान की भूमिका की चर्चा नहीं करेंगे। विज्ञान आधारित उत्पादन पद्धति द्वारा की जा रही हत्या-दर-हत्या की चर्चा भी हम यहाँ नहीं करेंगे। मानव मन-मस्तिष्क में गहरे बैठी मानव वध विरोधी बाधाओं को पहचानने व उन से पार पाने के लिये विज्ञान में की जा रही खोजों की कुछ चर्चा यहाँ करेंगे।
● प्रशिक्षण और उकसावों के बावजूद सैनिकों द्वारा हत्या से परहेज सेनाओं और सरकारों की गहन चिन्ता-चिन्तन का विषय है। दिन में ही युद्ध और चन्द रोज के लिये ही आमने-सामने युद्ध को बीसवीं सदी ने बीते जमाने की चीज बना दिया। दिन के संग रात को भी युद्ध … 60 दिन लगातार इन हालात में 98 प्रतिशत सैनिक मनोरोगों के शिकार हो जाते हैं — 2 प्रतिशत पहले ही पागल थे।
● 1914-1918 और 1939-45 में सरकारों के बीच चली विश्वव्यापी मारकाट में ढाई करोड़ व 5 करोड़ लोग मारे गये परन्तु अधिकतर सैनिकों ने एक गोली तक नहीं चलाई थी। सेनाओं-सरकारों ने कारणों की खोज और उनसे निपटने के तरीके ढूँढने के लिये सामाजिक विज्ञान-भौतिक विज्ञान के ज्ञानियों को अतिरिक्त साधन उपलब्ध करवाये …
● जीव-जन्तुओं की प्रत्येक योनि में अपनी योनि के किसी का वध अपवाद है — योनि के अस्तित्व का आधार है यह। एक ही योनि के दो जब आपस में कभी लड़ते हैं तब भी एक-दूसरे पर इस प्रकार वार करते हैं कि चोट घातक नहीं हो। जबकि, दो योनियों के आपस में लड़ते हैं तब घातक चोट मारने से परहेज वाली बात नहीं होती। सींगधारी जीव हों चाहे नुकीले दाँतों वाले — सब में अपनी योनि के किसी का वध करने से परहेज है। मानव के मन-मस्तिष्क में भी कहीं बहुत गहरे मानव वध से ऐसा ही परहेज है।
● मृत्यु-भय और हत्या करने की नौबत मनुष्य में एक ही प्रकार की शारीरिक प्रक्रियायें उत्पन्न करती हैं। मनुष्यों को अन्य जीवों से अलग करने वाला मस्तिष्क का अग्र भाग ऐसी स्थितियों में बन्द हो जाता है। हत्या करने अथवा मृत्यु की नौबत आने पर मस्तिष्क के अग्र भाग द्वारा काम करना बन्द कर देने पर मध्य-मस्तिष्क नियन्त्रण की स्थिति में आ जाता है। मध्य-मस्तिष्क में मानव और अन्य स्तनधारी जीव एक जैसे हैं। और, मध्य-मस्तिष्क में कहीं बहुत गहरे अपनी योनि के किसी का वध प्रतिबन्धित है …
● वैज्ञानिकों का सेनाओं-सरकारों को सुझाव : मानव को मानव वध के लिये तैयार करने के वास्ते ऐसा प्रशिक्षण देना जो हत्या करने को मन-मस्तिष्क के दायरे से निकाल कर एक क्रिया-प्रतिक्रिया मात्र में बदल दे। “बुल्ज आई” (साण्ड की आँख) की बजाय प्रशिक्षण के दौरान मानव आकृतियों पर गोली चलाना, भूसे से भरे मानव आकारों में बन्दूक पर लगी छुरी घुसाना … फिल्मों और खासकरके वीडियो खेलों में मानव आकृतियों पर गोलियाँ दागना। मानव वध के अपराधबोध के कारण मनोरोगी बनने से बचाने के लिये सैनिकों को प्रशिक्षण के दौरान और खासकरके हत्या अभियान के बाद मनोविज्ञान विशेषज्ञों की सहायता उपलब्ध कराना …
● इधर दुनियाँ-भर में मानवों द्वारा घातक आक्रमणों में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है … वीडियो खेलों में मानव आकृतियों पर गोलियाँ चलाते 10-11 वर्ष के बच्चे भी असली गोलियाँ चला कर हत्यायें करने लगे हैं। हालात हर जगह सतत और अनन्त युद्ध के बने हैं।
● ऐसे में विश्व-भर में सेनायें अधिकाधिक पुलिस की भूमिका में आ रही हैं और पुलिस अस्त्र-शस्त्रों में सेना की शक्ल अख्तियार कर रही हैं। मण्डी-मुद्रा के दबदबे को कायम रखने के लिये सरकारों को बड़े पैमाने पर योद्धाओं की जरूरत है। ईश्वर-अल्लाह-गॉड-धर्म-आत्मा- परमात्मा-अध्यात्म निरपेक्ष भाव से हत्या करने वाले योद्धाओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे। विज्ञान की विभिन्न शाखायें निरपेक्ष भाव से हत्या करने वाले योद्धाओं के निर्माण-उत्पादन में लगी हैं। और, भगवान व विज्ञान का मेल मानव योनि के विनाश के लिये पर्याप्त आधार प्रदान करता लगता है।
(अमरीका सरकार की सेनाओं द्वारा किये जा रहे विशेष अध्ययनों से जुड़े कर्नल डेविड ग्रॉसमैन के 1999 के एक भाषण से हम ने जानकारियाँ ली हैं — भाषण की प्रति एक मित्र ने भेजी)।
— 23 अप्रैल 2022 को
मजदूर समाचार द्वारा पुनःप्रसारित
^^^^^^^^^^^^^^^^^