इस सन्दर्भ में अंश भेजते रहेंगे। ग्यारहवें अंश में फरीदाबाद में फैक्ट्रियों में हुये परिवर्तनों को दर्शाती एक परमानेन्ट मजदूर की बातें हैं। जनवरी 2006 अंक से हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन प्रक्रिया में प्रवेश ने यूरोप और अमरीका में 1970 से फैक्ट्रियों में परिवर्तनों का भूचाल आरम्भ किया। बीस वर्ष बाद, 1990 में भारत में उस भूचाल ने फैक्ट्रियों को झकझोरना आरम्भ किया था। फरीदाबाद में 1990-2000 के दौरान फैक्ट्रियों के रूप-रंग के संग-संग फैक्ट्री मजदूरों के स्वरूप में बदलावों की आँधी … परिणाम है आज फैक्ट्रियों में अस्सी-नब्बे प्रतिशत मजदूरों का टेम्परेरी वरकर होना। बड़ी फैक्ट्रियाँ बन्द होना, एक बड़ी फैक्ट्री को सौ-दो सौ-पाँच सौ फैक्ट्रियों में तोड़ना। ट्रक-बस-कार-ट्रैक्टर निर्माता फैक्ट्रियों का असेम्बली प्लान्ट बनना, ऑटो हब का उदय।
फैक्ट्री रिपोर्ट के रूप में यहाँ सेन्डेन विकास फैक्ट्री में मित्र एक परमानेन्ट मजदूर की बातें इस सन्दर्भ में पन्द्रह वर्ष पहले की झलक दिखाती हैं।
सेन्डेन विकास मजदूर : “प्लॉट 65 सैक्टर-27ए स्थित फैक्ट्री में रोज सुबह साढे दस बजे मन खराब हो जाता है। स्थाई मजदूर और ठेकेदारों के जरिये रखे वरकर असेम्बली लाइन पर बराबर में लगते हैं, मशीनों पर अगल-बगल में काम करते हैं, ब्रेजिंग में संग-संग हैं परन्तु सुबह साढे दस बजे स्थाई मजदूरों को चाय के संग कचोड़ी/समोसे दिये जाते हैं और ठेकेदारों के जरिये रखे वरकरों को सिर्फ चाय — बहुत दुखता है यह स्थाई मजदूरों को भी। कैन्टीन में स्थाई मजदूरों और स्टाफ के लोगों को भोजन एक रुपये में और ठेकेदारों के जरिये रखे वरकरों को दस रुपये में। ठेकेदारों के जरिये रखे वरकरों की तनखा स्थाई मजदूरों की तनखा के तीसरे से छठवें हिस्से के बराबर है …
“कम्पनी के दो बड़े साहबों में एक भारत सरकार का नागरिक है और दूसरा जापान सरकार का नागरिक है।
“कारों के (बसों-ट्रकों के भी) एयरकन्डीशनर बनाती सेन्डेन विकास में 75-80 स्थाई मजदूर, 30-35 ट्रेनी, 125-150 स्टाफ वाले और दो ठेकेदारों के जरिये रखे 75-150 वरकर काम करते हैं। 1985 में शुरू हुई कम्पनी ने 1995 से मजदूरों को परमानेन्ट करना बन्द कर रखा है … इधर प्लास्टिक मोल्डिंग की नई बड़ी मशीन चलाने वाले 6 लोगों को कम्पनी स्टाफ कहती है।
“फैक्ट्री में काम का बोझ लगातार बढाया जा रहा है — 1985 में 1000 एयरकन्डीशनर प्रतिमाह, अब 15,000 प्रतिमाह। खींचातान से ही अब उत्पादन पूरा कर पाते हैं। सब स्थाई मजदूरों की आयु अब 30 वर्ष से अधिक हो गई है — ठेकेदारों के जरिये रखे वरकरों में ज्यादा उम्र वालों को कम्पनी रखती ही नहीं, 25 वर्ष से कम आयु वाले ही रखती है (वैसे अभी उत्पादन में 18 वर्ष से कम आयु वाले भी लगा रखे हैं)।
“सेन्डेन विकास फैक्ट्री में आमतौर पर पूरे साल ओवर टाइम लगता है। महीने में 60-70 घण्टे तो ओवर टाइम के हो ही जाते हैं। स्थाई मजदूरों को ओवर टाइम का भुगतान दुगनी दर से किया जाता है पर वेतन का आधे से ज्यादा हिस्सा भत्ते हैं और ओवर टाइम बेसिक व डी.ए.पर ही दिया जाता है इसलिये यह वास्तव में सिंगल रेट से भी कम पड़ता है। जिन्हें स्टाफ कहते हैं उन्हें कम्पनी 40 घण्टे प्रतिमाह से ज्यादा ओवर टाइम का भुगतान करती ही नहीं। ठेकेदारों के जरिये रखे वरकरों को प्रतिमाह 70-80 घण्टे ओवर टाइम करना पड़ता है और उसके पैसे सिंगल रेट से दिये जाते हैं।
“आजकल सबसे बड़ी समस्या नौकरी के डर की हो गई है। हालात को देखते हुये सेन्डेन विकास में स्थाई मजदूरों की तनखा अच्छी है … स्थाई मजदूरों को और दबाने के लिए कम्पनी 8 से 18% वार्षिक वेतन वृद्धि मनमर्जी से करती है। ऐसे में 20-30% स्थाई मजदूर चमचागिरी की राह पर …
“कदम-कदम पर दुभान्त करती, भेदभाव बरतती सेन्डेन विकास कम्पनी ओवर टाइम के समय स्थाई मजदूरों को भी इसकी चपेट में लेती है — साँय साढे पाँच से रात साढे नौ तक ओवर टाइम के दौरान साढे सात बजे कम्पनी स्टाफ वालों को चाय के साथ कुछ खाने को देती है पर स्थाई मजदूरों (और ठेकेदारों के जरिये रखे वरकरों) को सिर्फ चाय देती है। लगता नहीं है कि कम्पनी को पैसे की कमी है — फैक्ट्री में पूरे फर्श पर पेन्ट करवा रखा है।
“सेन्डेन विकास फैक्ट्री में एक्सीडेन्ट के अवसर बहुत कम हैं। शीट मैटल का सब काम कम्पनी बाहर ही करवाती है। कम्प्रेसर सब जापान से आते हैं — यहाँ उन पर कोर, क्लच, रोटर लगाते हैं। होज बाहर से आता है, हम काट कर जोड़ते हैं। गेले, केनमोर, प्रणव विकास सहायक कम्पनियाँ हैं।”
(मजदूर समाचार, जनवरी 2006 अंक)