●काम-संविधान-विज्ञान●

प्रवेश : आरम्भ के लिये कुछ बातें।

●11 मई 2020 की पोस्ट

नई समाज रचना के लिये इस अत्यन्त जीवन्त समय में काम-संविधान-विज्ञान पर बहुत-ही ज्यादा विचार-विमर्श प्राथमिक आवश्यकताओं में लगता है। इस बारे में व्यापक आदान-प्रदान अनिवार्य आवश्यकताओं में लगते हैं।

इधर जाने-अनजाने में काम की, संविधान की, विज्ञान की महिमा भी काफी देखने-सुनने में आ रही है।

ऐसे में, इस सन्दर्भ में महीने-भर के तीन पोस्ट एकत्र कर यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। सम्भव है कि कुछ प्रस्थान-बिन्दु मिलें।

● 19 अप्रैल 2020 की पोस्ट

जीवन की परिभाषा

# क्या करते हैं ?
सामान्य-सा प्रश्न।
और मानव प्रजाति के सामाजिक विभाजन वाले पाँच-दस हजार वर्ष के इस दौर में यह व्यक्ति को परिभाषित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है।

# इस दौरान काम-काम-काम सामाजिक प्रक्रिया की धुरी रहा है। काम के स्वरूप और सार बदलते भी आये हैं। “शारिरिक” और “मानसिक” वाले भेद भी किये गये हालाँकि तन और मन-मस्तिष्क को अलग नहीं किया जा सकता। कँकड़ भी माँसपेशियों और मस्तिष्क के तालमेल के बिना नहीं उठाये जा सकते। और, मन की सहमति के बिना तो न हाथ हिलते हैं तथा न ही दिमाग चलता है।

# अन्य प्रजातियों की ही तरह मानव प्रजाति में भी गतिविधियाँ प्रचुर मात्रा में रहती हैं। आनन्दवाली इनमें उल्लेखनीय होती हैं। जीवन का उल्लास वाली बात।

सामाजिक विभाजन अपने संग जीवन को शाप, पतन, जन्म से मुक्ति की बातें भी लाया। और लाया काम। मनुष्यों पर काम थोपने के लिये शास्त्रों और शस्त्रों की जुगलबंदी की लम्बी सूची है :

स्वामी गण। स्वामी और दास। ढाई हजार वर्ष पहले मगध क्षेत्र में व्यापक हिंसा। इस हिंसा का सामाजिक आधार क्या था ?

दासों के विद्रोह।

स्वामी शास्त्रों के परिष्कृत स्वरूप उभरे :

अहिंसा परमोधर्म। शान्ति के नये प्रवचन। जैन मत के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर और गौतम बुद्ध नये शास्त्री।

एक कहानी : एक दास संघ का सदस्य बन गया। नियम अनुसार वह सांसारिक कर्तव्यों से मुक्त हो गया।

स्वामी एकत्र हुये। श्रेष्ठिजन गौतम बुद्ध के पास गये। बुद्ध ने नियम बनाया, “स्वतन्त्र पुरुष ही संघ का सदस्य बन सकता है।”

और, यूनान के स्वामी शास्त्री प्लेटो की पुस्तक “रिपब्लिक” विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में। नागरिकों की समता पुस्तक का सार। परन्तु दास नागरिक नहीं। स्वामी ही नागरिक।

अत्यन्त परिष्कृत शास्त्र भी दासों को पालतू बनाने में विफल। शस्त्रों के प्रयोग :

यूनान में भाग जाने वाले दास के पकड़े जाने पर उसे भूखे शेर के सामने छोड़ने का सार्वजनिक प्रदर्शन।

और, रोम में दासों के विद्रोहों की श्रखंला में ईसा पूर्व 73-71 वाले दास विद्रोह को पराजित करने के पश्चात एक स्वामी सेनापति ने रोम से कापुआ नगर मार्ग पर छह हजार दासों को सलीबों पर टाँगा था। दूसरे स्वामी सेनापति ने पाँच हजार दासों को सलीबों पर मृत्यु-दण्ड दिया।

परन्तु चर्चा में ईश्वर-पुत्र का एक सलीब।

एक और शास्त्री की कहानी। बेटा होने की खुशखबरी हजरत को दी। जनाब ने प्रसन्न हो कर शुभ समाचार देने वाले को उपहार में एक गुलाम दिया।

# पीढी-दर-पीढी के अनुभव। विद्रोह और विद्रोही परिष्कृत होते आये हैं। नाथना-नियन्त्रित करना अधिकाधिक कठिन। दयनीय है मैनेजमेन्टों की स्थिति।

दुनिया-भर में विश्वविद्यालयों में शास्त्रियों द्वारा थोक में शास्त्रों का उत्पादन भी सीसीटीवी कैमरों की ही तरह एक और अपव्यय है।

# ऐसे में इन दस-पन्द्रह वर्ष से विश्व में काम बहुत बढते जाने और काम गायब होते जाने की आँखमिचौली वाला खेल चल रहा है।

दिल्ली और इर्द-गिर्द के औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्ट्री मजदूरों में यह काफी स्पष्टता ले रहा लगता है।

बारह घण्टे काम करने के बाद फैक्ट्री में जबरन रोकते हैं। बहुत नाइट लगती हैं : सुबह लगते हैं और रात बारह-एक बजे तक काम। फुल नाइट भी काफी लगती हैं : सुबह लगते हैं और अगली सुबह पाँच-छह बजे तक काम के बाद दो-तीन घण्टे के ब्रेक के बाद फिर काम शुरू। महीने में डेढ सौ-दो सौ-ढाई सौ-तीन सौ घण्टे ओवर टाइम के।

और, “क्या करते हैं ?” पूछने पर :
कुछ नहीं! काम है ही नहीं!!

# फैक्ट्रियों में रोबोट, कृत्रिम बुद्धि (आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स) का तीव्र विस्तार विश्व में काम के विलोप (समाप्त होने) की प्रवृति को इंगित करते हैं।

और ऐसे में एक सामान्य घातकता लिये वायरस ने साहब लोगों में वह मृत्यु-भय उत्पन्न किया है कि दुनिया के कई क्षेत्रों में सरकारों ने लाखों फैक्ट्रियाँ उल्लेखनीय समय के लिये बन्द की हैं।

यह जीवन की नई परिभाषा का समय है।

● 6 मार्च 2020 की पोस्ट

सन्दर्भ : संविधान

1. वर्तमान ऊँच-नीच की धुरी मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन है। इस ऊँच-नीच के संचालन तथा इसे बनाये रखने के लिये विश्व-भर में संविधानों का बोलबाला है। यह संविधान, वह संविधान, यहाँ का संविधान, वहाँ का संविधान वर्तमान की मनुस्मृतियाँ हैं।

2. मण्डी-मुद्रा के, स्थानीय व्यापार के उल्लेखनीय बनने के साथ नियम-कानून की, संविधान की धारणायें प्रमुखता से उभरने लगी थी। मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन के संग, सन् 1800 के बाद नियम-कानून का विश्व-भर में शक्ति ग्रहण करते जाने का सिलसिला चला।
उल्लेखनीय बनने के सौ वर्ष के अन्दर ही, मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन के आधार वाले सामाजिक गठन के नाकारा हो जाने के संग-संग अत्यन्त हानिकारक हो जाने वाले पहलू वीभत्स रूप में सामने आये।
1914-1918 वाली महा मारकाट में (प्रथम विश्व युद्ध में) ढाई करोड़ लोग मारे गये। यह इस-उस व्यक्ति, इस-उस दल, इस-उस नीति के कारण नहीं हुआ। यह अचानक, किसी घटना के कारण नहीं हुआ। इसका होना 1890 से तो बहुत साफ-साफ दिखने लगा था। आरम्भ 1914 में हुआ परन्तु युद्ध की तैयारियाँ 1890 से तेज हो गई थी।
ऊँच-नीच वाली समाज व्यवस्थाओं में षडयन्त्र दैनिक दिनचर्या है। परन्तु, सामाजिक घटनाक्रम में साजिशें निर्णायक नहीं होती : “मरने वाले ढाई करोड़ लोगों में अधिकतर ‘गोरे, इसाई, और पुरुष’ ” को एक उदाहरण के तौर पर ले सकते हैं।

3. विनाशलीला के पश्चात : “अब फिर युद्ध नहीं !!” लीग ऑफ नेशन्स की स्थापना।
परन्तु, मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन सामाजिक प्रक्रिया की धुरी बनी रही। और, बीस वर्ष में :
1939-1945 के दौरान पूरी दुनिया में मारकाट। पाँच करोड़ लोग मारे गये।
मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन को सामाजिक प्रक्रिया की धुरी बनाये रखते हुये शान्ति बनाये रखने के वास्ते युनाइटेड नेशन्स ऑरगैनाइजेशन की स्थापना।
संसार में सतत हिंसा।

4. दुनिया के कुछ क्षेत्रों में प्रभुत्वकारी, मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन, विश्व-भर में सामाजिक प्रक्रिया की धुरी थी। इन पचास वर्षों के दौरान संसार के सभी क्षेत्रों में मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन प्रभुत्वशाली बना है।
इसके बने रहने ने पृथ्वी पर जीवन को दाँव पर लगा दिया है।

5. आज हमारे सम्मुख नियमों-कानूनों का उल्लंघन सामान्य है। “कानून का राज” अर्थहीन है।
ऐसे में :
यह-वह कानून बनाने। इस-उस कानून को हटाने। संविधान में से फलाँ धारा हटाने। संविधान में यह धारा जोड़ने।
इनका सार :
इस अथवा उस तरह से मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन को सामाजिक प्रक्रिया की धुरी बनाये रखना लगता है।

● 5 मई 2020 की पोस्ट

सन्दर्भ : ज्ञान-विज्ञान और ऊँँच-नीच
Knowledge-Science And Hierarchies

# जो हैं वो स्वयं में अत्यन्त
जटिल। जो अनेकानेक हैं वो गतिशील। अनेक गतियाँ। परस्पर लिपटती और एक-दूसरे को प्रभावित करती गतियाँ।

किसी भी आंकलन का अपर्याप्त होना स्वाभाविक।

अणु-इलेक्ट्रोन स्तर की सरलता भी इतनी जटिलता-गतिशीलता लिये है कि सम्भावना-घनत्व-संभाव्यता की धारणायें आवश्यक लगती हैं।

इसलिये व्यवहार-उचित व्यवहार-व्यवहार में सुधार के लिये अधिकाधिक लोगों के बीच समुचित आदान-प्रदान पूरक की भूमिका लिये है। और, मनुष्यों के बीच विद्यमान उन्नीस-बीस वाली भिन्नतायें आदान-प्रदान के अनुकूल हैं।

Given the extreme complexities and intertwining multiple dynamics, for any reading-evaluation to be inadequate is natural.

Even atom-electron level simplicity is so complex and dynamic that it seems necessary to use the concepts of possibilities, probabilities, densities.

Hence adequate conversational interactions amongst increasing number of persons has complementary role for practice-proper practice-improvement in practice. And, minor inherent differences amongst humans are in accord with conversational interactions.

# ऊँच-नीच वाले सामाजिक गठनों में पिरामिडों के शिखरों (परिवार में चाहे राजसत्ता में) के लिये सही-सत्य-वास्तविक की धारणायें अनिवार्य आवश्यकतायें लगती हैं। यह प्रभुत्वकारी रही हैं। इन्हें प्रभुत्वकारी बनाये रखने के लिये शास्त्र-शस्त्र के अनन्त ताण्डव।

गौण को महत्वपूर्ण प्रस्तुत करना ऊँच-नीच उत्पन्न करने के लिये एक अनिवार्य आवश्यकता है। इसलिये आदान-प्रदान के लिये सीढीनुमा सामाजिक गठन स्थान उपलब्ध नहीं कराते। शास्त्रार्थ और दमन ऊँच-नीच के अनुकूल हैं।

In hierarchical social organisations, for pyramidal peaks (be they in family or in state apparatus), correct-real-true concepts seem to be indispensable. They have been hegemonic. Uninterrupted tandav (dance of destruction) of shaashtra-shastra (Text-Weapon) to maintain the hegemony.

To present insignificant as important is an indispensable necessity for engendering hierarchy. Hence hierarchical social formations do not provide space for conversational interactions. Polemics and suppression suit hierarchies.

# देवी-देवताओं के संग दर्शनशास्त्रियों की स्वामी समाज में महत्वपूर्ण भूमिका रही।

ईश्वर-अल्लाह-गॉड और उनके इल्मी-ज्ञानी बेगार प्रथा के अधिक अनुकूल रहे।

दूरस्थ व्यापार के लिये विज्ञान महत्वपूर्ण।

With gods-goddesses, philosophers had an important role in slave-owning societies.

Ishwar-allah-god and their pandits were more suitable for corvee labour (feudalism).

Science important for long distance trade.

# बिक्री के लिये उत्पादन। मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन ने विज्ञान को स्थापित किया।

मण्डी-मुद्रा के प्रभुत्व के संग विज्ञान प्रभुत्वशाली बना। प्रगति और विकास का विज्ञान वाहक वाहन।

ज्ञान-विज्ञान विश्व में आधुनिक ऊँच-नीच के स्तम्भ।

Production for sale. Wage-labour based commodity production established science.

With the domination of money-market came the hegemony of science. Science, the vehicle of progress and development.

Knowledge-Science pillars of modern hierarchy in the world.

# अधिकाधिक नाकारा साबित होती मण्डी-मुद्रा। मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन की बढती लड़खड़ाहटें। ज्ञान-विज्ञान के लिये अबूझ पहेली।

ईश्वर-अल्लाह-गॉड आदि में बुझती लौ वाली चमक।

Increasing dysfunctionality of money-market. Tottering wage-labour based commodity production. Indecipherable riddle for knowledge-science.

Flicker before extinguishing of ishwar-allah-god etc.

# सम्पूर्ण से अंश को अलग कर देखने को विज्ञान का सार कह सकते हैं।

बिक्री के लिये उत्पादन की आलोचना के लिये विज्ञान की आलोचना एक अनिवार्य आवश्यकता लगती है।

अंश और पूर्ण के बीच सौहार्द नई समाज रचना के लिये प्राथमिक महत्व का लगता है।

Separation of part from the whole to read it can be said to be the essence of science.

Critique of science seems to be indispensable for critique of commodity production.

Harmony between part and whole seem to be of primary importance for creation of a new society.

— 11 मई 2020
मजदूर समाचार की पोस्ट

This entry was posted in General, In Hindi. Bookmark the permalink.