सत्ता, राजसत्ता अपने तन्त्र के कुछ मँहगे पुर्जे ढालने में उल्लेखनीय व्यय करती हैं।
# बात 1972 की है। मैं आई.आई.टी. मद्रास में पढता था। मुझे भारत सरकार की डिपार्टमेंट ऑफ एटोमिक एनर्जी की 400 रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति के अतिरिक्त कॉपी-किताब के लिये वर्ष में 1500 रुपये देते थे। इन्स्टिट्युट में भोजन और निवास पर सब्सिडी। आई.आई.टी. मद्रास का हरा-भरा बड़ा परिसर जहाँ हिरण विचरते थे। समुद्र तट के निकट अडियार के लिये संस्थान की बसें। और, स्पेशल इन्स्टरुमेन्ट्स लैब प्रयोगों के वास्ते। वैसे, तब पी.एचडी. के लिये यूजीसी फैलोशिप 300 रुपये महीना होती थी।
# तुलना के लिये 1972 में फरीदाबाद में कुछ फैक्ट्रियों में मजदूरों की तनखायें :
— इन्ड्स्ट्रीयल एरिया स्थित ईस्ट इण्डिया कॉटन मिल में 1972 में हैल्पर की तनखा 60 रुपये और कपड़ा बुनते लूम ऑपरेटर की तनखा 90 रुपये थी।
— न्यू इन्ड्स्ट्रीयल एरिया स्थित गेडोर हैण्ड टूल्स की तीन फैक्ट्रियों में 1972 में हैल्परों की तनखा 80 रुपये और कारीगरों की 100-120 रुपये थी।
— 1972 में मथुरा रोड़ स्थित यूनिवर्सल इलेक्ट्रिक (बाद में नाम वीएक्सएल टैक्नोलॉजीज) फैक्ट्री में तनखा 90 रुपये थी। फैक्ट्री में बमों के टाइमर बनते थे और दसवीं पास से कम की भर्ती नहीं। ऊपर से दाढी बना कर आने जैसे अनेक अनुशासन भी।
— 1972 में सैक्टर-24 में पॉरिट्स एण्ड स्पैन्सर (अब नाम वॉयथ) फैक्ट्री में तनखा 125 रुपये थी और यह ज्यादा मानी जाती थी। इस फैक्ट्री में कागज फैक्ट्रियों में काम आते फैल्ट बनते हैं और इसे कम्बल फैक्ट्री कहा जाता रहा है।
— एस्कॉर्ट्स समूह की फैक्ट्रियों में ड्राफ्ट्समैन स्तर के उच्च कुशल वरकर की 1969 में तनखा 169 रुपये थी।
— इन्ड्स्ट्रीयल एरिया स्थित ढाण्ढा इंजीनियरिंग की तीन फैक्ट्रियों में 1972 में हैल्परों की तनखा 72 रुपये थी।
## तुलना करते समय यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि 1972 में एक की तनखा पर परिवार का खर्च चलाना व्यापक था। 1972 में 60 से 100 रुपये महीना में अधिकतर फैक्ट्री मजदूरों के परिवार पलते थे।
— 24 मई 2021, मजदूर समाचार