छुट-पुट धमकियाँ और मार-पीट -3

## कम्युनिस्ट क्रान्ति के हिन्दी और अँग्रेजी में 1986 तथा 1988 में छपने ने दुनिया में हमारे सम्पर्क बढाये थे। इतालवी वाम में जड़ों वाले इंग्लैण्ड में कम्युनिस्ट वरकर्स ऑरगैनाइजेशन के दो सदस्य फरीदाबाद आये थे। विश्व में राजसत्ता तथा हिरावल विरोधी वाम धाराओं के लिये मंच के तौर पर अमरीका में डिस्कशन बुलेटिन छापते बुजुर्ग फ्रैन्क जिरार्ड फरीदाबाद आये थे। और, a ballad against work (1996), Reflections on Marx’s Critique of Political Economy (1997), Self-Activity of Wage-Workers : Towards a Critique of Representation & Delegation (1998) छपने के बाद विश्व में सम्पर्क अधिक बढे थे। फ्रांस से शॉफ जोड़ी, कनाडा से परेश चट्टोपाध्याय, अमरीका से लोरेन गोल्डनर, आस्ट्रेलिया से विन्सेंट, इंग्लैंड से जोह्न क्लेग, अमरीका से टॉड गुडनाव फरीदाबाद आये थे। इस सिलसिले में 2000 में लय-ताल में दक्षिण अफ्रीका में जन्मी और लन्दन में रह रही नारीवादी जिग्गी मेलामेड और जर्मनी में जन्मे लड़ाकू अन्तर्राष्ट्रीयवादी मारको साथ-साथ फरीदाबाद आये थे ।

2005 में होण्डा मानेसर फैक्ट्री मजदूरों पर पुलिस लाठीचार्ज दुनिया में खबर बनी थी। जर्मन भाषा में कॉल सेन्टर में काम के लिये तीन महीने के वर्क वीजा पर 2007 में मारको गुड़गाँव आये थे। हर सप्ताह वे फरीदाबाद आने लगे। पाँच हजार प्रतियाँ प्रतिमाह फरीदाबाद और ओखला फैक्ट्री मजदूरों के बीच ले जाने से हम संतुष्ट थे। मारको ने हमें गुड़गाँव खींचा। उनके लौटने पर एक दिन सुबह मजदूर समाचार की 500 प्रतियाँ ले कर हम पीर बाबा रोड़, उद्योग विहार फेज-1, गुड़गाँव पहुँचे। नदी की तरह बहते स्त्री-पुरुष मजदूरों को देखा। सात हजार प्रतियाँ प्रतिमाह एक अनिवार्य आवश्यकता बनी। महीने के 7000 प्रतियाँ छापना आरम्भ किया।
■ 7 मार्च 2008 को भूपेन्द्र अकेले मजदूर लाइब्रेरी में बैठे थे जब उद्योग विहार, गुड़गाँव से एक कम्पनी के गुस्से से भरे दो डायरेक्टर धमकाने पहुँचे थे। मजदूर समाचार के अप्रैल 2008 अंक में विवरण दिया है।
■ उद्योग विहार, गुड़गाँव स्थित रादनिक गारमेन्ट एक्सपॉर्ट्स फैक्ट्री मैनेजमेन्ट के लोग धमकाने मजदूर लाइब्रेरी आये थे।

## मजदूर समाचार की कुछ प्रतियाँ डाक से भी भेजते रहे हैं। इलाहाबाद में भारत की क्रान्तिकारी समाजवादी पार्टी, R.S.P.I.(M-L), के कार्यालय डाक से पहुँचता था। पार्टी ऑफिस सम्भाले मणि भूषण मजदूर समाचार पढते थे।

2009 में मणि भूषण गुड़गाँव पहुँचे। एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगे। मणि भूषण जी ने इन्डस्ट्रियल मॉडल टाउन, मानेसर में मजदूर समाचार बाँटना आरम्भ किया। महीने में आठ हजार प्रतियाँ छापने लगे। जून 2011 में मारुति सुजुकी मानेसर फैक्ट्री में मजदूरों की गतिविधियों ने महीने में मजदूर समाचार की दस हजार प्रतियाँ आवश्यक बनाई।

■ जून 2011 के बाद मारुति मजदूरों के बीच हर महीने मजदूर समाचार बाँटने के संग-संग मणि भूषण जी और मैं मारुति मजदूरों से मिलने उनके अलियर गाँव में निवासों पर नियमित तौर पर जाने लगे थे। मारुति मैनेजमेन्ट के मजदूरों पर अगस्त-अंत में आक्रमण के बाद पूरे सितम्बर माह 1500-1500 मजदूर फैक्ट्री गेट के बाहर 12-12 घण्टे की दो शिफ्टों में बैठे। राजनीतिक पार्टियों के लोग, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों के कर्मी, दिल्ली से छात्र-छात्रायें वहाँ पहुँचते रहे। फैक्ट्री गेट के सामने लगे तम्बू में माइक लगे थे और आने वाले वहाँ जाते, नेतृत्व से मिलते, प्रमुख लोग भाषण देते-नारे लगवाते। यह दिन-भर चलता। हम लोग सितम्बर में शायद हर रोज ही वहाँ जाते थे परन्तु तम्बू की बजाय, काफी दूरी तक पसर कर बैठे मजदूरों के बीच बैठते थे। अलियर-ढाणा में जून से कमरों पर जा कर मिलने के कारण कई मारुति मजदूरों से परिचय था। सितम्बर में उनके बीच नियमित बैठने ने परिचय बढाये। एक दिन दिल्ली की दो छात्राओं के साथ मजदूरों के बीच बैठे थे जब तैश में दो-तीन वरकर आये और धमकाने के लहजे में सवाल पूछने लगे थे : “कौन हो? यह लड़कियाँ यहाँ क्यों बैठी हैं? यह लड़कियाँ हँगामा कर के हमें फँसायेंगी।”
■ आई एम टी मानेसर में ऑटो डेकॉर फैक्ट्री मैनेजर ने तनखा में देरी आदि की बातें छपने पर फोन पर लल्लो-पच्चो की। फिर फैक्ट्री यूनियन प्रेसिडेंट ने फोन किया :
“यह बातें आपने किसके कहने पर छाप दी?”
“ऑटो डेकॉर मजदूरों की बातें हैं।”
“फैक्ट्री के बारे में आप मैनेजमेन्ट अथवा यूनियन की बातें ही छाप सकते हैं। यूनियन एक्शन लेगी। यूनियन के जिला नेताओं से बात कर हम आप पर केस करेंगे।”
■ जुलाई 2012 में मारुति मजदूरों के विद्रोह के बाद। आई एम टी मानेसर सैक्टर-3 में एक सुबह मजदूर समाचार बँट रहा था। निकट के खोह गाँव से दो-तीन अधेड़ आये और धमकाते हुये बोले थे : “यहाँ नहीं बाँटोगे। फैक्ट्रियाँ बन्द करवाओगे। यहाँ हम नहीं बाँटने देंगे।”
■ आई एम टी मानेसर में सुबह बाँटने के बाद दोपहर दो बजे से मारुति सुजुकी गुड़गाँव फैक्ट्री मजदूरों की बी-शिफ्ट में जून 2011 के बाद से मजदूर समाचार बाँटने जाते हैं। मारुति मैनेजमेन्ट द्वारा गार्डों के जरिये रुकावट डालने के कारण फैक्ट्री गेट से बहुत दूर, मुल्लाहेड़ा रोड़ पर बाँटते हैं जहाँ से बड़ी सँख्या में मारुति मजदूर पैदल फैक्ट्री पहुँचते हैं। दो वर्ष पहले एक दिन वहाँ पहुँचे ही थे कि फोन आया कि मिलने फरीदाबाद जा रहे हैं। उन्हें बताया और स्थान के बारे में जानकारी दी। कार में तीन लोग पहुँचे। बी-शिफ्ट वरकर ड्युटी जा रहे थे। इन्तजार करने को कहा और इस दौरान पढने को मजदूर समाचार दिया तब उनका गुस्सा साफ दिख रहा था।
“बड़े अखबार भी फैक्ट्री का नाम नहीं छापते। आपने इतनी कम्पनियों के नाम छापे हैं।”
“कोई गलत बात छपी है क्या?”
“सब गलत छापा है।”
ऐसे लहजे में बात कर रहे थे, धमका रहे थे कि फैक्ट्री में ऑफिस में बुला कर अकेले मजदूर पर डाले जाते दबाव का कुछ अहसास हुआ।
आई एम टी मानेसर से आये थे पर बार-बार पूछने पर भी फैक्ट्री का नाम नहीं बताया।
■ मजदूर समाचार के अप्रैल 2017 अंक के दूसरे पन्ने पर सामग्री : “फ्रिक इण्डिया (एन एच पी सी चौक, फरीदाबाद) फैक्ट्री में 30-40 परमानेन्ट मजदूर और 550 टेम्परेरी वरकर। सौ-सवा सौ हैल्परों को तीन महीने बाद ब्रेक और फिर उन्हीं को तीन महीने नहीं रखते। चार सौ से ज्यादा कारीगरों को 6 महीने, फिर 6 महीने, फिर एक-एक साल रखने का सिलसिला।”

फ्रिक इण्डिया मैनेजमेन्ट ने इस सामग्री को कम्पनी की मानहानि वाली पाया। फ्रिक इण्डिया कम्पनी की मानहानि करने के लिये फ्रिक मैनेजमेन्ट ने 18 अप्रैल 2017 को हमें दस लाख रुपये का लीगल नोटिस भेजा था।

## 1982-84 के दौरान दो पन्ने वाले मजदूर समाचार की एक प्रति पच्चीस पैसे में बिकती थी। 1986 से चार पन्ने के मजदूर समाचार की नई सीरीज आरम्भ हुई और पहले पन्ने पर “1/” छपा होता था परन्तु फ्री बँटता था। 1993 के बाद पाँच हजार प्रतियाँ हर महीने छापने लगे तब भी पहले पन्ने पर “1/” छपता था लेकिन साल-भर “सैम्पल कॉपी, फ्री” की मोहर लगाई थी। फिर पहले पन्ने पर “फ्री” छापने लगे थे। पोस्टल रेजिस्ट्रेशन करवाया था इसलिये डाक से मजदूर समाचार भेजने में कम खर्च लगता था। डाक विभाग ने मजदूर समाचार के फ्री वितरण पर ऑडिट ऑब्जेक्शन का हवाला देते हुये 2007 में हमें 72 हजार 499 रुपये जमा करने के लिये पत्र भेजा था। तब से पहले पन्ने पर फिर से “1/” छापने लगे परन्तु मजदूर समाचार फ्री बाँटना जारी रखा। चिन्तामणि जी की 2015 में मृत्यु के बाद डाक से मजदूर समाचार भेजना बन्द कर दिया।

2011 में मारुति मानेसर फैक्ट्री मजदूरों की हलचलों ने दस हजार प्रतियाँ आवश्यक बनाई। फिर बढते-बढते पन्द्रह हजार पर सँख्या ठहर-सी गई थी। शिफ्टों के समय मजदूर समाचार दिल्ली में ओखला औद्योगिक क्षेत्र, नोएडा फेज-2, उद्योग विहार गुड़गाँव, आई एम टी मानेसर, और फरीदाबाद में फैक्ट्री मजदूरों के बीच हर महीने बँटता रहा। मजदूर समाचार के साथी ही बाँटने का कार्य मुख्यतः करते रहे हैं। वर्षों से सड़कों पर बाँटने वालों से दो-चार-दस प्रतियाँ सहकर्मियों के लिये कुछ मजदूर लेते रहे थे। ऐसे वरकरों की सँख्या बढती आई थी और 2018 में बहुत उल्लेखनीय परिवर्तन आरम्भ हुये। नोएडा, ओखला, उद्योग विहार गुड़गाँव, आई एम टी मानेसर, फरीदाबाद में मजदूर समाचार के पाठक बहुत तेजी से मजदूर समाचार के वितरक बनने लगे। ठहराव टूटा। छलाँगें लगने लगी। मजदूर समाचार की 15 से 18 हजार, बीस हजार, पच्चीस हजार, 28 हजार, तीस हजार… 35-36 हजार प्रतियाँ हर महीने। और, मजदूर समाचार निशुल्क-मुफ्त-फ्री बँटता रहा है।

## एक मोड़ के लिये प्रयोग के वास्ते मजदूर समाचार का मार्च 2020 अंक नहीं छापा। “मजदूर समाचार पुस्तिका एक” मार्च में छापी और इसे ले कर आई एम टी मानेसर तथा फरीदाबाद में फैक्ट्री के मजदूरों में जाना आरम्भ किया। पहली रेसपोन्स उत्साहवर्धक। और, सरकार ने 23 मार्च से लॉकडाउन-पूर्णबन्दी आरम्भ की। पुस्तिकायें तैयार करना लॉकडाउन में चला है और इनकी पीडीएफ का ऑनलाइन प्रसारण जारी है।

मार्च से अक्टूबर के दौरान व्हाट्सएप पर हिन्दी में हुये आदान-प्रदानों वाली 180 पन्ने की पुस्तक की पीडीएफ ऑनलाइन की। इधर हमारे पहले प्रकाशन के तौर पर इसकी छपाई आरम्भ हो गई है।

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