# चालाकी यह नहीं देखती कि सम्बन्धों का क्या हो रहा है।
# समझदारी सम्बन्धों को टूटने नहीं देती क्योंकि कहीं न कहीं, कभी न कभी काम आ सकते हैंं। काम चलाऊ सम्बन्ध। मधुर सम्बन्ध नहीं।
# चालाकी और समझदारी विगत में महाभारत लिये थी — बन्धुओं द्वारा परस्पर हत्यायें।
# आज चालाकी और समझदारी बहुत-ही व्यापक हैं। सामाजिक मनोरोगों का बोलबाला।
इस सन्दर्भ में प्रस्तुत है मजदूर समाचार के दिसम्बर 2010 अंक से “चालाकी-समझदारी और सीधापन”।