## पढना एक बहुत ही अनोखी चीज है। वह अक्षर जानने से पहले आ जाती है। अक्षर उसे धार भी देते हैं और धुँधला भी देते हैं।
— हाँ। पढने की क्षमता अक्षर ज्ञान से पहले से होती है। मेरी दादी आज भी सतह को देखती हैं, समझने की कोशिश करती हैं, पूछती हैं उसके बारे में लेकिन उस पर रुकती नहीं हैं।
** क्या करती हैं?
— उनके सोचने की कुछ विधि है। जो सतह दीखती है वही सतह नहीं होती। कई सतहें होती हैं। वे एक-दूसरे पर फिसलती हैं, टकराती हैं। एक-दूसरे में रिसती हैं, उलझती हैं, दबाती हैं, उलझाती हैं।
^^ तेरी दादी की विधि में क्या सब कुछ विभिन्न तरह की सतहें हैं जो अलग-अलग गति और पैमाना लिये हुये हैं? कोई कहे कि “फर्क पड़ता है” और कोई कहे कि “फर्क नहीं पड़ता” तो तेरी दादी इसे कैसे पढेंगी?
— मेरे ख्याल से मेरी दादी इन शब्दों को व्यक्ति-विशेष से नहीं जोड़ेंगी जबकि शब्द उनके पास व्यक्ति-विशेष से ही आये होंगे। वो उन शब्दों में जीवन के किसी रूप अथवा प्रणाली को ढूँढने की कोशिश करेंगी। और अपने दिमाग में दौड़ायेंगी कि पहले कहाँ-कहाँ सुना है। और, किसी समापन पर नहीं पहुँचेंगी। वो किसी गीत में भी जा सकती हैं।
** मुझे जो समझ आ रहा है वो यह है कि तेरी दादी कोई जज नहीं बनती। न वकील बनती है। वो समझ बनाने की प्रक्रिया को खुली रखती हैं। इसलिये उनके निष्कर्ष ओझल हैं और उनकी पढने की विधि में जाना होगा।
^^ यही शायद तेरी दादी में हमें आकर्षक लगता है।
++ यह पढने का जो खुलापन है यह एक खास किस्म की आजादी का अहसास देता है।
×× आजादी का अहसास क्यों? आजादी देता है।
— नहीं। अहसास देता है। दादी की आजादी दादी की आजादी है। महक खूब महसूस करते हैं। लेकिन अपनी आजादी पढने की ऐसी विधि की रचना करने और उसका अभ्यास, सामुहिक अभ्यास करने में ही है।
## यहाँ सामुहिक अभ्यास के बारे में थोड़ी साफ-सफाई करना चाहूँगा। सामुहिक लाउडस्पीकर के उस तरफ नहीं है। सामुहिक है साथ-साथ। साथ में। यह निकट है और बहुत दूर भी है। यह स्थानीय है और वैश्विक भी है। यह क्षणिक है, आता-जाता है, युग व्यापी भी है।
√√ आता-जाता सुन कर मुझे मुजेसर फाटक याद आया। लोग कहते हैं कि यह एक मौत का कुँआ है। बहुत एक्सीडेन्ट होते हैं। भीड़ बनती है, टूटती है, छटपटाती है, गुम हो जाती है। शिफ्ट टाइम पर निरन्तर। सोचुँगा इसके बारे में।
(मजदूर समाचार के नवम्बर 2017 अंक से)
◆ ऊपर दिये के सन्दर्भ में इधर 15 फरवरी 2022 को व्हाट्सएप पर हुआ एक आदान-प्रदान प्रस्तुत है।
●● बस में बहस
आज दोपहर बाद, अलवर से आई हरियाणा रोडवेज की खाली-सी बस में इफ्फको चौक, गुड़गाँव से फरीदाबाद की सवारियाँ बैठी।
रास्ते में चैकिंग वालों ने बस रोकी। सवारियों की टिकट जाँचने लगे।
एक बुजुर्ग टिकट माँगने पर बोला कि कण्डक्टर को पैसे दे दिये थे पर उसने टिकट नहीं दी। सहयात्री और कण्डक्टर बोले कि ताऊ टिकट दी है। आप अपनी जेब में देखो। बुजुर्ग फिर बोले, और बोलते रहे कि पैसे ले लिये पर टिकट नहीं दी। चैकिंग वालों द्वारा टोकने पर अपने बच्चों की कसम खाने लगे। सहयात्री बोलते रहे कि ताऊ अपनी जेब में देखो पर बुजुर्ग किसी की सुनने को तैयार नहीं। कण्डक्टर के लिये स्थिति कठिन बनती जा रही थी। कण्डक्टर ने भी अपने बच्चों की कसम खाई।
जाँच वाले बोले कि ताऊ बिना टिकट यात्रा के लिये जुर्माने के पाँच सौ रुपये निकालो और बस से नीचे उतरो। बुजुर्ग कुछ ढीले पड़े। टिकट के पैसे काट कर कण्डक्टर द्वारा लौटाये बाकी पैसे जेब में से निकाले।
उन पैसों के बीच में टिकट रखी थी।
¥ एक मित्र : Dementia (वृद्धावस्था में मतिभ्रम, भूलना, पगलापन)
# ऊपर-ऊपर से ऐसा लगता है।
वृद्ध की प्रारम्भिक रीडिंग कुछ थी क्या?
दस-पन्द्रह वर्ष पहले : मैं गाँव जाता था तब स्थानीय बस में कण्डक्टर द्वारा टिकट देने लगने पर अधेड़/वृद्ध को अहसान-से स्वर में ‘रहने दे’ कहते सुना है। कुछ द्वारा पैसे कम दे कर टिकट के लिये ‘रहने दे’ कहते देखा-सुना है।
जाँच पर कल बस में वृद्ध के व्यवहार को ऐसे अनुभवों के दृष्टिगत भी पढने पर विचार कर सकते हैं।
बताना।
¥ एक मित्र : शार्ट टर्म मेमोरी लॉस का ही मामला लगा।
बिल्कुल, आपके पुराने अनुभव वाले किस्से आज भी मिल जाएंगे।
एक अन्य किस्सा ।
बहुत साल पहले राजगढ़ से पिलानी जाते वक्त देखा कि नौ रुपये की टिकट के बदले दस का नोट देने वाली सवारी बार बार कंडक्टर से खड़े होकर एक रुपया लौटाने की कह रहा था । कंडक्टर भी रुपया खुल्ला न होने की बात कह कह कर , एक रुपया आने देने की कह देता और तभी वह सवारी बोला खाने नहीं दूंगा
कंडक्टर बोला नरसिम्हा राव एक करोड़ खा गया उसका कुछ बिगड़ा क्या ?
सवारी चुप कर के बैठ गया
# राजेश, बात आंकलन के सही अथवा गलत होने की नहीं है। बात पढने की है। कोई भी अनुमान एक रीडिंग होता है। और यह पढना अनुभवों के आंकलनों पर आधारित होते हैं। एक ही अनुभव से गुजरे व्यक्तियों के उस अनुभव के भिन्न, बहुत भिन्न, विपरीत तक अनुमान होते पाये हैं। इसलिये धैर्य, इसलिये आदान-प्रदान …
—18/02/2022