“मैं यह क्या कर रही हूँ?”

## सन्दर्भ : एक व्हाट्सएप समूह, De-Domestication (अ-पालतू बनाना) में 13 फरवरी को एक मित्र द्वारा भारत अथवा दक्षिण एशिया क्षेत्र की 2042-43 में स्थिति के अनुमान के लिये पाँच-दस वर्ष के खण्डों में आंकलन के प्रयोग की आवश्यकता की कुछ बातें।

●● विद्यमान सकारात्मक लगती सम्भावनाओं में योगदान के लिये भारत अथवा एशिया जैसे अखाड़ों में किसी बात को देखना/रखना अपर्याप्त ही नहीं बल्कि बाधक और हानिकारक लगता है। पिछले कम से कम पाँच सौ वर्ष, वर्तमान, और निकट भविष्य (दो-चार वर्ष) के सन्दर्भों में विश्व एक न्यूनतम ईकाई लगता है।

एक उदाहरण के तौर पर मजदूर समाचार के जनवरी 2013 अंक से “मार्च 2016 में” यहाँ प्रस्तुत है।

[●● निकट भविष्य की एक कल्पना

1980 से फैक्ट्री मजदूरों को दुनिया में नये समाज का वाहक देखना आरम्भ किया। ग्वालियर, इन्दौर, और भोपाल में छुट-पुट प्रयास। उत्तर भारत के प्रमुख औद्योगिक नगर फरीदाबाद से 1982 में मासिक “फरीदाबाद मजदूर समाचार” का प्रकाशन आरम्भ। इन चालीस वर्ष में मजदूर समाचार के प्रत्यक्ष दायरे में दिल्ली में ओखला औद्योगिक क्षेत्र, उद्योग विहार गुड़गाँव, आई.एम.टी. मानेसर, और फरीदाबाद के फैक्ट्री मजदूर रहे हैं।

1970 से उत्पादन में इलेक्ट्रॉनिक्स के प्रवेश ने बहुत तेजी से पूरे संसार को फैक्ट्री-मय बनाना आरम्भ किया। वैश्विक मजदूरों की धड़कनें सन् 2000 से मजदूर समाचार में भी प्रकट होने लगी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में 2010-2012 के दौरान फैक्ट्री मजदूरों की हलचलों ने मजदूर समाचार की कल्पनाओं को पँख दिये। जनवरी 2013 का मजदूर समाचार का पूरा अंक सुखद कल्पना, “मार्च 2016 में” से भरा है।

इधर वैश्विक लॉकडाउन और डर की महामारी ने समय को और जीवन्त बना दिया है।

मजदूर समाचार के जनवरी 2013 अंक की लिन्क :

https://drive.google.com/file/d/1SOW_KX5VzKjhbBs3pFivA5yScx3YMko9/view?usp=drivesdk

— 18 सितम्बर 2021

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