## भय विष है। डर घातक जहर है। इधर लगता है कि मेंढक और साँप की कहानी को ध्यान में रखना ठीक रहेगा।
## कोरोना ग्रुप में अनेक वाइरस हैं। मनुष्यों में पाये जाते कोरोना समूह के इस अथवा उस वायरस से अधिकतर लोग अपने जीवन में किसी ना किसी समय प्रभावित होते हैं। बुखार, खाँसी, सिरदर्द, नाक बहना, गला खराब होना कोरोना वायरस के लक्षण होते हैं। बिना किसी दवा के अधिकतर रोगी शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं। ह्रदय और फेफड़ों के रोगों से ग्रस्त तथा वृद्धावस्था की कमजोरी वालों के लिये कोरोना वायरस निमोनिया आदि रूपों में घातक बन जाता रहा है।
## कोरोना समूह का कोविड-19 वायरस भी ऊपर वाली बातें लिये है।
●5 मई 2021 तक कोविड-19 वायरस से छह महाद्वीप, 215 देश प्रभावित। इस वायरस से 5 मई तक दुनिया में 32 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु।
— कोविड-19 से सबसे अधिक मृत्यु हंगेरी देश में प्रति दस लाख जनसँख्या 2 हजार 870+
— इटली प्रति दस लाख जनसँख्या में 2 हजार 18+ मृत्यु के साथ विश्व में दसवें स्थान पर
— इंग्लैण्ड 1 हजार 904+ मृत्यु के साथ तेरहवें स्थान पर
— अमरीका 1 हजार 754+ मृत्यु के साथ सोलहवें स्थान पर
— फ्रान्स प्रति दस लाख जनसँख्या में 1 हजार 547+ मृत्यु के साथ बीसवें स्थान पर
— जर्मनी 1 हजार 9+ मृत्यु के साथ 38वें स्थान पर
— ईरान 883+ मृत्यु के साथ 48वें स्थान पर
— रूस में प्रति दस लाख आबादी में 759+ मृत्यु के साथ 51वें स्थान पर
— कुवैत 380+ मृत्यु के साथ 67वें स्थान पर
— भारत में प्रति दस लाख जनसँख्या में 162+ की मृत्यु से भारत 84वें स्थान पर।
●यह कोविड-19 की विशेषतायें हैं जिन्होंने तहलका मचा रखा है। लक्षणों का पता ही नहीं चलना अथवा लक्षणों का कुछ दिन बाद प्रकट होना, और तेजी से फैलना। कोविड-19 वायरस की यह वे खास बातें हैं जिन्होंने साहब लोगों में मृत्यु-भय उत्पन्न किया। निर्णय लेने के स्तर वाले साहब बनने के लिये मन को इतना मारना पड़ता है कि इससे उत्पन्न हुये तन के रोगों के कारण कोविड-19 साहब लोगों के लिये साक्षात काल बन कर आया।
●पिछले वर्ष, 2020 में मृत्यु-भय से ग्रस्त साहब लोगों ने, आपसी मतभिन्नताओं के होते हुये भी, पूरे संसार में लाखों फैक्ट्रियाँ उल्लेखनीय समय तक बन्द की। जबकि, पाँच मिनट देरी से पहुँचने पर मजदूर को फैक्ट्री से वापस भेज देना और वरकरों द्वारा मिल कर उत्पादन रोक देने पर साहबों द्वारा पुलिस बुला लेना उनके स्वभाव में लगता है। साक्षात काल के सम्मुख साहबों का सूत्र-वाक्य : “जान है तो जहान है।” परन्तु, “साहब” एक सामाजिक सम्बन्ध को व्यक्त करता है। फैक्ट्रियों में उत्पादन नहीं होने की स्थिति में “साहब” बने रहने पर प्रश्न-चिन्ह। इसलिये लॉकडाउन को दो महीने होने को आये तब साहबों का सूत्र-वाक्य बना : “जान भी और जहान भी।” और, वैक्सीनों के बिना ही फैक्ट्रियों में उत्पादन आरम्भ।
●टी.बी. रोग। (वैसे टी.वी. रोग भी है लेकिन TV रोग अतुलनीय लगता है।) भारत सरकार के क्षेत्र में हर वर्ष बीस-बाइस लाख लोगों को टी.बी. होती है और हर साल साढे चार लाख लोगों की मृत्यु टी.बी. रोग से होती है। प्रतिदिन भारत में 1 हजार 205+ लोगों की टी.बी. से मृत्यु होती है। सुबह टी.वी. पर समाचार : “कल टी.बी. ने कहर ढाया और इस रोग से मरने वालों की सँख्या 1500 को पार कर गई।” रात को टी.वी. पर समाचार : “आज टी.बी. से कुछ राहत के समाचार हैं। आज इस रोग से देश में ग्यारह सौ पच्चीस लोगों की मौत ही हुई।” प्रतिदिन, वर्ष के 365 दिन, टी.बी. रोग से मरने वालों के समाचार यह बनते हैं। जबकि, कोविड-19 से भारत में 5 मई 2021 तक 2 लाख 26 हजार 188 लोगों की मृत्यु।
●पीछे से तुलना के लिये : 1896-97 में मुम्बई(बम्बई) में प्लेग। घनी बस्तियों में प्लेग का प्रकोप। आठ लाख जनसँख्या में दस हजार की प्लेग से मृत्यु। तब 80 कपड़ा मिल, मुख्यतः कताई वाली, धागे चीन को निर्यात। मिल मैनेजमेन्टों ने मजदूरों को रोकने के लिये दिहाड़ी दुगुनी की, पन्द्रह दिन के स्थान पर रोज भुगतान, पैसे डबल करने के संग प्रतिदिन बोनस देना … मजदूर नहीं रुके। मिलों में बीस लाख तकुओं में से 67 हजार तकुये ही साहब लोग चलवा पाये थे। आधी आबादी, चार लाख लोग शहर से भाग गये थे। प्लेग का साहब लोगों के निवास क्षेत्रों में प्रकोप नहीं था।
●राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के औद्योगिक क्षेत्रों में निवास के लिये 3 गज बाई 3 गज के कमरे हैं। आठ फुट बाई आठ फुट के कमरे भी बहुत हैं। एक कमरे में एक परिवार अथवा तीन छड़े। भोजन कमरे में बनाना। वायु कमरे के आरपार नहीं जा सकती। एक मकान में दर्जनों किराये के कमरे। एक मंजिल पर दस-पन्द्रह कमरों के बीच सामुहिक शौचालय, पानी का एक स्थान। नोएडा, ओखला औद्योगिक क्षेत्र, और फरीदाबाद में झुग्गी बस्तियों में इनसे मिलते-जुलते निवास-स्थल।
वैसे, टी.बी. अथवा कोविड-19 जैसे एक से दूसरे को लग जाने वाले रोगों की रोकथाम के लिये दो गज की दूरी, हाथ धोते रहना, रोगी के लिये अलग कमरा-अलग शौचालय-अलग स्नानघर, हवादार मकान आवश्यक बताते हैं। ऐसे निवासों के लिये प्रयास करनाबनता है परन्तु यह जानते हुये कि फैक्ट्री एरिया में ऐसे निवासों का अकाल ही है।
●एक भी अकाल मृत्यु बहुत दुख लिये होती है। परन्तु मृत्यु ही स्वीकार नहीं — इसे तो एक सामाजिक मनोरोग ही कहा जा सकता है। यह चिरयौवन-अमर; जन्म शाप/जन्म पतन; नारी साक्षात पाप की मूर्ति … ऐसी इच्छाओं-धारणाओं की तरह का ही सामूहिक पागलपन लगता है।
# इधर हरियाणा सरकार ने 30 अप्रैल वाले दो दिन के लॉकडाउन को 9 मई तक बढा दिया है। और, सरकार की अनुमति से (‘बिना अनुमति” के भी) फरीदाबाद में उल्लेखनीय सँख्या में फैक्ट्रियाँ चल रही हैं।
●●मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन वाली ऊँच-नीच को बनाये रखने के लिये जनतन्त्र श्रेष्ठ सत्ता-तन्त्र है।
●●जहाँ लोग अधिक राजनीतिक हो जाते हैं वहाँ वे अपना बेड़ा गर्क करते हैं।
— 6 मई 2021, मजदूर समाचार