भाषा की राजनीति

# जन्म पंजाब के हिसार जिले के एक गाँव में (अब हरियाणा के भिवानी जिले में)। माता-पिता अनपढ़। आर्थिक स्थिति बहुत खराब। अकाल के समय सरकार द्वारा जोहड़-तालाब की खुदाई में एक-दो पैसे दिहाड़ी की बातें। युद्ध के दौरान 1942 में पिताजी लन्दन में सरकार की सेना में भर्ती।

नौकरी ने पिताजी में मुझे पढाने का जूनून उत्पन्न किया था। गाँव से चार-पाँच सौ मील दूर सैनिक छावनी के स्कूल में छात्रावास में मुझे तीसरी कक्षा में पिताजी ने भर्ती किया था। माँ के दबाव के कारण चौथी कक्षा मैंने गाँव से की। तब चौथी की बोर्ड की परीक्षा होती थी और चौथी पास – चौथी फेल की बात होती थी।

लन्दन में सरकार ने सेना में अफसरों की बढती आवश्यकता के दृष्टिगत उपमहाद्वीप में किंग जॉर्ज रॉयल इण्डियन मिलिट्री कॉलेज (KGRIMC) विद्यालय स्थापित किये। इंग्लैंड में एटन-हैरो पब्लिक स्कूलों के मॉडल पर बने इन स्कूलों में अँग्रेजी का बोलबाला, उपमहाद्वीप के छात्रों को सेना के वास्ते “अँग्रेज” बनाना। 1947 में विभाजन पर इनमें से एक विद्यालय पाकिस्तान क्षेत्र में तथा पाँच भारत क्षेत्र में।

दिल्ली में बनी सरकार ने इन विद्यालयों को बिना किसी परिवर्तन के जारी रखा। सेनाओं में सुबेदार स्तर तक लोगों के बेटों के लिये अखिल भारतीय परीक्षा और चुने जाने पर निशुल्क निवास-भोजन-कपड़े-शिक्षा। सेनाओं में कार्यरत अफसरों के बेटों को कम व्यय पर शिक्षा। और, अन्य के बेटों को पूरे व्यय पर प्रवेश। पाँचवीं से ग्यारहवीं तक पढाई। इण्डियन स्कूल सर्टिफिकेट बोर्ड के स्थान पर विदेशी मुद्रा के संकट के दृष्टिगत 1965 में ऑल इण्डिया सैकेंडरी स्कूल बोर्ड का गठन और इन स्कूलों को उससे सम्बंधित किया गया।

1961 में चयन के बाद मुझे किंग जॉर्ज स्कूल, बेलगाम (कर्नाटक राज्य) में पाँचवीं कक्षा में प्रवेश दिया गया। इन स्कूलों के नाम किंग जॉर्ज स्कूल से मिलिट्री स्कूल होते हुये अब राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल हैं।

किंग जॉर्ज स्कूल, बेलगाम में तीन सौ ही छात्र थे फिर भी उत्तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चिम से, भारत में हर क्षेत्र से स्कूल में छात्र थे। उस समय मुझे न तो हिन्दी आती थी और न ही अँग्रेजी आती थी। सीनियर द्वारा रात को एकत्र कर उपस्थिति जाँचने के बाद मैंने माँ-बोली में कमरे की चाबी (तॉल्ई) माँगी तब पाँचवी-छठी के सब बच्चे हँस दिये थे। स्कूल में अँग्रेजी में बातचीत अनिवार्य थी और अन्य भाषा में बात करते पाये जाने पर दण्ड था : इतनी बार लिखो “I will speak only in English.” और, छुट्टियों में गाँव में मैं हिन्दी में बोलता था तब मेरी माँ गर्व से कहती थी कि मेरा बेटा अँग्रेजी में बोलता है। गाँव में रहती मेरी बहनों के लिये हिन्दी अब भी पराई है। वैसे, सरकारें कहती हैं कि हरियाणा हिन्दी भाषी राज्य है।

# 1976 में आन्तरिक आपातकाल के दौरान राजस्थान में श्रीगंगानगर से पंजाब में अबोहर की बस यात्रा की। कक्षा चार में पंजाबी भाषा का अक्षर ज्ञान दिया गया था और थोड़ी-बहुत पंजाबी समझता हूँ। बस में यात्री खूब बातें कर रहे थे और भरपूर प्रयास के बावजूद मुझे उनकी कोई बात समझ में नहीं आई थी।

# 1984 में फरीदाबाद में एक साथी के साथ मैं गढवाल में उनके गाँव गया था। क्षेत्र में हम काफी घूमे थे। वहाँ आपस में लोग जब बात करते थे तब मुझे कुछ समझ में नहीं आता था।गढवाली वहाँ की मात्रभाषा। मित्र की माँ के लिये हिन्दी अब भी पराई है। और, सरकारें कहती हैं कि उत्तराखंड हिन्दी भाषी राज्य है।

# 1992 में पूर्वी उत्तर प्रदेश में सुलतानपुर जिले में एक साथी के गाँव गया था। वहाँ आपस में लोगों की बातचीत मुझे समझ में नहीं आती थी। गाँव में स्कूल जाते बच्चों को सामान्य हिन्दी पढानी पड़ती थी। वहाँ मात्रभाषा अवधी थी। इधर फरीदाबाद में पड़ोस में महिलायें अवधी में बात करती हैं तब उनकी बातें मुझे समझ में नहीं आती। और, सरकारें कहती हैं कि उत्तर प्रदेश हिन्दी भाषी राज्य है।

इस सन्दर्भ में मजदूर समाचार के फरवरी 2007 अंक से “भाषा की राजनीति” प्रस्तुत है।

— 10 नवम्बर 2020

 

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