लगता है कि शीर्षक “” अधिक उपयुक्त होता। परन्तु सामग्री मजदूर समाचार के जनवरी 2013 अंक से है और शीर्षक “मार्च 2016” है।
इन सात वर्षों में गति तथा विस्तार चकित करने वाले रहे हैं।
इधर विश्व में उल्लेखनीय क्षेत्रों में पूर्णबन्दी ने सामाजिक पहलू को, वैश्विक सामाजिक पहलू को साफ-साफ सामने ला दिया है। व्यक्ति को इस-उस बात के लिये दोष देना स्वाहा हो गया है। व्यक्ति द्वारा स्वयं को दोष देना अब खुद को धोखा देने के काम का भी नहीं रहा।
विश्व का अखाड़ा होना, धुरी का वैश्विक होना इतना साफ हो गया है कि इस-उस देश को अखाड़ा/धुरी लेना हँसी-मजाक ही रह गया है।
हमें लगता है कि सात वर्ष पहले की सामग्री में आनन्द आयेगा। आनन्द लें।