# प्रगति-विकास-भ्रष्टाचार एक-दूसरे से घनिष्ठता से जुड़े हैं। फिर भी, उल्लेखनीय समूहों में प्रगति-विकास को सकारात्मक और भ्रष्टाचार को नकारात्मक के अर्थों में लिया जाता है।
# कह सकते हैं कि स्वामियों और सामन्तों की क्रूरता की तुलना में दूर-दराज का व्यापार अपने संग क्रूरता की मात्रा तथा प्रकार में गुणात्मक भिन्नता लिये था। लगता था कि “अमरीका की खोज” से, 1492 से व्यापारिक हितों ने क्रूरता के नये पैमाने बना दिये हैं।
# परन्तु सन् 1800 से स्थापित हुई मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन वाली क्रूरता के वटवृक्ष के सम्मुख तो विगत की सब क्रूरतायें बौनी लगती हैं।
# इधर दुनिया में उल्लेखनीय क्षेत्रों में उल्लेखनीय समय तक सरकारों द्वारा पूर्णबन्दी ने, मैनेजमेंटों द्वारा लाखों फैक्ट्रियों में उत्पादन बन्द करने ने ऊँच-नीच के पार वाली नई समाज की रचनाओं की सम्भावनाओं को बढा दिया है।
इस सन्दर्भ में मजदूर समाचार के मार्च 2014 अंक से “?” यहाँ प्रस्तुत है। सम्भव है पढने पर कुछ प्रस्थान बिन्दु मिलें।