इधर विश्व-भर में लॉकडाउन-पूर्णबन्दी ने व्यवहार-विचार की उड़ानों के अनुकूल वातावरण में बहुत उल्लेखनीय वृद्धि की है।
ऐसे में 2010-12 में फैक्ट्री मजदूरों के व्यवहार-विचार से प्रेरित मजदूर समाचार के जनवरी 2013 अंक की उड़ान एक प्रेरक भूमिका निभा सकती लगती है। प्रस्तुत है उसका एक अंश।
व्यवहार-विचार की ऊँची उड़ानों का आनन्द-उल्लास प्राप्त करें।
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“मैं यह क्या कर रही हूँ? मैं क्यों यह कर रहा हूँ ? हम यह-यह-यह क्या कर रहे हैं? हम यह-यह-यह क्यों कर रहे हैं? जिस-जिस में मन लगता है वही मैं क्यों नहीं करती? जो अच्छा लगता है वही, सिर्फ वही मैं क्यों न करूँ? हमें जो ठीक लगता है उसके अलावा और कुछ हम क्यों करें? मजबूरियाँ क्या हैं? मजबूरियों से पार कैसे पायें ?” प्रत्येक द्वारा, अनेकानेक समूहों द्वारा, विश्व में हर स्थान पर, प्रतिदिन के यह “क्या-क्यों-कैसे” वाले सामान्य प्रश्न जीवन के सार के इर्द-गिर्द थे-हैं | जीवन तो वह है जो तन-मन के माफिक हो, तन-मन को अच्छा लगे । जीवन आनन्द है ! जो तन-मन के विपरीत हो, तन-मन को बुरा लगे वह तो शाप है, पतन है | मानव योनि में जन्म आनन्द है अथवा शाप है वाली पाँच हजार वर्ष पुरानी गुत्थी को मजदूर व्यवहार में सुलझा रहे हैं, मानव योनि व्यवहार में सुलझा रही है।
## इतना-कुछ इतनी तेजी से और एकसाथ-सा हुआ कि सही-सही कहना कठिन है पर शुरुआत शायद टेक्सास, अमरीका में एटम बम बनाने के कारखाने में मजदूरों द्वारा काम बन्द करने से हुई। इस फैक्ट्री में सन् 2005 में निर्माण के दौरान एक एटम बम फटते-फटते रह गया था । जापान में हीरोशिमा नगर पर साठ वर्ष पहले गिराये एटम बम से वह बम एक सौ गुणा अधिक शक्तिशाली था। “मैं यह क्या कर रहा हूँ ? हम यह क्यों कर रहे हैं ? कैसे रोकें इस सब को ?” विश्व-भर में सिर चढ कर बोलते प्रश्न । जमीन पर, समुद्र में, अन्तरिक्ष में एटम बमों के भण्डार – इतने एटम बम कि पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन को कई बार इनके प्रयोग से नष्ट किया जा सकता था। सुरक्षा सर्वोपरि ……
टेक्सास एटम बम फैक्ट्री में मजदूरों ने काम बन्द किया….. रूस में…..चीन में….फ्रान्स में…. इंग्लैण्ड में…… भारत में….. पाकिस्तान में….. उत्तरी कोरिया में…. इजराइल में… … ईरान में…… एटम बम बनाने वाले कारखानों में मजदूरों ने काम बन्द कर दिया । हर जगह सुपरवाइजर-मैनेजर चुप और खुश रहे थे। सिपाही-गार्ड शान्त और मस्त रहे थे। डायरेक्टर-जनरल चुप और प्रसन्न रहे थे । वैज्ञानिकों- इंजीनियरों-समाजशास्त्रीयों को अपने वैज्ञानिक-इंजीनियर-विद्वान होने पर शर्म आने लगी थी। मारकाट के लिये, युद्ध के लिये कार्य करना भी भला कोई करने की चीज है ? जानते हुये गलत करने वालों में मैनेजर-जनरल-विद्वान तो बहुत-कुछ जानने के कारण इन्तजार-सा कर रहे थे कि मजदूर कुछ करें ताकि वे भी मन पर बहुत भारी बोझ से मुक्त हो सकें……
जैविक हथियारों की प्रयोगशाला-निर्माणशाला…. पाँच सौ वर्ष पहले उपहार-संस्कृति वालों को खरीद-बिक्री, मण्डी-मुद्रा के विस्तार में लगे लोगों द्वारा “उपहार” में प्लेग का कम्बल दे कर सामुदायिक जीवन जी रहे अनेक लोगों का संहार मन को मथता रहा था. …… 1975 में जैविक युद्ध की तैयारी में प्रयोगशालाओं में आँख की पुतली-बाल की बनावट के आधार पर आक्रमण करने वाले जैविक हथियारों के अनुसन्धान की प्रक्रिया में रेट्रो वायरस की सृष्टि-रचना दुनिया में एड्स बीमारी की वाहक बनी….. “यह मैं क्या कर रही हूँ ? यह हम क्यों कर रहे हैं ? कैसे रोकें इसे ?” …. जैविक युद्ध की प्रयोगशालाओं-निर्माणशालाओं में साइन्टिफिक वरकरों ने काम बन्द कर दिया, विश्वविद्यालयों और रिसर्च संस्थानों में प्रयोगशाला सहायकों तथा अनुसन्धानकर्ताओं ने खोज-रचना बन्द कर दी। प्रोफेसर-डायरेक्टर-कुलपति चुप रहे थे और चैन की साँस लेने लगे थे।
……..संसार में अनेकानेक अस्त्र-शस्त्र और इनके निर्माण-उत्पादन के कारखानों की भरमार थी। “क्या-क्यों कर रहे हैं ? कैसे रोकें ?” की विश्व-व्यापी लहरों में रसायनिक हथियारों की फैक्ट्रियों में मजदूरों ने उत्पादन रोक दिया…. प्रक्षेपास्त्र-मिसाइल निर्माण कारखानों में वरकरों ने काम बन्द कर दिया…. लड़ाकू और बमवर्षक विमानों को बनाने वाली फैक्ट्रियों में मजदूरों ने उत्पादन रोक दिया….. शिपयार्डों में जल सेनाओं के लिये जहाजों और पनडुब्बियों का निर्माण मजदूरों ने बन्द कर दिया…. बन्दूकों-तोपों-टैंकों-बख्तरबन्द गाड़ियों की फैक्ट्रियों में मजदूरों ने लाइनें थाम दी….. गोला-बारूद के कारखानों में वरकरों ने काम बन्द कर दिया…. राडार-कम्प्युटर-इन्टरनेट-टेलीफोन-उपग्रह से साइबर युद्ध की तैयारी तथा प्रैक्टिस वरकरों ने बन्द कर दी… नासा-इसरो-डी आर डी ओ आदि-आदि में, सब जगह सुपरवाइजर-मैनेजर-डायरेक्टर-जनरल चुप रहे थे और प्रसन्न थे।