स्कूल क्लासमेट से प्राप्त रोचक रेखाँकन :
रिमझिम वर्षा ने रेखाँकन द्वारा ट्रिगर किये मनन को अधिक आनन्ददायक बना दिया है।
## स्कूल में गुड बॉय था। वर्षों बाद मुड़ कर देखा तो पाया कि प्रिंसिपल आर एस मणि के विचारों (ओपिनियन्स) को आत्मसात (internalize) किया हुआ था। शिषण पवित्र कर्म है, मन में बैठ गया था।
## उच्चतर शिक्षा संस्थानों, जिनसे वास्ता पड़ा, वे यहाँ श्रेष्ठतम की श्रेणी में। उनके बहुत महत्वपूर्ण होने वाला विचार-ओपिनियन स्वीकार किया परन्तु आत्मसात नहीं हुआ। चार संस्थानों के अनुभवों ने स्कूल में बनी धारणा : “शिषण पवित्र”, को डगमगाया। परन्तु ज्ञान-विज्ञान सर्वोपरि की धारणा-ओपिनियन बहुत गहरे तक पैठी रही।
## 1975 में आन्तरिक आपातकाल की घोषणा के धक्के ने अनजाने-अनचिन्हित धरातल पर धकेला। सतह आकर्षक लगी। स्वीकार किये विचार-ओपिनियन के जुनूनी-उन्मादी प्रचार-प्रसार में जुटा।
## समाज, विश्व समाज की हलचलों ने विचार-ओपिनियन को अस्थिर रखा। समाधान के लिये, विचार-ओपिनियन की स्थिरता-सटीकता-शक्ति के वास्ते ज्ञान-विज्ञान में डुबकियाँ, अधिक गहरी डुबकियों का सिलसिला। कई वर्ष।
## संयोग ही कहुँगा कि 1982 में फरीदाबाद में फैक्ट्री मजदूरों के बीच रहने का निर्णय लिया। यहाँ अनजाने में ही, प्रतिक्रिया की राहों से किनारा करना और क्रिया के पथ पर चलना आरम्भ हुआ। Act instead of reacting. और, यह विचार-ओपिनियन-धारणा का व्यवहार में परीक्षण रहा है जिसने मुझे जीवित रखा, जीवन्त बनाया।
## व्यवहारिक परीक्षणों में अपर्याप्त पाये विचार-ओपिनियन-धारणा में परिवर्तन सहज बने। व्यवहार में नाकारा अथवा हानिकारक पाये विचार-ओपिनियन को त्यागना कठिन नहीं रहा। गलती की स्विकारोक्ति आसान बनी।
## ज्ञान के ईश्वर-अल्लाह-गॉड की वाणी वाले रूप द्वारा विगत में (तथा वर्तमान में भी) पिरामिडनुमा ऊँच-नीच के पोषण की तीखी आलोचना 1975 से ही आरम्भ हो गई थी। विगत की ऊँच-नीच की पक्षधर अनिश्वरवादी धारणाओं, बौद्ध और जैन मतों की निर्मम आलोचना भी संग-संग थी। इस सब में ब्रह्मास्त्र था विज्ञान और सहायक थे दासों पर पलते स्वामी समाजों तथा बेगार पर टिके सामन्ती समाजों के इतिहास।
## बहुत समय लगा है विज्ञान को वर्तमान की पिरामिडनुमा ऊँच-नीच का वाहक वाहन आंकने में। मण्डी-मुद्रा का, मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन का विज्ञान देवता है, इस अनुमान ने इधर नये धरातल के द्वार खोले हैं।
## इधर पूर्णबन्दी ने ज्ञान-विज्ञान की पूर्ण असंगतता, complete irrelevance, को संसार में व्यापक स्तर पर सामने ला कर मानव प्रजाति द्वारा नई समाज रचना की सम्भावना को उल्लेखनीय तौर पर बढा दिया है। सात अरब लोगों के बीच सहज-आसान आदान-प्रदानों की राहों के खुल जाने ने हमारे समय को बहुत-ही जीवन्त बना दिया है।