मजदूर समाचार पुस्तिका दस

“मजदूर समाचार पुस्तिका दस” का आनन्द लें।

जनवरी 2011 से दिसम्बर 2011

सम्भव है
कुछ प्रस्थान बिन्दु मिलें।

# आदान-प्रदान बढाने के लिये अपने ग्रुपों में फॉर्वर्ड करें।

# दिल्ली और इर्द-गिर्द के औद्योगिक क्षेत्रों में स्थिति को देखते हुये अभी पुस्तिका छापेंगे नहीं। व्हाट्सएप और ईमेल द्वारा इसे प्रसारित करेंगे। उपलब्ध अन्य माध्यमों द्वारा आदान-प्रदान बढाने में आप भी योगदान करें।

# आप स्वयं छापना चाहते हैं तो खुशी-खुशी छापें। ए-4 साइज के 48 पन्ने हैं।

# पढते समय जो त्रुटियाँ मिलें वो बताना ताकि छापने से पहले हम उन गलतियों को दूर कर सकें।

मजदूर समाचार पुस्तिका दस:

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मारुति मानेसर डायरी (6)| Maruti Manesar Diary-6

“जान-पहचान जहाँ झमेले लिये है वहाँ अनजाने भी अपने हैं का विचार-व्यवहार खूब कमाल करेगा।” — मारुति मानेसर डायरी (6)।

## विश्व-भर में अधिक से और अधिक लड़खड़ा रही ऊँच-नीच, रुपये-पैसे, खरीद-बिक्री को बनाये रखने के बदहवास प्रयास दुनिया-भर में हो रहे हैं। इन कोशिशों में “पहचान की राजनीतियाँ” इधर कुछ ज्यादा-ही सक्रिय हैं। इस-उस भेद को आधार बना कर “अपने” और “पराये” बनाना पाँच-दस हजार वर्ष से ऊँच-नीच के वास्ते कन्धे प्राप्त करने का एक जरिया रहा है।

## कोई अपने नहीं। कोई पराये नहीं। सब अपने हैं।

संसार में सात अरब लोगों के साँझेपन को आगे लाने, आगे रखने में एक योगदान के लिये 2011-12 में मारुति सुजुकी मानेसर फैक्ट्री मजदूरों की गतिविधियों की एक झलक मजदूर समाचार के फरवरी 2012 अंक से यहाँ प्रस्तुत है।

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मजदूर समाचार पुस्तिका नौ

मजदूर समाचार पुस्तिका नौ” का आनन्द लें।

जनवरी 2012 से दिसम्बर 2012

सम्भव है
कुछ प्रस्थान बिन्दु मिलें।

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# दिल्ली और इर्द-गिर्द के औद्योगिक क्षेत्रों में स्थिति को देखते हुये अभी पुस्तिका छापेंगे नहीं। व्हाट्सएप और ईमेल द्वारा इसे प्रसारित करेंगे। उपलब्ध अन्य माध्यमों द्वारा आदान-प्रदान बढाने में आप भी योगदान करें।

# आप स्वयं छापना चाहते हैं तो खुशी-खुशी छापें। ए-4 साइज के 51 पन्ने हैं।

# पढते समय जो त्रुटियाँ मिलें वो बताना ताकि छापने से पहले हम उन गलतियों को दूर कर सकें।

 

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समझदारी-दुनियादारी-व्यवहारिकता आज

— पक्का मकान;
— बिजली;
— सड़क।
इसका एक अर्थ है शिशु को प्रत्येक कदम पर टोकना। बच्चों को हर समय टोकना। दुनियादारी का मतलब आज प्रत्येक बच्चे को बम बनाना भी है।

## इधर विश्व-भर में लॉकडाउन-पूर्णबन्दी ने ऊँची उड़ानों के अनुकूल वातावरण में बहुत उल्लेखनीय वृद्धि की है। हमारे सम्मुख अव्यवहारिक होने, बुलन्द हौसलों, और आसमानों के मुक्के मारने का बहुत-ही बढिया समय है। एक पूर्वज के शब्दों में : Time for audacity, more audacity, and still more audacity. Lively time to be IMPRACTICAL- AUDACIOUS-STORMING THE HEAVENS.

ऐसे में 2011-12 में मारुति सुजुकी मानेसर फैक्ट्री मजदूरों की अव्यवहारिकता से प्रेरित मजदूर समाचार के सितम्बर 2012 अंक की “व्यवहारिक और अव्यवहारिक” वाली उड़ान एक प्रेरक भूमिका निभा सकती लगती है। प्रस्तुत है।

इस बहुत-ही जीवन्त समय में ऊँची उड़ानों के वास्ते पँख फैला कर आनन्द-उल्लास प्राप्त करें।

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आठ घण्टे का छब्बीस-तीस घण्टे बनना | Working Day-II

— ऊँच-नीच वाले सामाजिक गठनों में सुधार की बातें बहुत होती हैं। टिकाऊ परिवर्तन के लिये सुधार की राहों को कारगर राह प्रस्तुत किया जाता है।

— सुधारों को थोथा पाया गया है। शासन के लिये, सत्ता के लिये भिड़ रहे गिरोहों के हाथों में यह सुधार – वह सुधार डुगडुगी-झुनझुनों की भूमिका में पाये गये हैं।

इस सन्दर्भ में लगता है कि यहाँ प्रस्तुत मजदूर समाचार के मई 2013 अंक से “वर्किंग डे – कार्यदिवस” में मनन के लिये सामग्री मिल सकती है।

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फैक्ट्री किसकी ? कम्पनी किसकी? | Working Day-I

मालिक कौन है ? स्वामी कौन है ? धणी कुण सै ?

चेहराविहीन पूँजी – बिना शक्ल सरमाया – faceless capital की दस्तक 1860 के आसपास सुनी जाने लगी थी। रेलवे इसके उल्लेखनीय उदाहरण थे। उत्पादन में भी पूँजीपति-कारखानेदार-फैक्ट्री मालिक का स्थान इकन्नी-दुअन्नी की हिस्सेदारी वाले डायरेक्टर लेते दिखने लगे थे। निजी मालिकाने – प्रायवेट प्रोपर्टी को पूँजीवाद का सार लेने पर प्रश्न उत्पन्न हुये।

सन् 1900 आते-आते उत्पादन क्षेत्र में कम्पनी-स्वरूप ने मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन में प्रमुखता प्राप्त कर ली थी। फैक्ट्री मालिक-कारखानेदार-पूँजीपति- कैपिटलिस्ट लोग(व्यक्ति) मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन में गौण से गौणतर होते गये हैं।

व्यक्ति की बजाय सामाजिक सम्बन्ध का सामने आना। साकार का स्थान निराकार द्वारा लेना; मूर्त रूप का स्थान अमूर्त स्वरूप द्वारा लेना सरलता और जटिलता संग-संग लिये लगता है।

इस सन्दर्भ में यहाँ दे रहे मजदूर समाचार के अप्रैल 2013 अंक से यह सामग्री विचारणीय लगती है।

Working day_FMS

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Factory Workers’ Videos

On Friday, 21st August at the beginning of A-shift at 6am in JNS Instruments factory, plot 4 sector-3, Industrial Model Town, Manesar( Gurgaon, India) workers did not go to their workplaces.

There are 2500 workers in the factory. Sixty percent females.

The management stepped back by five thirty pm. Production became normal in C-shift.

Here are some videos from that day:

 

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व्यवहार-विचार की ऊँची उड़ानों – VI | नर-नारी के सम्बन्ध में

इधर विश्व-भर में लॉकडाउन-पूर्णबन्दी ने व्यवहार-विचार की उड़ानों के अनुकूल वातावरण में बहुत उल्लेखनीय वृद्धि की है।

ऐसे में 2010-12 में फैक्ट्री मजदूरों के व्यवहार-विचार से प्रेरित मजदूर समाचार के जनवरी 2013 अंक की उड़ान एक प्रेरक भूमिका निभा सकती लगती है। प्रस्तुत है उसका छठा अंश, नर-नारी के सम्बन्ध में।

व्यवहार-विचार की ऊँची उड़ानों का आनन्द-उल्लास प्राप्त करें।
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“मैं यह क्या कर रही हूँ? मैं क्यों यह कर रहा हूँ ? हम यह-यह-यह क्या कर रहे हैं? हम यह-यह-यह क्यों कर रहे हैं? जिस-जिस में मन लगता है वही मैं क्यों नहीं करती? जो अच्छा लगता है वही, सिर्फ वही मैं क्यों न करूँ? हमें जो ठीक लगता है उसके अलावा और कुछ हम क्यों करें? मजबूरियाँ क्या हैं? मजबूरियों से पार कैसे पायें ?” प्रत्येक द्वारा, अनेकानेक समूहों द्वारा, विश्व में हर स्थान पर, प्रतिदिन के यह “क्या-क्यों-कैसे” वाले सामान्य प्रश्न जीवन के सार के इर्द-गिर्द थे- हैं | जीवन तो वह है जो तन-मन के माफिक हो, तन-मन को अच्छा लगे । जीवन आनन्द है ! जो तन-मन के विपरीत हो, तन-मन को बुरा लगे वह तो शाप है, पतन है | मानव योनि में जन्म आनन्द है अथवा शाप है वाली पाँच हजार वर्ष पुरानी गुत्थी को मजदूर व्यवहार में सुलझा रहे हैं, मानव योनि व्यवहार में सुलझा रही है।

## चीन में महिला मजदूर फैक्ट्रियों से निकली और पुरुष मजदूर उनके संग-संग थे. बंगलादेश में महिला मजदूर फैक्ट्रियों से निकली और पुरुष मजदूर उनके साथ थे. …. भारत में स्कूलों-कॉलेजों-विश्वविद्यालयों से छात्र-छात्रायें साथ-साथ बाहर निकले.

…. तीन वर्ष पहले नर और नारी के बीच सहज सम्बन्धों की उठती लहरें पूरे संसार में आरम्भ हुई थी। स्त्री और पुरुष के बीच परस्पर आदर तथा प्रेम के बढ़ते रिश्ते दुनिया को अधिकाधिक सुगन्धित करने लगे | मदमस्त करती 2016 की वसन्त ऋतु में प्रकृति में बहार के संग मानव योनि में विश्व-व्यापी बहार है….

फरीदाबाद में यह शाही एक्सपोर्ट फैक्ट्री थी। आज यहाँ लड़के-लड़कियों, स्त्री-पुरुषों के बीच नर और नारी के बहुआयामी सम्बन्धों पर कई किस्म की बातें हो रही हैं। रोचक चर्चायें…

शास्त्रों में, ईश्वरवाणियों में स्त्री को पाप की मूर्ति क्यों कहा गया था? त्रिया चरित को देवता भी नहीं समझ सकते का अर्थ क्या है? प्रकृति ने स्त्री को पुरुष से अधिक यौन क्षमता दी है, एक पुरुष एक स्त्री की भी यौन संतुष्टि नहीं कर सकता, फिर एक पुरुष द्वारा कई स्त्रियों को यौन-तृप्ति के नाम पर मुट्ठी में रखने के प्रयासों का मतलब क्या था? प्रकृति में नर और मादा के अलावा भी लिंग….

मानव योनि में परिवार रूपी संस्था का उदय कब हुआ? परिवार के केन्द्र में पुरुष क्यों था? रक्त की उत्पत्ति तो माँ के गर्भ में होती है – पुरुष के “मेरा खून” उद्घघोष का अर्थ क्या था? परिवार के बदलते स्वरूपों को कैसे समझें? महिलाओं का मजदूर बनना क्या दर्शाता था? स्त्री का मजदूर बनना नारी सशक्तिकरण कैसे था?….

यह संयोग था कि समुदायों की टूटन के दौरान उपजे “मैं” के वाहक पुरुष बने थे। जन्म के पश्चात मृत्यु निश्चित – “मैं’ के लिये इससे उपजती असहय पीड़ा ने पुरुषों को पगला दिया। और, स्त्रियों से डरते पुरुषों की ऊल-जलूल हरकतों ने स्त्री व पुरुष के बीच रिश्ते असहज बनाये थे…..

फैक्ट्री-पद्धति में, मजदूरी-प्रथा में यह (पुरुष) मजदूरों की बदतर होती स्थिति थी जिसने परिवार में अनके परिवर्तन लाये और बढती संख्या में महिलायें मजदूर बनने लगी…..

मजदूर बनी महिलायें “मैं” की नई वाहक बनी थी। स्त्री होना और मजदूर होना पुरुष के मजदूर होने से भी अधिक परेशानी लिये था…जटिल परिस्थतियों से पार पाने के लिये कल्पना-रचना-सृष्टि के दीर्घकालीन अनुभवों ने महिला मजदूरों को मजदूरी-प्रथा पर घातक चोट मारने के योग्य बनाया था । मजदूरी-प्रथा के अनेकानेक अनुभवों वाले पुरुष मजदूरों और महिला मजदूरों का यह मेल-मिलाप था जिसने तीन वर्ष पहले मजदूरी-प्रथा के अन्त की शुरुआत की थी। मजदूरी-प्रथा में प्रत्येक व्यक्ति के अधिकाधिक गौण होते जाने के विपरीत अब हम हर एक को महत्व के आधार पर स्त्रियों व पुरुषों के बीच सहज सम्बन्धों की राहों पर बढ रहे हैं….

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व्यवहार-विचार की ऊँची उड़ानों -V | गति के सम्बन्ध में

इधर विश्व-भर में लॉकडाउन-पूर्णबन्दी ने व्यवहार-विचार की उड़ानों के अनुकूल वातावरण में बहुत उल्लेखनीय वृद्धि की है।

ऐसे में 2010-12 में फैक्ट्री मजदूरों के व्यवहार-विचार से प्रेरित मजदूर समाचार के जनवरी 2013 अंक की उड़ान एक प्रेरक भूमिका निभा सकती लगती है। प्रस्तुत है उसका पाँचवाँ अंश, गति के सम्बन्ध में।

व्यवहार-विचार की ऊँची उड़ानों का आनन्द-उल्लास प्राप्त करें।
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“मैं यह क्या कर रही हूँ? मैं क्यों यह कर रहा हूँ ? हम यह-यह-यह क्या कर रहे हैं? हम यह-यह-यह क्यों कर रहे हैं? जिस-जिस में मन लगता है वही मैं क्यों नहीं करती? जो अच्छा लगता है वही, सिर्फ वही मैं क्यों न करूँ? हमें जो ठीक लगता है उसके अलावा और कुछ हम क्यों करें? मजबूरियाँ क्या हैं? मजबूरियों से पार कैसे पायें ?” प्रत्येक द्वारा, अनेकानेक समूहों द्वारा, विश्व में हर स्थान पर, प्रतिदिन के यह “क्या-क्यों-कैसे” वाले सामान्य प्रश्न जीवन के सार के इर्द-गिर्द थे- हैं | जीवन तो वह है जो तन-मन के माफिक हो, तन-मन को अच्छा लगे । जीवन आनन्द है ! जो तन-मन के विपरीत हो, तन-मन को बुरा लगे वह तो शाप है, पतन है | मानव योनि में जन्म आनन्द है अथवा शाप है वाली पाँच हजार वर्ष पुरानी गुत्थी को मजदूर व्यवहार में सुलझा रहे हैं, मानव योनि व्यवहार में सुलझा रही है।

## “यह हम क्या कर रहे हैं? यह हम क्यों कर रहे हैं? आओ रोकें इसे…… पेरिस में ड्राइवरों ने काम करना बन्द कर दिया – ट्रेनें बन्द, मैट्रो बन्द, बसें बन्द, ट्रक बन्द, टैक्सियाँ बन्द….. न्यू यॉर्क में पायलेटों ने वायुयान उड़ाने से इनकार कर दिया….. मुम्बई बन्दरगाह में गोदी मजदूरों ने आवागमन रोक दिया….. चीन में कारखानों में हर प्रकार के वाहन का उत्पादन मजदूरों ने बन्द कर दिया…. तीन वर्ष पहले दुनिया में जगह-जगह पहिये थामने का सिलसिला आरम्भ हुआ और पृथ्वी पर शोर-शराबा थमता गया । पहियों के थमने के बाद वसन्त ऋतु और सुहावनी होती गई । वसन्त 2016 में चारों तरफ शान्ति है और लोगों के तन-मन खिले हैं……..

गुड़गाँव में यह मारुति सुजुकी फैक्ट्री थी। आज फुरसत में कई लोग यहाँ मुड़ कर देख रहे हैं और गति के उत्पादन, गति के उपभोग, यातायात पर चर्चायें कर रहे हैं…..

गति, तीव्र से तीव्रतर गति — बढती भागमभाग में हम कहाँ जा रहे थे? हम किससे भाग रहे थे? हम स्वयं से आँख मिलाने से बचने के लिये भाग रहे थे……

प्रकृति में मानव योनि को जो गति प्राप्त थी उससे अधिक गति के लिये प्रयास तन को तानने और मन को मारने के संग-संग प्रकृति से छेड़छाड़ लिये थे…. पिछले दो सौ वर्ष के दौरान तो फैक्ट्री-पद्धति से गति का उत्पादन होने लगा था । और, सौ-सवा सौ वर्ष पहले तो तीव्रतर गति के फेर में सब मानव मशीनों के, तन्त्रों के, संस्थानों के छोटे-बड़े पुर्जे बनने लगे थे….. कोयला, तेल, बिजली, न्यूक्लियर पावर, इलेक्ट्रोनिक्स द्वारा बढती मात्रा में गति का उत्पादन करना तथा गति को तीव्र से तीव्रतर करना पृथ्वी की सतह के संग पृथ्वी के गर्भ की दुर्गत करना लिये था….. बढती संख्या में तथा बढती रफ्तार के साथ प्रतिदिन मानवों को इधर से उधर लाने-ले जाने और बढती मात्रा में तीव्र से तीव्रतर गति से माल को इधर से उधर लाने-ले जाने के लिये अनेकों प्रकार के वाहनों की नित लम्बी होती कतारें रुटीन में एक्सीडेन्ट लिये थी….. गति का उत्पादन और उपभोग वायु-जल-मिट्टी का प्रदूषण, पृथ्वी का बढता तापमान, वायुमण्डल में ओजोन की परत में छेद भी लिये थी जो कि प्राकृतिक तौर पर पृथ्वी पर जीवन का विनाश लिये थे । पहियों को थाम कर मजदूरों ने पृथ्वी पर जीवन की रक्षा की राहें खोल दी हैं…..

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व्यवहार-विचार की ऊँची उड़ानों – IV | पीढियों के बीच के सम्बन्ध में

इधर विश्व-भर में लॉकडाउन-पूर्णबन्दी ने व्यवहार-विचार की उड़ानों के अनुकूल वातावरण में बहुत उल्लेखनीय वृद्धि की है।

ऐसे में 2010-12 में फैक्ट्री मजदूरों के व्यवहार-विचार से प्रेरित मजदूर समाचार के जनवरी 2013 अंक की उड़ान एक प्रेरक भूमिका निभा सकती लगती है। प्रस्तुत है उसका चौथा अंश, पीढियों के बीच के सम्बन्ध में।

व्यवहार-विचार की ऊँची उड़ानों का आनन्द-उल्लास प्राप्त करें।
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“मैं यह क्या कर रही हूँ? मैं क्यों यह कर रहा हूँ ? हम यह-यह-यह क्या कर रहे हैं? हम यह-यह-यह क्यों कर रहे हैं? जिस-जिस में मन लगता है वही मैं क्यों नहीं करती? जो अच्छा लगता है वही, सिर्फ वही मैं क्यों न करूँ? हमें जो ठीक लगता है उसके अलावा और कुछ हम क्यों करें? मजबूरियाँ क्या हैं? मजबूरियों से पार कैसे पायें ?” प्रत्येक द्वारा, अनेकानेक समूहों द्वारा, विश्व में हर स्थान पर, प्रतिदिन के यह “क्या-क्यों-कैसे” वाले सामान्य प्रश्न जीवन के सार के इर्द-गिर्द थे- हैं | जीवन तो वह है जो तन-मन के माफिक हो, तन-मन को अच्छा लगे । जीवन आनन्द है ! जो तन-मन के विपरीत हो, तन-मन को बुरा लगे वह तो शाप है, पतन है | मानव योनि में जन्म आनन्द है अथवा शाप है वाली पाँच हजार वर्ष पुरानी गुत्थी को मजदूर व्यवहार में सुलझा रहे हैं, मानव योनि व्यवहार में सुलझा रही है।

## शिकागो, अमरीका में ऊर्जा से भरे बच्चे स्कूलों से निकले और उत्साहित अध्यापक संग-संग थे….. दिल्ली में नर्सरी, प्री-नर्सरी में ढाई-तीन वर्ष के शिशुओं को ले जाने से माता-पिता ने इनकार कर दिया….. बीजिंग, चीन में विश्वविद्यालय छात्रों ने ज्ञान उत्पादन की इन फैक्ट्रियों के ताले लगा दिये… तीन वर्ष पहले यह सब एक बवण्डर की तरह आया। बचपन – पीढियों के बीच सम्बन्ध – विद्यालय की भूमिका – ज्ञान के मतलब की चर्चाओं-व्यवहार को नये धरातल पर ले जाने की यह शुरुआत थी। वसन्त 2016 के आते-आते विश्व-भर में स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय बन्द कर दिये गये हैं, वृद्धाश्रम बन्द…..

पीढियों के बीच सम्बन्ध आनन्ददायक होते हैं और हर जीव योनि के बने रहने की प्राथमिक आवश्यकता हैं | जन्म से ले कर मृत्यु तक फैले जीवन के हर चरण का अपना आनन्द होता है। मानवों में यह सब उलट-पलट गया था और मण्डी-मुद्रा के, रुपये-पैसे के ताण्डव ने तो पूरी पृथ्वी को रौंध डाला था। मण्डी-मुद्रा का, रुपये-पैसे का विस्तार अपने संग अक्षर ज्ञान का विस्तार लिये था, बड़ी संख्या में विद्यालय लिये था। फैक्ट्री-पद्धति में, मजदूरी-प्रथा में तो अनुशासन का पाठ पढाते विद्यालय कारखानों के वास्ते मजदूर तैयार करने के महत्वपूर्ण स्थल थे। स्कूलों में प्रवेश करते ही बच्चों को बैठना सिखाना, यानी, बचपन खत्म करना। अध्यापक बने रहने के लिये अध्यापकों का अपने स्वयं के प्रति, विद्यार्थियों के प्रति निर्मम होना। और, छात्र-अध्यापक सम्बन्ध दादा-दादी, नाना-नानी को फालतू बनाते थे। वृद्धजनों द्वारा मृत्यु का इन्तजार करना, आयु के एक मोड़ पर वृद्धाश्रम……

मानेसर में यह इन्डस्ट्रीयल मॉडल टाउन थी। यहाँ पर होण्डा मोटरसाइकिल एण्ड स्कूटर फैक्ट्री थी। वसन्त 2016 में यहाँ चिड़िया चहचहा रही हैं और बच्चों-युवाओं-वृद्धजनों के बीच ज्ञान पर मजेदार बातें हो रही हैं…… शास्त्रों ने, ज्ञान ने मनुष्यों को नाथने-पालतू बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। नियन्त्रण-दमन-शोषण बढाना ज्ञान का सार था….. लेकिन शास्त्रों को, ज्ञान को दमन-शोषण के खिलाफ भी लोगों ने इस्तेमाल किया था….. कौशल की ही तरह, ज्ञान एक संचित स्वरूप ही तो है हमारी गतिविधियों का….. कैसा ज्ञान – यह महत्वपूर्ण है…… मनुष्य-मनुष्य और मनुष्य-प्रकृति के सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों के लिये विरासत में मिले अधिकतर ज्ञान को दफनाना आवश्यक है….. क्या-क्या नहीं करें यह तय करने के लिये विरासत वाला ज्ञान उपयोगी हो सकता है….. नये सम्बन्ध नये ज्ञान की माँग करते हैं….

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