फैक्ट्री किसकी ? कम्पनी किसकी? | Working Day-I

मालिक कौन है ? स्वामी कौन है ? धणी कुण सै ?

चेहराविहीन पूँजी – बिना शक्ल सरमाया – faceless capital की दस्तक 1860 के आसपास सुनी जाने लगी थी। रेलवे इसके उल्लेखनीय उदाहरण थे। उत्पादन में भी पूँजीपति-कारखानेदार-फैक्ट्री मालिक का स्थान इकन्नी-दुअन्नी की हिस्सेदारी वाले डायरेक्टर लेते दिखने लगे थे। निजी मालिकाने – प्रायवेट प्रोपर्टी को पूँजीवाद का सार लेने पर प्रश्न उत्पन्न हुये।

सन् 1900 आते-आते उत्पादन क्षेत्र में कम्पनी-स्वरूप ने मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन में प्रमुखता प्राप्त कर ली थी। फैक्ट्री मालिक-कारखानेदार-पूँजीपति- कैपिटलिस्ट लोग(व्यक्ति) मजदूर लगा कर मण्डी के लिये उत्पादन में गौण से गौणतर होते गये हैं।

व्यक्ति की बजाय सामाजिक सम्बन्ध का सामने आना। साकार का स्थान निराकार द्वारा लेना; मूर्त रूप का स्थान अमूर्त स्वरूप द्वारा लेना सरलता और जटिलता संग-संग लिये लगता है।

इस सन्दर्भ में यहाँ दे रहे मजदूर समाचार के अप्रैल 2013 अंक से यह सामग्री विचारणीय लगती है।

Working day_FMS

This entry was posted in In Hindi, Our Publications, आदान-प्रदान | Conversational Interactions. Bookmark the permalink.